Wednesday, December 31, 2008

ढेरों बधाईयां....

सभी देशवासी, परदेस के निवासीयों और दूर-सूदूर में रहने वाले हर किसी के नये साल की ढेरों शुभकामनाएं। साल 2008 बीत गया बीते साल में देश के लिए प्राणों की बाजी लगानेवाले शहीदों और उन बेकसुर लोगों को मेरी भाव भीनी श्रद्धांजलि। बीते साल के अंतिम महीनों में हुए आतंक का खौफनाक मंजर आज भी आंखो के सामने है। बावजूद लोगों ने हिम्मत नहीं हारी हौसले के साथ इकठ्ठा होकर नये साल का स्वागत किया। वाकई यह हौसला सलाम करने के साथ काबीले तारीफ है। आतंकियों के मुंह पर जोरदार तमाचा देकर देशवासीयों ने एकता की मिसाल कायम की है। लेकिन ये एकता बरकरार रहे यही भगवान से कामना है। आतंकवाद को मुहं-तोड जबाब देने में हम कामयाब हो और आतंकियों का खात्मा जल्द से जल्द हो इसलिए नए साल का संकल्प हम सभी को करना है। अलर्ट और जागरुक सीटीजन बनकर पुलिस की मदद करें। पुलिस की सहायता करें ताकि मुंबई पर हुआ वहशियाना हादसा कही और दुहराया न जाए। अपने स्वास्थ के साथ साथ समाज का स्वास्थ भी बिगडने न दे। लोगों में जागरूकता तो जरूर बढ रही है, लेकिन कुछ गद्दार समाज का स्वास्थ बिगाडने में कामयाब हो रहे है। नया साल चुनौतियों भरा है, आईये हम और आप इन चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हो और इन बेकसूरों को मारनेवालों के खिलाफ संकल्प ले ......वर्ष नया हर्ष नया, नया हो संकल्प मिलकर करेंगे मुकाबला यही होगा नये साल का दृढ संकल्प.....।

Monday, December 15, 2008

मिट्टी भी नसीब नही....

जेहाद के नाम पर मर मिटनेवोलों को दफनाने के लिए उनके देश की मिट्टी भी नसीब नही हो रही है। जेहाद के नाम पर युवाओं को बरगलानेवाले आतंकी खुलकर उनके बाशींदो को वतन की मिट्टी भी नसीब नही करवा रहे है। पाकिस्तान के खिलाफ सबसे बडे सबूत देकर भी पाकिस्तान आतंकीयों का पोशिंदा बन बैठा है। आतंकीयों को भारत के हवाले नही करके वहीं पर कारवाई करने की बात जनाब जरदारी ने कही है। आतंकीयों के ठिकाने उनकी करतूतों को बढावा देने का काम पाक सरकार कर रही है। एक और खुद को आतंकीयों का शिकार कहकर अन्य देशों से सहानुभुती लेनेवाला पाक आतंकीयों का पनाहगार बन गया है। १९९३ के बम धमाकों के मास्टरमाईंड के साथ साथ मसुद अजहर जैसे सबसे बडे आतंकी को आश्रय देकर बेगुनाह लोगों के कत्ल का पाप पाक सरकार पर है। जिस अल्लाह के नाम पर युवाओं को बरगलाया जाता है, वह अल्लाह भी इनकों अपनी गोद में पनाह नही देगा। जहन्नूम में भी इनको जगह नसीब नही होगी। जिस देश और धर्म के नाम पर आतंकी अपने नापाक इरादों को अंजाम देने में सफल हो रहे है, वहां भले ही उनके लिए हिरो हो, लेकीन पुरी दुनिया उनपर थूक चुकी है। दो गज जमीन पाने के लिए लाशें कब्रगाह में सड रही है। मिट्टी भी इनकों अपने गोद में समाने पर नापाक हो जायेगी। लेकीन दुनिया में सबसे बडे दिलवाले हमारे भारत ने आतंकीयों के लाशों को गिधों का नीवाला नही बनाया यही सबसे बडी बात है।

Tuesday, December 9, 2008

खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे...

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने की नारायण राणे कि लालसा ने उन्हें पार्टी से बाहर का ही रास्ता दिखा दिया। शिवसेना से बगावत करके कॉंग्रेस में शामिल हुए नारायण राणे नें कांग्रेस भी अपनी अच्छी खासी पैठ बना ली थी, जिसके कारण विलासराव देशमुख सरकार का कच्चा चिट्ठा खोलने वे सोनिया गांधी के दरबार में भी हाजिरी लगा चुके थे। कई बार देशमुख को मुख्यमंत्री पद से हटाने की नाकाम कोशिश भी वे कर चुके थे। मुंह-तोड जवाब देने का दमखम रखनेवाले नारायण राणे ने शिवसेना छोड कॉग्रेस में आने के बाद भी अपना वजूद बरकरार रखा । मुख्यमंत्री पद के दावेदार बनने के लिए उन्होने विधायकों के अच्छे खासे समर्थन भी जुटा लिया था, लेकिन अफसोस वे मुख्यमंत्री की कुर्सी हथियाने में नाकामयाब रहे। आग बबूला नारायण राणे का क्रोध खुलकर सामने आया जिसे देखकर सभी भौचक्के रह गये। नारायण राणे ने न आवं देखा न ताव सीधे सीधे सभी कॉंग्रेस के वरिष्ठ नेताओं पर निशाना साधा। विलासराव देशमुख पर निशाना साधते हुए उन्होने देशमुख को महाराष्ट्र का कलंक तक कह डाला। देश में हुए सबसे बडे आतंकी हमले को रोकने के लिए देशमुख सरकार नकाम रही। ये बात सोलह आने सच है कि ये जिम्मेवारी मौजूदा सरकार की ही थी। अब इसे इंटिलीजेन्स फेल्युअर कहे या सरकार का निकम्मापन जो समय रहते ही ना तो हमले को होने से पहले रोक पायी नाही आतंकियों का मुकाबला करने के लिए पुलिस को आधुनिक सुविधाएं मुहैय्या करा पायी। हमले की जिम्मेवारी लेते हुए जिन्होने अंतरात्मा की आवाज सुनकर इस्तीफा दिया, वो महज लोगों की नजरों में अपनी छवी अच्छी बनाए रखने के लिए था। सत्ता कि लालसा किस तरह इन्सानियत या देश के प्रति फर्ज से बडी होती है, ये नारायण राणे की करतूतों को देखकर सभी को अंदाजा आ गया होगा। मुख्यमंत्री बनने की होड में लगे मंत्रीयों के घर जमावडा लगा था। खान-पान का अच्छा खासा आयोजन किया गया था और इसी दौरान जोड- तोड का तंत्र भी अपनाया जा रहा था। वहीं दूसरी ओर आतंक के खौफनाक चेहरे को याद कर लोग अभी भी सिहर उठते है। देश के विकास के लिए चुने गये मंत्री जी खुद के विकास कि योजना बना रहे थे, महज आठ दिनों में लोगों का दुख-दर्द भुलानेवाले राणे जैसे नेताओं ने देश के लिए शहीद होनेवाले जाबांजो की शहादत पर कालिक पोत दी। पूरा देश जहां शहीदों को श्रध्दांजलि दे रहा है, वहीं कुर्सी के लिए हो रही रस्साकशी बेहद शर्मनाक रही। लेकिन अब इन नेताओं को याद दिलाना होगा कि जिस कुर्सी को लिए वे झगड रहे है उसका अधिकार जनता के पास है। इतने बडे हादसे से कुछ सीख लेकर अगर इन नेताओं की नींद नही टूटेगी तो जनता को खुद ही जगते रहना होगा, और इन नेताओं को कुंभकर्णी नींद से झकझोर कर उठाना होगा।

शब्दों से परे...... नम आँखों से....

सबसे पहले उन २० जाबांज पुलिस अफसर, २ एनएसजी कमांडो और २०० बेकसूर लोगों को श्रद्धांजलि, जो आतंकियो के नापाक इरादों से बच नही पाये। अभी भी कई लोग अस्पताल में अपना इलाज करवा रहे है। ५९ घंटो का वो खौफनाक मंजर मुंबई ही नही बल्कि सारी दुनिया ने महसूस किया। एनएसजी कमांडो मेजर संदीप उन्नीकृषन्न की शहादत की खबर ने दिल को चीर डाला। उनके मृत काया को देखकर एक पल ऐसा लगा की मैं भी फिदायीन बनकर पाक से बदला लूं। एटीएस चीफ हेमंत करकरे, अशोक कामटे और एन्काउंटर स्पेशालिस्ट विजय सालस्कर की खबर सुनकर पैरों तले की जमीन ही खिसक गयी। दिमाग मे कोहराम मच गया। आतंकियों के नापाक मंसूबों को रोकते रोकते १४ पुलिसकर्मी शहीद हुए जिसमें आरपीएफ जवान भी शामिल थे। उन तमाम शहीदों का देश हमेशा कर्जदार रहेगा। देश के लिए मर मिटने का जज्बा सारी दुनिया ने देखा। उनकी शहादत का कर्ज कोई नही चुका पाएगा। सारे देश ने तो उन्हे नम आखों से विदाई दी है, लेकिन उनकी शहादत से सीख लेकर देश के लिए कुछ योगदान करना होगा तभी जाकर वो दिन दूर नही होगा, जब हम सब मिलकर आतंकियों के नापाक इरादों को पैरों तले रौंदकर रख देंगे।

Monday, November 17, 2008

हर फिक्र को धुऍ में उडाता चला गया......

सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक जगहों पर धुम्रपान करने पर पाबंदी तो लगायी है, लेकिन लोगबाग इसपर अमल करते नजर नही आ रहे है। मुंबई महापालिका ने भी आनन फानन में धुम्रपान करनेवालों को दंडित करने का निर्णय तो लिया लेकिन वो महज कागजों पर ही है। कंपनीयों में लंच टाईम के बाद कर्मचारी कश पे कश लगाकर अपने फिक्र को धुऍं में उडाते नजर आते है। सैंकडो का जत्था धुम्रपान में मशगूल नजर आता है। पान के ठेलों पर भी नजारा कुछ अलग नही होता। हालाकि धुम्रपान करनेवालों के लिए होटलों में व्यवस्था कराई गयी है। लेकिन मेरी नजर में अगर सरकार ने ही सार्वजनिक जगहों पर धुम्रपान करने पर पाबंदी लगायी है, तो क्यों न इसी का फायदा उठाते हुए सिगरेट पीना बंद करे। ताकि फेफडों को खराब होने से बचाया जाय, और सिगरेट पर होनेवाले खर्च को भी टाला जा सकता है। समय रहते ही अगर स्वास्थ के प्रति ध्यान दे तो खुद के साथ साथ परिवारवाले भी स्वस्थ और निश्चिन्त रह पायेंगें । अगर धुम्रपान पुरी तरह छोड नही सकते, लेकिन कोशिश करना आपके ही हाथ में है। सिगरेट के पॅकेट पर लिखी चेतावनी को अनदेखा मत किजीए। प्रशासन ने पहल की है उन्हे साथ दिजीए। आपके स्वास्थ और परिवार की खुशहाली आपके ही हाथ मे है।

Wednesday, November 5, 2008

रक्षक ही बने भक्षक

रक्षक बने भक्षक : मालेगावं ब्लास्ट के साजीश की परते खुलती गयी , और अचानक से एक धक्का लगा जब ब्लास्ट को अंजाम देनेवालों के नामों में कुछ आर्मी ऑफिसर के नाम सामने आये। देश की रक्षा करनेवाले जब आंतकीयों के साथ शामिल हो जाए तो आम हो या खास सभी की जान खतरें में नजर आ रही है। बदले की आग में मालेगाव ब्लास्ट को अंजाम दिया गया है, तो अंजाम देनेवालों को आतंकी कहा जाए तो कोई गलत बात नही होगी। आर्मी अफसरों का इस कदर ब्लास्ट की साजीश में शामील होना, आतंकीयों को ट्रेनिंग देना देश के साथ गद्दारी है। अपने जमीर को गिरवी रख कर चंद रूपयों के लिए देशकी सुरक्षा के साथ ये खिलवाड कर रहे है। ब्लास्ट में मारे गये लोग हमारे ही समाज का एक हिस्सा है, जिसे हम नकार नही सकते। लेकीन नफरत की आग हो या पैसे की लालच देश को तोडकर बर्बाद करने का काम कर रही है। जीन आर्मी जवानों पर देशवासीयों को गर्व होता है, जीनके किस्से सुनकर सीना गर्व से फुल जाता है, उनके नाम पर कलंक लगाने काम इन गद्दारों ने किया है। जहां बोरवेल में गीरे छोटे से बच्चे को बचाने के लिए दिन रात एक करके जवान अपनी जाबांजी की मिसाल देते है, सीमा पर इन्ही के बुते हम आराम से अपने घरों में चौन की निंद सोते है, वहीं कुछ अफसरों ने अपने टॅलेन्ट की धज्जीयां उडा दी। सालों से बनायी इनकी प्रतिष्ठा अब खाक में मील चुकी है। आर्मी के दामन को इन्होने दागदार कर दिया है। रक्षक ही जब भक्षक बने तो भगवान भरोसे ही अपने आप को रखना होगा। फिरभी उम्मीद है की वक्त रहते ही और लोग भी संभल जाए। कानून अंधा जरूर है लेकीन उसके हाथ लंबे है , देर से ही सही लेकीन दोषी कानून की गिरफ्त से बच नही सकेंगे ।

Sunday, November 2, 2008

क्षेत्रवाद राष्ट्रीय एकता पर हावी

मराठी बिहारी के बीच चल रहे विवाद की अग्नी में अब लालू प्रसाद यादव और घी डालने का काम कर रहे है। बिहारी सासंदों को पंधरा दिन के भीतर इस्तीफा देने का फरमान उन्होने दिया है। बिहार में सासंदो पर दबाव डालकर महाराष्ट्र में रहनेवाले आम उत्तर भारतीयों की परेशानीया क्या कम हो सकती है आप लडीये हम कपडा संभालते है, कहकर आम आदमी को उकसाकर लडने के लिए तैय्यार करना क्या जायज है। छठ पूजा जैसे आस्था के पर्व को राजनीतीक रूप देकर अपनी ताकद दिखाने की कोशीश ही लोगों के लिए परेशानी का सबब बनती जा रही है। वहां मनसे अध्यक्ष को मारने के लिए कुछ लोग शहर में आए है ऐसी गलत खबरों को हवा देकर मराठी लोगों की सहानुभुती इकठ्ठा करने का काम खुद मनसे कार्यकर्ताओं ने ही किया है। राजनीतीक स्वार्थ के लिए आम आदमी को ही इस्तेमाल किया जा रहा है। आम आदमी को ये क्यां नही समझ आ रहा है की लडकर नही बल्की आपसी प्यार और सुझबुझ के साथ ही मुंबई या महाराष्ट्र ही नही बल्की सारे देश की तरक्की होगी। नेताओं की राजनीती को समझना अंब आपके हाथ में है। बस बहोत हो चुका ये अब खुनी खेल ।आपसी टकराव से किसी का हित साध्य नही हो पाएगा । कोई भी जाती, धर्म, भाषा के लोगों को कहीं भी जाने का रहने का अधिकार है, उनके अधिकारों को छिनना या उनपर हमला करना निदंनीय है। नेताओं ने आपसी रंजीश खत्म करके जनता के भले के लिए, बेरोजगारों के लिए कुछ ठोस करने की जरूरत है तभी जाकर नेता नेता कहलाएंगे वर्ना लोगों की गालीयां और हाय आए दिन लगती रहेगी।

Friday, October 3, 2008

विस्फोटों का यह मंजर

लगातार हो रहे विस्फोटों से देश का हर नागरिक सहमा हुआ है, पता नही अब अपनी बारी कब होगी यह सोचकर सहम गया है। पता नही कहां कब, कैसे हम भी किसी आतंकीयों का शिकार बन जाए। दिन ब दिन हो रही आंतकी वारदातों से आम जनता में खौफ का माहौल है। जो दिन गुजर गया वो अपना है। सतर्कता से सभी आसपास हो रही गतीविधीयों पर नजर बनाए रखें है, लेकिन जीत रहे है आतंकी। मकडी की तरह जाल बुनकर मासूम लोगों को अपनी जाल में फसांते ही जा रहे है। आतंकीयों के मददगार ये क्यों नही समझ रहे है, कि जेहाद के नाम पर उन्होने कितने घरों को तबाह किया है, । तबाही का मंजर देखकर खून खौलने लगता है, जी तो करता है आतंकी पकडे जाने पर उन्हे भरे चौक में खडा करके गोलियों से भूना जाए। उन गद्दारों के साथ भी यही बर्ताव किया जाय जो अपने ही देश के लोगों की जान छिन चुके है, चाहे वो किसी भी के हो ईश्वर के नाम से लोगों को बरगलानेवालों के नापाक इरादों को कुचलने के लिए हमें सतर्क नही बल्की चौकन्ना रहना होगा। अपने कोष में से बाहर निकलकर दुनियादारी की भी खबर रखनी होगी। सिलसिलेवार हो रहे बमविस्फोटों को रोकने के लिए सरकार प्रयास तो कर रही है, लेकिन आतंकी हर बार कामयाब हो रहे है। हायटेक आतंकीयों को मदद करनेवाले पढे लिखे लोगों से ये गुजारिश है, कि जिस थाली में खा रहे हो उस थाली में छेद ना करे। अपने देशवासीयों को धर्म के नाम पर ना बाटें । जमीन के लोग कुछ ना कर पाये लेकिन जिस किसी भगवान में वो यकीन रखते हो, वो हिसाब जरूरू मांगेगा।

Thursday, October 2, 2008

पंक्षी के दिल का दर्द

एक सरकारी कार्यालय के बाहर एक पेड है। उस पेड पर एक कौआ लगातार दो तीन दिनो से आकर दिनभर कायं कायं करता रहा। चौकीदार कौए की कायं कायं से दिनभर परेशान था। हर दिन उस कौए को भगा देता था। कौआ फिर चौथे दिन उसी पेड पर बैठकर कायं कायं करने लगा। चौकीदार ने सोचा की अब एक नजर पेड के उपर देख ही लेते है। पेड की तरफ देखा तो पेड पर एक मादा कौआ का पैर पतंग की मांजा में फंसा था। तीन दिनो से वो पेड पर लटकी हुयी थी। चोकीदार ने झठ से दमकल विभाग को बुलाकर उस मादा कौए को राहत पहूंचायी। अपने साथी पंछी को छुडवाने की कोशीश करनेवाला कौआ सफल हो गया। जानवर और इंसानो में श्रेष्ठ कहे जानेवाला इन्सान लोगों की मदत करने से हिचकिचा रहा है। खुद की बात करे तो किसी भी चिज को पाने में वो अगर असफल होता है तो, आगे प्रयास करना छोड देता है। चिटीयां भी जब अपना पेट भरने के लिए कतार में अनाज की खोज में निकलती है, हम इन्सान अगर जाती और धर्म भेद मिटाकर एक साथ रहे तो हमारा देश सचमुच सारे जहां से अच्छा होगा। तो सफलता पाने के लिए जरूर कोशीश करे, क्योंकी कोशिश करनेवालों की हार नही होती.

Monday, September 15, 2008

देश के गद्दारों के हौसले

फिर एक बार आतंकी अपने गंदे और नापाक इरादे को अंजाम देने में कामयाब हो गये। आतंकीयो ने फिर एक बार फिर सुरक्षा व्यवस्था को धत्ता बताया। राजधानी में सिलसिलेवार बम विस्फोट करा कर फिर एक बार मासूम लोगो को निशाना बनाया गया। राजधानी में चाकचौबंद सुरक्षा व्यवस्था होने के बाद भी देश के गद्दारों ने नमक का कर्ज अदा नही किया। संगठन का नाम है इंडियन मुजाहिद्दीन, जिस देश मं पनाह ले रहे है, उसे ही दीमक की तरह खोकला बनाते जा रहे है। ज़ेहाद के नाम पर युवाओं को गुमराह किया जा रहा है, मदरसों में धार्मिक शिक्षा के नाम पर बच्चों को आतंकी की शिक्षा दी जा रही है और उन्हें ज़ेहाद का पाठ पढाया जा रहा है। साथ ही हमारे नेता इनके हौसले और भी बुलंद करते दिखायी दे रहे है। एक ओर आतकवाद की निंदा कर रहे है, तो दूसरी ओर सीमी जैसे संगठन पर पाबंदी के खिलाफ खडे नजर आते है। इसके सबसे बडे हिमायती और शुभचिन्तक बने हैं। बडी ही आधुनिक तकनीक को अपनाकर इन आतंकीयों ने एटीएस को भी चुनौती दी है। अहमदाबाद ब्लास्ट के सिलसिले में भेजे गये इमेल की तफ़तीश अभी चल रही थी कि तब तक दूसरा भी इमेल आ गया। अब एक नया सच सामने आया है, कि इन आंतकीयों को कुछ कुछ टिप्स आई.बी. से भी मिल जाती है। गुप्तचर संस्थाएँ तो आगाह करती आ रही है, लेकिन उसे गंभीरता से नहीं लिया जा रहै है, क्योकि इसमें मंत्री जी का लाभ नजर नहीं आ रहा है। प्यास लगने के बाद कुवां खोदने की कोशिश का दिखावा किया जा रहै है। यूपी पुलिस को गुजरात ब्लास्ट के आरोपी के संगी साथियों के बारे में जानकारी देने के बावजूद भी उसे हल्के में लिया गया। दिल्ली सरकार ने मुआवजे का तो ऐलान किया है, लेकिन लाइफ सेविंग दवाईयों की किल्लत ही जख्मियों जान ले रही है। केंद्र सरकार ने यह माना कि खुफिया विभाग ने इस बात की जानकारी दी थी कि दिल्ली में हमला होगा लेकिन कब और कैसे इस बात की जानकारी उनके पास नही थी, तभी तो कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पडा और कई मौत से जुझ रहे है। कबतक आम जनता अपने खून से आतंकीयों की प्यास बुझाते रहेगी और अपाहिज राज्य सरकारों से अपनी सुरक्षा के लिए निर्भर रहेंगी। भागदौड की इस जिदंगी में हम आम इंसान भले ही आतंकीयों के इरादे न जान पाये, लेकिन सजगता से भी अपने आस पास हो रही नापाक करतूतों पर नजर रखे, और उन नापाक इरादों को कुचलने के लिए एक साथ जुट जायें तो कितनी ही आपदा आए, हिंदुस्तान नही डगमगाएगा।

Friday, September 12, 2008

सरकार का राज से माफीनामा.....

दो दिनो से चल रहे मनसे के आंदोलन के बाद अभिनेता अमिताभ बच्चन ने मिडीया से रूबरू होकर मनसे नेता से माफी मांगी। अब की बार मनसे ने उत्तर भारतीयों को नही बल्कि सिर्फ बच्चन फैमिली को टार्गेट बनाते हुए उनके पोस्टर को फाडे, प्रोडक्ट का बहिष्कार किया । अमिताभ बच्चन इस बात से बेहद आहत नजर आये की मनसे ने उनके परिवार को निशाना बनाया जबकी वो महाराष्ट्र का काफी सम्मान करते है। मुंबई उनकी कर्मभूमी है। उन्हे मुंबई ने ही शोहरत दी है। उन्होने अपनी माफीनामा में मराठी भाषा के लिए या लोगों को दिये गये दान का फिर जिक्र किया । जब भी मराठी भाषा के प्रति सम्मान जताने की बात आती है, तो मराठी फिल्म श्वास के लिए दिए गए चंदे की बात आती है। श्री अमिताभ बच्चन से मराठी लोग भी उसी तरह प्यार करते है, जिस तरह देश की और अवाम करती है। आगामी फिल्मों के प्रदर्शन पर रोक लगते देख बच्चन जी को आनन फानन में अपना बयान जारी करना पडा। साथ ही साथ उन्होने मनसे नेता को अपना भाई और मित्र भी कह डाला। अमन शांति पसंद करनेवाले बच्चनजी ने अपनी धर्मपत्नी के बयान के लिए माफी मांगी। मराठी बनाम उत्तर भारतीयों का मुद्दा फिर कुरेदकर निकाल अंशाति फैलानेवालों लोगों से अब आम लोगों को सावधान रहना होगा। ये विद्वेष का जहर फैलानेवाले लोग आपस में ही बाँट रहे हैं अपनी राजनीति चमकाने के लिए ये हर स्तर तक जा रहे हैं। जिस प्रदेश ने हमें प्यार, रोजगार सम्मान दिया है, उस प्रदेश के विकास में हाथ बटाना सभी का कर्तव्य है। भारत के कई राज्य किसी एक भाषा या धर्म के लोगो की वजह से जाना जाता होगा । लेकिन सभी जाति, धर्म, और भाषा बोलनेवालों की मुंबई अब विकास की ओर बढने की बजाय प्रातंवाद के लडाई में विनाश की ओर जा रही है। मुंबई में रहनेवाले सभी मुंबईकर है, मुंबईकरों को अपनी दिल की आवाज सुननी होगी, कि प्रातंवाद का बढावा देना है, या फिर प्रांतवाद को बढावा देनेवालों के खिलाफ एकजुट होना है। नेता लोगों के भलाई का सोचे और कलाकार अपने अदाकारी से समाज को सीख दें या फिर लोगों का मनोरंजन करें । तो बेहतर होगा, अपने जन्मस्थल और कर्मस्थल दोनो का ही सम्मान होना जरूरी है। एक ने जन्म दिया है, और दूसरे ने जन्म को सार्थक किया है।

Monday, September 8, 2008

गणपति बाप्पा मोरया...

गणपति बप्पा के आगमन के बाद मुंबई शहर रातभर जाग रहा है साथ ही जगमगा रास्ते भी रहे हैं। हर तरफ रोशनी ही रोशनी। दिन भर अपना कामकाज खत्म करने के बाद मुंबईवासी निकल पडते है, अपने लाडले भगवान के दर्शन के लिए। घंटो घटों तक लाईन लगाकर अपनी मनोकामना पूरी होने के लिए भक्त अपने आराध्य के पास इच्छा जताते नजर आ रहे है। खास बात तो यह है की भक्त सिर्फ अपने परिवार के साथ ही नही बल्कि अपने मित्र- परिवार या मुहल्ले के लोगों के साथ इकठ्ठा निकलते है। मुंबईवासीयों को एक साथ रहने का यही अंदाज अच्छा लगता है। छोटे छोटे बच्चे भी जागकर मुंबई की चकाचौंध को निहारते नजर आते है। हर रास्ता, गली, मुंहल्ला इन दिनो जगमगा रहा है। दिन में बाजारो में चहल पहल रहती है, तो रातों में सडके ठेलों से भरी पडी रहती है। लोकल ट्रेन में आमतौर पर महिलाओं के डिब्बे में महिलायों की संख्या कम रहती है, लेकिन गणेशोत्सव के दरम्यान महिलाओं की संख्या काफी तादाद में रहती है। गणपति में मुंबई को पूरे बारह दिन एक नया उत्साह मिलता है। सुबह भी घर से निकलते वक्त कही न कही गणपति बप्पा के दर्शन हो ही जाते है। और रात में जगमगाती रोशनी में अपने आराध्य के दर्शन के बाद लोगों की सारी थकावट दूर होती है। मुंबई के साथ साथ पूरे महाराष्ट्र में गणपति की धूम होती है ,और सबसे ज्यादा तब सोने पर सुहागा होता है जब घर घर में मिठे पकवान बनते है। साथ ही मिठाईंयां भी भरपूर खाने मिलती है। बाहर से आनेवाले लोगों को यह जरूर महसूस हो सकता है कि मुंबईकर पैसे के पीछे भागते हैं, उनमें भावनाएं नही होती। किसी से कोई लगाव नही जताते खासकर किसी अनजान व्यक्तीयों से। लेकिन गणेशोत्सव के इस पर्व से इन सब बातों को झुठलाया जाता है। कंधे से कंधा लगाकर गणेशभक्त अपने आप को भुलकर समाज के लिए कुछ करने की भावना रखता है। रात भर जागकर गणेशोत्सव की तैयारी करता है। और पूरी श्रध्दा और भक्ति से गणपति बप्पा के इस पावन त्योहार को सफल बनाने के लिए जी- जान से प्रयास करता है। आधुनिकता की इस दौर में समाज सकुंचित होता जा रहा है ऐसी शिकायते है , लेकिन हम सचमुच शुक्रगुजार है उस महान पुरूष बाल गंगाधर तिलक के जिन्होने गणेशोत्सव के माध्यम से लोगों को एक्ठ्ठा करने का सफल प्रयास किया और अंग्रेजो के खिलाफ रणनीति बनायी। अंग्रेज तो चले गये अब उनकी जगह ली है आंतकीयों ने । मुंबई आतंकीयों के निशाने पर है आतंकी बराबर इसको नुकसान पहुँचाने की कोशिश करते रहते हैं। जैसे गणेशोत्सव में ना कोई जाति धर्म,प्रदेश और समाज का बंधन रहता है उसी तरह इन आतंकियों से निपटने के लिए भी एक बार फिर लोगों के साथ जरूर आना पडेगा। राजनैतिक पार्टियाँ एक दूसरे को दूर करने में अपना कोर कसर नहीं छोड़ती लेकिन जरुरत है कि इस मसले को समझा जाए और साथ मिलकर के गणपति बप्पा का जयजयकार किया जाए....और कहा जाए ...गणपति बप्पा मोरया.. पुढच्या वर्षी लवकर या......

Wednesday, September 3, 2008

मराठी अस्मिता के लिए..........?

लोगों की भावना भडकाकर समाज में अशांति पैदा करनेवाले व्यक्तियों पर कुछ लिखना या उनके द्वारा चलाये गये अभियान पर अपनी टिप्पणी देकर उन्हे महत्व देना ये मुझे कतई पसंद नही। फिर भी मनसे नेता की आक्रामक भुमिका पर मैं अपने विचार रख रही हूं। महाराष्ट्र और खासकर मुंबई में मराठी अस्मिता को बचाए रखने के लिए कई दिनों से मनसे ने आक्रमक भूमिका अपनायी है। महाराष्ट्र में रहनेवाले सभी गैरमराठी लोगों को मराठी भाषा का सम्मान करना जरूरी होगा ऐसा फरमान मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे ने जारी किया। महाराष्ट्र में मराठी भाषा को उचित सम्मान मिलना चाहिए , मराठीयों का आदर होना चाहिए। भूमीपुत्रों को रोजगार में प्राथमिकता मिलनी चाहिए , इन बातों की ओर युवाओं को आकर्षित करने में राज ठाकरे ने सफलता पायी है। मैं भी एक मराठी हूं लेकिन मराठी अस्मिता को बचाने के लिए मनसे नेता ने पढे लिखे युवाओं के हाथों में पत्थर,लाठी और डंडे थमा दी है.। युवाओं को सही दिशा देकर उन्हे एक सही राह देने के बजाय मराठी बनाम परप्रांत का मुद्दा खडा कर दिया। मराठी अस्मिता को बचाए रखने का प्रयास करना कोई गलत बात नही लेकिन जबरदस्ती लोगों से सम्मान नही पाया जा सकता है। फिर सवाल उठता है कि वो आखिर करें तो क्या करे पार्टी का गठन किया है , इसलिए राजनीति तो करनी ही है। जनतंत्र में देशवासियों को कही भी आने जाने से रोका नही जा सकता। लेकिन बाहर से आनेवाले लोगों की वजह से स्थानीय लोगों को तकलीफ ना हो ये देखना सरकार का काम है। देवनागरी लिपी में साईनबोर्ड लिखे जाये ये आग्रह करके तोडफोड करना बडी ही शर्मनाक बात है। अगर मराठीयों को स्पर्धा की दौड में उतारना हो तो राज ठाकरे को मराठी युवाओं के लिए कोई ठोस योजनाएँ बनानी होगी एक नया प्रोग्राम देना होगा। रोजगार के साधन मुहैय्या कराना चाहिए । हर क्षेत्र में स्पर्द्धा होती है लेकिन वो स्वस्थ्य कम्पटीशन होनी चादिए। छीनेने से सम्मान नही मिल सकता, लोगों की सोच को किस तरह से बदलना है, ये आप पर निर्भर होगा । आम लोगों को ये जानना होगा कि उन्हे ही एक दूसरे के सहयोग से रहना होगा। राजनेताओं के बहकावे में आये या अपने आप को स्पर्धा में उतारे। तोडफोड करना, मारपीट करके हमारे अपने ही भाई- बधुं को आहत करे या फिर अपने लिए सम्मान हासिल करे चाहे वो किसी भी धर्म, या जाति के हो।

Friday, August 29, 2008

बिग बॉस और राजनेताओं की राजनीति

पिछले दो हप्तों से कलर्स चैनल पर आनेवाला बिग बॉस काफी चर्चा में है। वैसे कलाकारों की निजी जिंदगी के बारे में जानना कई लोगों को पसंद है। एन्टरटेनमेंट चैनल नही देखनेवाले लोगों को भी बिग बॉस के प्रतिस्पर्द्धियों के बारे में जानकारी रखनी लगे। बीग बॉस के घर रहनेवाले सभी चेहरे लगभग जाने पहचाने से है। राहुल महाजन, संभावना सेठ, पायल रोहतगी, बहुचर्चित और अंडरवर्ल्ड डॉन की सहेली मोनिका बेदी , हास्यकलाकार एहसान कुरेशी, गायक देबोजीत, केतकी दवे, इनके अलावा राजा के साथ लोग हैं जो चर्चित नही हैं। लेकिन एक हप्ते के लिए जानेमाने नेता संजय निरूपम भी बिग बॉस के मेहमान बने थे। उन्हे कलाकारों के बारे में जानना था। उनकी मानसिकता टटोलनी थी। न्यूज चैनलो की खबरों में रहनेवाले निरूपमजी को अब कलाकरों के बीच में रहकर अन्य अनजाने लोगों तक पहुँचना था। कलाकार और नेताओं के बीच आमतौर पर जान-पहचान होती है, लेकिन कलाकार खुद को राजनीति से दूर ही रखते है। मतदान करना उचित नही समझनेवाले कलाकारों की मानसिकता जानने के लिए निरूपमजी ने सोच-विचार करके बिग बॉस में हिस्सा लेने की ठान ली। हालांकि कलाकारों में जल्द ही मिक्स न होने की वजह से निरूपमजी को एक हप्ते में ही अपने घर लौटना पडा । फिर भी उन्हे लगता है की उन्होने कलाकारों की मानसिकता जान ली है। अपनी अलग थलग दुनिया में रहनेवाले कलाकारों को राजनीति की ओर आकर्षित करने का प्रयास नेताजी ने किया। वहीं दूसरी ओर आर.पी.आई. सासंद रामदास आठवले ने बिग बॉस के घर न्योता मिलने के बावजूद उन्हे नही लिये जाने पर बडी कडी नाराजगी जताई। हर न्यूज चैनल पर उन्होने आकर राजनीति का प्रचार करने की अपनी इच्छा अधूरी रहने की भी बात कही,सोचने लगे कि नहीं आने का ही प्रचार कर के खबर में रहा जाए सो लगे बिग बॉस को भला बूरा कहने।। दलित होने का खामीयाजा उन्हे भुगतना पडा इस बात से उनके कार्यकर्ता भी आक्रमक हो गये। चैनल के कार्यालय में तोडफोड की और अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी के पुतले भी फुंके गये । दोनो नेताओं की मानसिकता थी कि कलाकरों की सोच को बदला जाए और उनको नेताओं के दूसरे पहलू के बारे में अवगत कराया जाए। आखिर संसद में नोटों को लहराये जाने के बाद कहीं ना कहीं राजनेता मुँह छुपाते से लग रहे हैं। मनोरंजन की दुनिया में अपने आप को खो देने वाले कलाकारों की मानसिकता को टटोलने के बजाए आम आदमी के साथ इन दोनो नेताओं ने एक सप्ताह बिताया होता, उनकी मुश्किलों को जानने का प्रयास किया होता, उनके दुख दर्द नजदीक से जानकर उन्हे हल करने का प्रयास किया होता तो आम आदमी के नजरों मे उनका कद और भी बढ जाता। मिडीया के जरीए महज लोकप्रियता पाने का प्रयास दोनो ही नेताओं का विफल हो गया है। मिडीया में लोकप्रियता बढने की वजह से सभी लोग वोट नही देंते ,ये बात उन लोगों को गांठ बाँध लेनी चाहिए। वोट बटोरने के लिए लोगों के लिए कुछ ठोस काम करके उनके दिलो तक पहूंचना बेहद जरूरी है। नहीं तो आम लोगों की नजरों में नेता भी बन जाएंगे डमुरु तमाशा के साथ चलने वाले मनोरंजन का साधन।

मेंहदी- परंपरा से व्यवसाय तक

गणपति बाप्पा बस कुछ ही घंटों में अपने भक्तों से मिलने आरहे है, और भक्त भी बाप्पा के आगमन को लेकर काफी उत्साहित है। बाजार रंगबिरंगी सजावट की चीजों से खचाखच भरे पडे है। चारों और जगमगाती रोशनी मानों शरीर में उर्जा पैदा कर देती है। महज दस दिनो के इस त्योहार के लिए करोडो रूपयों के वारे न्यारे हो जाते है। बाप्पा के आगमन की तैयारियाँ जोरो शोरो से शुरू है, तो हमारा भी मन किया बाजार में घूमने का । मुंबई का दादर इलाका एक ऐसा बाजार है जहां कोई भी चीज वाजिब दाम में मिल जाती है। बाजार रंगबिरंगी सामान से भरे पडे है। घूमते घूमते अचानक मन में आया की आज हाथों में मेंहदी रचाई जाए । ढूंढते ढूंढते हम पहूंचे मेंहदी लगवानेवाले के पास , वो कह रहा था मुंबई में उनकी एक मात्र दुकान है मेंहदी लगाने की। तो लाजमी है की मेहनताना भी ज्यादा होगा। त्योहांरो के दिनो पर भरपूर कमाई कर रहे है। चार हप्ते सडक पर बैठकर मेंहदी लगानेवालों ने अभी मॉल में किराये की दुकान ली है। ऑफ सीजन में भारतीय पध्दती की मेंहदी रचवाने के लिए खूब पैसे देने पडते है दो हाथ के दो सौ रूपये, और अगर सस्ता चाहिए तो अरेबीक पध्दती की मेंहदी लगवाएं। नोएडा में हमें चप्पे चप्पे पर मेंहदी लगवाने मिल जाते थे और वो भी मामूली कीमत में। मुंबई में कामकाजी महिलाओं को मेंहदी लगवाने का शौक तो होता है लेकिन बैठकर घंटो मेंहदी रचाने के लिए वक्त नही होता। ब्युटी पार्लर में मेंहदी का खर्च बहुत ही ज्यादा होने की वजह से इस शौक को आम महिलाएं अपने दिल में ही दबा लेती है। मेरे खयाल से मेंहदी रचाने की कला जो भी महिला या लडकिया जानती हो उन्हे इस शौक को व्यवसाय के तौर पर अपनाना चाहिए । आम महिलाओं को सस्ती और खुबसुरत मेंहदी लगवायी जाए तो वो हमेशा ही अपने हाथों में मेंहदी रचाएंगी। आम महिला या लडकीयां अपने शौक पर खर्च करने से पहले दस बार सोचती है। गली और मुहल्लों में भी यह व्यवसाय अच्छी तरह से फल-फूल सकता है। मेंहदी रचाने का हूनर जानने वाली घरेलू महिलाएं भी आमदनी कर सकती है। इस व्यवसाय के जरिए रोजगार की तलाश करने वाली लडकियों को एक रोजगार का अच्छा साधन मिल सकता है, और दाम बाजीब होने से महिलाएं भी किसी त्योहार के इंतजार में नही रहेंगी। वाजीब दाम से आमदनी तो होगी ही साथ ही घरेलू महिलाओं के साथ साथ कामकाजी महिलाओं का शौक भी पूरा हो सकता है।

Wednesday, August 13, 2008

आम इंसान का चक्काजाम

अमरनाथ जमीन वापस लेने के मुद्दे पर विश्व हिंदु परिषद के कार्यकर्ताओं ने देशभर चक्काजाम किया। चक्काजाम करने का ऐलान एक दिन पहलेही कर दिया था। समय चुना सुबह नौ बजे से लेकर ग्यारह बजे का यानी पीक अवर्स का। सुबह के वक्त स्कुल, कॉलेज , ऑफिस जानेवाले या काम के लिए घरसे निकलने वालों को इसका खामियाजा भुगतना पडा। आम जनता सॉफ्ट टार्गेट बनती जा रही है। किसी भी चिज का विरोध करना हो तो बस आम जनता को ही हाशिये पर चढाया जाता है। नापसंद बातों का विरोध होना जायज है, लेकीन आम जनता को परेशान करना, पब्लीक ट्रान्सपोर्ट का नुकसान करना , गाडीयों को जलाना, रेल्वे पटरी उखाडना इन सब बातों से किस तरह का दबाब निर्माण करना चाहते है। मांग करना या नापसंद बातों का विरोध होना चाहिए लेकीन इस तरह के विरोध से नही । आम आदमी को ही हमेशा भुगतना पडता है, अंबाला में एक व्यक्ती को इलाज के अभाव में अपनी जान गवानी पडी। धर्म के लिए आस्था होना गलत बात नही लेकीन धर्म के नाम पर तबाही मचाना शर्मनाक बात है। विरोध का तरीका सही हो तो इस विरोध में आम आदमी भी जुड सकता है। बहोत तकलीफ होती है जब सार्वजनिक संपत्ती और जान माल का नुकसान होता है। इस नुकसान भरपाई की किमत भी आम इंसान के जेब से ही वसुली जाती है। परेशानी होती है सो अलग। राष्ट्रपिता महात्मा गांघी ने सत्याग्रह करके गोरों की हूकूमत को रौंधनेमें कामयाबी पायी थी, लेकीन हमारे देशवासीही अपने देशवायीयों का जीना मुश्कील कर रहे है, फिर चाहे वो किसी भी धर्म या जाती के ही क्यों न हो। हरबार आम इंसान को निशाना बनाकर सरकार को घेरने का इस तरह का प्रयास कामयाब होगें ?.

Tuesday, August 12, 2008

स्वागत या परेशानी

बरसों रे मेघा मेघा कहते कहते लोगों ने बारीश का जोरदार स्वागत किया । बारीश की आस में लोगों ने होम हवन तक किये थे । मेघा बरसा भी लेकीन, पानी के लिए तरसनेवाले कई लोगों के संसार भी उजाड दिये। हरसाल बारीश की राह में आसमान की तरफ टकटकी लगानेवाले किसान ने जब दोबारा बुआई की तो उसे यह नही पता था की उसकी फसल बारीश के चलते बह जाएगी। महाराष्ट्र के कई जिलो में तबाही का मंजर थाइ । कईयों के घर उजड गये तो कई लोगों को अपना घरद्वार छोडकर कहीं और डेरा डालना पडा। दरअसल दोष पकृती का नही बल्की हम इन्सानो का है। पकृती तो हमारी भुख, प्यास मिटाती है लेकीन हम इसांन ही पकृती के बनाये नियमों की धज्जीयां उडाते है। जंगल को तोडकर उसपर भी अपना एक फॉर्महाउस होने की प्रबल इच्छा इंसान ही रखता है। पानी के निकासी की व्यवस्था पर भी अतिक्रमण करके सारा दोष मढा जाता है प्रकृती पर। प्रकृती तो भर भरकर देती है, लेकीन उसका आस्वाद लेना सभीके बस की बात नही है। लेकीन कुछ पकृती प्रेमीयों को सालभर बारीश का इंतजार भी रहता है। प्रकृती से प्यार करनेवाले बहोत सारे लोग है, वे प्रकृती को बचाने के लिए हरसंभव प्रयास करते है, लेकीन सभी लोगो का साथ होना जरूरी है। तभी बारीश की फुहारों से तम मन प्रफुल्लीत हो जाएगा। बारीश के आने से परेशानी नही बल्की सभी लोग स्वागत ही करेंगे

Friday, August 8, 2008

आत्महत्या का बढता दौर....

बुधवार को 8 लोंगों की आत्महत्या की खबर सभी न्यूज चैनलों की सुर्खियाँ बन गयी थी। एक ही परिवार के 5 लोगों ने खुदकुशी की और वहीं दूसरी ओर एक माँ ने अपने बच्चे को जहर देकर खुद फाँसी का फंदा लगा लिया, हृदय की पीडा देखिये कि पति को खुश रहने की चिट्ठी भी छोड़ गयी। इतना बडा कदम उठाने के लिए सचमुच हालात भी वैसे होंगे, कोई रास्ता सामने दिखाई नहीं पडता होगा।मंगलवार को मुम्बई में ही एक महिला ससुरालवालों के जरिये दिये जा रहे दुख को झेल नहीं पायी और रास्ता चूना खुदकुशी का। पिछले चार पाँच सालों में खुदकुशी करना एक आम सी बात हो गयी है। महाराष्ट्र के विदर्भ में किसानों के खुदकुशी का सिलसिला आज भी जारी है। खुदकुशी करना इतना आसान भी नहीं हो सकता, बच्चों को पहले मारकर फिर अपने आप को खत्म करने के लिए कलेजा कैसे तैयार होता होगा। खुद के गुजरजाने के बाद बच्चे दर-दर की ठोकरें ना खाये शायद यह अहसास उनको पूरे कूनबे को ही खत्म करने पर मजबूर करता होगा। यह बात सोलहो आने सच है कि जब माँ बाप ही नहीं रहेंगे तो इन मासूम बच्चों का सहारा कौन बनेगा, अगर ईश्वर मेहरबान हुआ,कोई बना भी तो ये अच्छी परवरिश और प्यार से हमेशा ही महरूम रहेंगे। इन सब बातों को सुनकर और देखकर समाज से घृणा होती है।संसद में नोटों के बंडल उछालकर खरीद फ़रोख्त करनेवाले सांसद क्यों नहीं इस पैसे का उपयोग गरीबी हटाने में करते ? क्यों अमीर गरीबों का खून चूसकर और अमीर बनते जा रहे हैं, और गरीब गरीबी की खाई में फँसता ही जा रहा है। दहेज और घरेलू जुल्म के नाम पर महिलाओं के प्रति बढ रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाने का काम सिर्फ सामाजिक संगठनों का ही है, स्थानीय नेता तो केवल वोट की रोटी सेकने का अवसर देखते हैं। आत्महत्या करने के लिए उकसाना या उस तरह के हालात कौन पैदा कर रहा है, परिवार के लोग और समाज में रहनेवाले दानव ही तो। इनके खिलाफ सख्त कार्यवाही करने के लिए सरकार भी साक्ष्यों की दुहाई देती है। कोई भी सख्त कदम नहीं उठते।पिछले कई सालों से आत्महत्याओं का दौर बढता जा रहा है, इसके पीछे कारण बन रहा है कि इन्सान के हालात जिससे हार कर वह दिन-ब-दिन कमजोर होता जा रहा है।उसके आस पास हालात ऐसे पैदा किए जा रहे हैं कि कितना भी वो हिम्मती हो उसके हिम्मत को टूटने में देर नहीं लगती। शायद अब यही जिम्मेदारी अब हमें और आपको लेनी होगी। अपने आसपास या जाननेवालों में कोई भी ऐसी मानसिक दौर से गुजरता हो तो, कुछ ज्यादा नहीं तो लेकिन उनकी टूटती हिम्मत को तो कम से कम बँधाये। कुछ और नहीं तो उनके दर्द को बाँटने का प्रयास करे यही उस निराश से घिरे मानव के लिए काफी है। अगर आप और हम किसी एक भी व्यक्ति के हौसला आफजाई करने में कामयाब हो जाते हैं उसे निराशा के अँधेरे से निकालने में कामयाब हो जाएँगे,तो यह प्रयास सफल होगा। हमारा एक मदद का हाथ किसी भरेपूरे परिवार को बिखरने और तबाह होने से बचा सकता है।

Wednesday, August 6, 2008

मित्रता दिवस की धूम

अगस्त महीने का पहला रविवार यानी फ्रेन्डशिप डे। हालिया कुछ सालो में मित्रता दिवस मनाने का ट्रेंड भारत में भी आया है। कई लोग इसे रविवार को मनाते है, तो स्कूल और कॉलेज में सोमवार को। फ्रेन्डशिप डे का आगाज हालिया कुछ दिनो में एक हप्ते पहले ही जान पडता है। रंगबिरंगी फ्रेन्डशिप रिबन और गिफ्ट सजाकर दुकानदार मोटी कमाई भी कर लेते है। कई लोगों का फ्रेन्डशिप डे को विरोध है, लेकिन मेरा नही। विरोध करने से पहले उसके पीछे के तथ्य , भावना को समझना बेहद जरूरी है। मित्रता दिवस सिर्फ युवाओं का नही बल्की पारिवारिक भी है। मां-बेटा, पिता-पुत्री, भाई-बहन सब एक दुसरे के मित्र है। रविवार को सुबह सुबह मेरे सारे मित्रों ने मुझे मित्रता दिवस का संदेशा भेजा, मैने भी जगते ही सबको तुरंत रिप्लाई भी कर दिया। मां ने भी मुझे बधाई देते हुए कहा , मै भी तुझे फ्रेन्डशिप बैंन्ड बांधूंगी। आखीरकार मां मेरी सबसे पहले और अच्छी दोस्त है। कॉलेज में हम भी एक दूसरे को रंबगिरंगी रिबन बांधकर अपनी मित्रता दिवस की बधाईयां देते थे। कॉलेज के दिन हसते खेलते बीत गये लेकीन अब स्पर्धा के इस दौर में मित्रों की खरी परिक्षा होती है। रविवार का पूरा दिन मैसेज संदेशा लिखने और पढने में बीत गया । फिर भी आंखे प्यारे से मित्र के संदेशा की बाट जोह रही थी। एक ऐसा मित्र जो रोजाना गप शप नही करता , मिलता भी नही, लेकिन जब भी मन उदास हो वो हमेशा बाते करके मन हल्का कर देता है। करियर की शुरूआत में उसने मेरी काफी हौसला अफजाई कीहै, हिम्मत बंधाई है। एक तरह से मुझे तैयार करने में उसकी अहम भूमिका है। सिर्फ अच्छी अच्छी बातें नही बल्कि वास्तविकता का एहसास दिलाया है। हम एक दूसरे से झगडते भी है, बहस भी करते है। उस मित्र ने आखीर में रात को फोन किया तो मै तुरंत उसपर बरस पडी और कहा कि सारे लोगो के मैसेज आया बस तुम्हारा ही मैसेज नही आया। उसने कहा दोस्त हमारी दोस्ती सिर्फ एक दिन के लिए नही है। मै रोज भगवान से प्रार्थना करता हूं की मेरे दोस्त को हमेशा खुश रखना, और सात जन्मो तक मुझे यही दोस्त देना। इस बात को सुनकर मेरी आंख भर आयी, गुस्सा तो उडन छू होना ही था। सचमुच मै काफी भाग्यवान हूं की मित्रों की ढेर में मेरे पास एक तो सच्चा मित्र है। कहते है खुशी में तो सब आपका साथ देते है, लेकीन गम बाटने के लिए एक तो सच्चा मित्र आपके पास होना चाहिए, और वो मेरे पास है........

Friday, August 1, 2008

बदलती मानसिकता.

नागपूर में १ अगस्त को 10 वर्षीय ने फांसी लगाकर खुदखुशी की। वजह उसे ज्यादा देर तक कार्टून देखने के लिये उसके चाचा ने मना किया। कमलेश ने कमरे में जाकर अंदर से मौत को गले लगाया। घटना को सुनकर उसकी लाश को देखकर दिल दहला गया। आजकल बच्चो की मानसिकता बदलती जा रही है। पढाई का बोझ, फिर ट्यूशन, पेंटीग क्लासेस, डान्सिंग क्लासेस का प्रेशर। बच्चे तो आजकल खेलना कुदना ही भूल गये है। टीवी, गेम शो, इंटरनेट, मोबाईल जैसी चीजों ने बच्चो को समय से पहले ही मैच्यूअर बना दिया है। आमिर खान की फिल्म तारें जमीं पर देखी, फिल्म दिल को छू गयी थी। अब यह जिम्मेदारी पूरी तरह अभिभावको की है,कि मिट्टी के कच्चे घडे को कैसा आकार देना है। अब है को डाट डपटकर नही बल्कि उनके मित्र बनकर बातें समझनी होगी, और अच्छी बातें समझानी भी होगी। अचानक बच्चे चिडचिडे नही बनते, उसके पिछे छिपे कई कारणों को अभिभावक कों खुद ही खोजना होगा। उनके साथ समय बिताना होगा। शहरों में मां और पिता दोनो के नौकरीपेशा होने की वजह से बच्चों की तरफ ना चाहते हुए भी अनदेखी हो जाती है। कच्ची उम्र में बच्चों को सही दिशा देना बहुत जरूरी होता है। खेल,कुद, सेहत, पढाई इन सब बातों पर अगर अभिभावक समय रहते ही ध्यान न दे तो बच्चे के शारीरीक और मानसिक बदलाव के दौरान कई परेशानियां आ सकती है। चाहे आप बच्चों को उचित समय ना दे पायें लेकिन इतना जरूर ध्यान में रखना चाहिए कि बच्चों को ढेर सारा प्यार दे, उनकी जरूरतों को समझे, उन्हे प्यार से समझाये, उनके साथ मित्रता रखें। मैत्री और प्यार का भाव दुराव नष्ट करके परिवार को आपस में जोडता ही है।

Thursday, July 31, 2008

ज़िद ही ज़िद ....

मैं बचपन में आमबच्चों की तरह ही ज़िद करती थी। आपने भी की होगी कभी चॉकलेट के लिए, कभी खिलौने के लिए तो कभी नये कपडो के लिए । मै पढने के लिए ज़िद करती थी। पढाकू तो नही थी सामान्य बच्चों तरह ही थी । आजकल के बच्चे बडे ही ज़िद्दी होते जा रहे है। हर बात में ज़िद। जो चाहिए वो उनको चाहिये होता ही है। मां बाप की भी अपनी एक अलग ज़िद बच्चा जैसे ही आ, बा , तुतलाकर बोलना शुरू करता है,तो ये शुरू हो जाते है, ए फॉर एप्पल सिखाने। ये मत करो, ये मत गंदा करो, कपडे मत खराब करो। दुनीया भर की पाबंदी। बचपन खिलने से पहले ही मुरझा जाता है। करीयर बनाने की ज़िद से कई खासकर लडकियों की जिदंगी तबाह हो गयी है। ग्लैमर की चकाचौंध तक पहुँचने के लिए कई लडकियों ने अपनी इज्जत को दांव पर लगा दिया । ज़िद ने कईयों की ज़िन्दगियों को तबाह कर दिया है। ज़िद हमेशा बुनीयादी बातों के लिए होनी चाहिए। समाज में बदलाव लाने के लिए की जानी चाहिए। नयी पीढी को एक सही दिशा देनेवाली होनी चाहिए। समाज में सदियों से चली आ रही परंपराओ को तोडने के लिए तकरार और ज़िद होनी चाहीए तभी जाकर ज़िद और अपने ऊसूलों की बात करनेवाले लोग भी अच्छे लगने लगेंगे। परिवारों के साथ साथ देशभी एकसाथ जुडा रहेगा। समाज सुधारने की ज़िद करनेवालों को सभी अपनाना चाहेंगे वरना बेवजह की ज़िद करनेवाले किस कोने में खो जाएँगे पता नहीं चलेगा।लेकिन दिशा देने वाले अगर बच्चे भी हों तो लोग उन्हे प्रणाम करेंगे क्योकि समाज बदलाव चाहता है कृष्ण भी बच्चे ही थे लेकिन आज भी वो पूजे जाते हैं।कोई कृष्ण नही बन सकता लेकिन समाज में थोडा योगदान तो दे सकता है, सच्चा धरती की संतान तो बन ही सकता है।

Wednesday, July 30, 2008

आतंक के पनाहगार

अहमदाबाद में बम मिलने का सिलसिला जारी है। लोगों में खौफ बढाने के मकसद से आतंकवादी जगह जगह बम रखकर प्रशासन के होश उडा रहे है। साथ ही बम के स्पॉट का इत्तल्ला भी दे रहे है। लेकिन ये महज एक दो दिन का काम नही है। कई महीनों पहले इस प्लान को अंजाम दिया गया है। और इनके पनाहगार कोई और नही बल्कि हमारे अपने देश के चंद अहसान फरामोश लोग है जो अपने ही देशवासीयों के साथ गद्दारी कर रहे है। चंद पैसों के लिए अपना ईमान बेचकर लाखों परिवारों की बद्दूआएँ ले रहे है। आतंकियों के मददगार जिस देश में रहते है, उसी देश के प्रति नफरत की भावना रखते है । आतंकियों को मदत करनेवाले इन गद्दारों को पहले ये सोचना चाहिए की वे क्या कर रहें है, मदत की फेर में कई परिवारों को इन्होने तबाह किया है। ये अगर मदत नही करेंगें तो उन आतंकियों की क्या मजाल जो अपने मनसूबों में कामयाब हो जाए। पनाहगारों पर कोफ्त होता है कि आतंकियों के पहले इन्हे ही फांसी पर लटका दिया जाए, ताकि आनेवाले दिनों में आतंकियों को मदत करने से पहले इनकी रूंह कांप उठे। मनसूबों को अंजाम मिलने से पहले ही उनपर पानी फिर जायेगा। लेकिन ये तबतक संभव नही जबतक पकडे जाने पर इन्हे कडी से कडी सजा नही मिलती। हजारों परिवारों के घर उजाडकर, बच्चों को अनाथ बनाकर, किसी का बेटा या पति छिननेवाले इन आतंक पनाहगारों को देश कभी नही माफ करेगा। चाहे ये किसी भी धर्म या जाति के हो, वो जिस भगवान को मानते हो, वो भगवान भी कभी इन्हे माफ नही करेगा।

Monday, July 28, 2008

आतंक का काला साया.

धर्म के नाम पर मासूम लोगों को मौत के घाट उतारकर कई परिवारों को उजाडना ये सडे हुए दिमाग की ही उपज होती है।मासूम , निहत्थे लोगों को निशाना बनाकर कौन सी शेखी बघारना चाहते है ये धरती के कलंक ।मां की कोख को भी कलंकित करनेवाले ये लोग किसी राक्षस से कम नही है । क्या मिलता है इन्हे लोगों को निशाना बनाकर। हिम्मत हो तो हमारे देश के जवानों से आकर सीधा मुकाबला करे। कहते है आतंकवाद का कोई धर्म नही, जगह जगह बम लगाकर और पहले से ही आगाह करना.... कितनी घिनौनी हरकत है ये। छोटे छोटे बच्चे बम की चपेट में आ गये, कई बच्चे अनाथ हो गये। और तो और जखमी लोगों की मदत करने पहुँचे लोगों को भी इन दरिंदो ने नही बख्शा। अस्पताल के बाहर भी विस्फोट कर दिया । परिवार का रोना बिलखना देखकर रूहं कांप गयी। उन आतंकवादीयों के लिए ढेरों बददुआएँ मुंह से निकली। क्या कर सकते है आम नगरिक , जहां पुलिस भी अपनी चौकसी में खरी नही उतर पायी। दिल दहल जाता है, इन घटनाओं से हम कहते है, हमारी सरकार, आई बी भी कुछ नही करती, लेकिन ऐसा नही है। सरकार भी सतर्क है और आई बी भी लेकिन फिर भी सुरक्षा में सेंध लगाने में ये राक्षस कामयाब हो ही रहे है। उनके दिलों में हमारे देश के प्रति इतनी नफरत है कि दोस्ती का दिखावा करके ये लोग छुरा घोंप रहे है। इन कायरों को इतना भी पता नही कि ये देश उनके नापाक इरादों से तहस नहस नही होने वाला ........ उन तमाम बेकसूर लोंगों को मेरी श्रध्दांजली जो नापाक इरादों की बली चढ गये है।

Friday, July 18, 2008

तस्मै श्री गुरूवे नम:

गुरूपूर्णिमा का उत्सव तो सभी मनाते है। स्कूलों में भी यह उत्सव मनाया जाता है। गुरू के प्रति अपनी श्रध्दा या भावना जताने का एकमात्र दिन। मुझे याद है स्कूलों में हम भी गुलाब लेकर जाते थे और आशीर्वाद लेते थे। लेकिन स्कूल में भी पसंदीदा टीचर को ही फूल दिया जाता था। सबकी अपनी अलग अलग पसंद। बाजार में स्कूल के बच्चों के लिए बनाये गये गुलदस्ते देखकर पता चल जाता है कि आज गुरूपूर्णिमा है। गुरू और शिष्य का रिश्ता क्या उसी तरह का रह गया है, जो कई सालों पहले हुआ करता था। गुरू अपने शिष्य को पढाने के लिए कोसो दूर पैदल चलकर जाया करते थे। अब आधुनिक जमाना है शिष्य भी मॉर्डन और गुरू भी। कई गुरू तो इस पाक रिश्ते को कलंक भी लगा चुके है। कई छात्रा अपने गुरू के हवस का शिकार भी बनी है। अब गुरू शिष्य के रिश्ते में वो संजीदगी नही रही है। आधुनिकता की दौर में शिक्षा का बाजारीकरण हो गया है, और छात्र को अपना करियर बनाना होता है। और इन दिनो तो जिस तरह शिक्षा पाने के लिए छात्रों को आंदोलन , धरना प्रदर्शन, एडमिशन पाने के लिए करनी पड रही जद्दोजहद की वजह से छात्रों के मन में गुरू के प्रति कटूता का ही निर्माण किया है। भक्त भी भगवान के मंदिर में जाकर अपनी आस्था प्रकट कर रहे है लेकिन मन में कुछ न कुछ पाने की इच्छा जरूर होती है। बच्चो और मां पिता का रिश्ता भी दिन ब दिन व्यावहारिक होता जा रहा है। बच्चो को अपनी इच्छा पूरी करनी होती है तो मां पिता को अपनी । हालांकि सभी ऐसे नही होगें लेकिन कुल मिलाकर देखा जाय तो लेन और देन पर ही गुरू शिष्य का रिश्ता निभ रहा है।

Monday, July 14, 2008

उस प्यार को सलाम...

कल नेपाल की वीस वर्षीय निहीता का इंटरव्यूह देखा. निहीता 64 वर्षीय एक शातीर अपराधी चार्ल्स से प्यार करती है। उसे सुनकर ये लग रहा था की वो अल्लहड नही बल्कि काफी मैच्यूर है। अपराधी को प्यार करते करते वो अब उसे डिफेंड भी करने लगी है। निहीता चार्ल्स से शादी करना चाहती है और बकौल निहीता प्यार की कोई उम्र या जाती या धर्म नही होता। चार्ल्स और निहीता में चौवालीस वर्ष का अंतर है। निहीता अपने फैसले पर अटल है, की वो चार्ल्स के साथ गृहस्थी बसाएगी। ना उसे दुनिया की परवाह है नाही चार्ल्स के क्रीमीनल रेकॉर्ड से कोई सरोकार है। उसने कहा की चार्ल्स के जेल से रिहा होने के बाद वो एक नयी शुरुआत करेंगे। निहीता को देखकर ये लगता है की चार्ल्स के प्रति उसका महज आकर्षण नही है, वो उन सभी जज्बातों को जानती है, वो उसी तरह का प्यार करती है जिसे लोंगो को समझने में वक्त लगता है। निहीता अकेली ऐसी लडकी नही होगी जिसने प्यार की अनूभूति को समझा और जीया होगा। प्यार का वो पाक रिश्ता न जाति देखता है ना धर्म ना अमीरी देखता है ना गरीबी तभी तो मुंबई की महाराष्ट्रीयन लडकी आशा पाटील ने पाकिस्तान के लडके के साथ अपनी जिंदगी बिताने के फैसला किया, और वो अपने प्यार के खातीर देश की सीमा भी लांघ गयी। प्यार के उस मजबूत रिश्ते ने दो देशों के बीच दोस्ती का रिश्ता और मजबूत ही किया है। वो कौनसी ताकत होती है जो दुनिया से बगावत करने पर मजबूर कर देती है। एक दुसरे के प्रती आकर्षण नही बल्कि एक दुसरे को पुरी तरह समझने के बाद एक साथ जीने मरने की कसमें ली जाती है।लेकीन कुछ अभागे ऐसे भी होते है जो जाति धर्म और उच नीच की बली चढ जाते है। कई लडकियाँ प्यार करने का खामीयाजा दहेज या प्रताडना का शिकार बनकर चुकाती है। रीत रिवाज या परंपरा अलग हो सकती है, लेकिन इंसान में कैसा फर्क होता है, क्या उनके शरीर से उच नीच होने का भेद खुलता है । न जाने कब बदलेगा यह समाज क्यों नही समझ पाता प्यार के जज्बात। क्यों नही जोड पाता सभी जाति धर्म को प्यार के सूत्र में । लेकिन उस प्यार को सलाम जो प्यार का संदेशा दे रहे है, लेकीन उन्हे अपने प्यार को पाने के लिए जिस तूफान का सामना करना पडता है, उस कष्ट को देखकर समाज से ही कोफ्त होने लगता है। फिर भी प्यार ऐसी संजीवनी है जिसे मिली वो अमर है, और जो नही पा सका वो अभागा। अपने प्यार के लिए मर मिटने वाले उन प्रेमीयों को सलाम... सलाम...सलाम

Friday, July 11, 2008

विस्फोट के दो साल

11 जुलाई 2006 मुंबई में दो साल पहले इसी दिन ही धमाके हुए ये तारीख लोगों के जहन में पत्थर की लकीर बनकर रह गयी है। मुझे याद है मैं उस दिन ऑफिस में ही थी। खबरों की दुनिया में काम करने की वजह से एक सहकर्मी के भाई ने रेल में हुए पहले धमाके की जानकारी दी और बस फिर क्या टेलीवीजन पर धडाधड बम विस्फोट की खबरे. पत्रकारों की घटनास्थल पर पहूचने के लिए भदगड मची। शाम के वक्त अपने घर पहूंचने के लिए निकले लगभग 200 लोग मौत की नींद सो गये, और सैकडों घायल हुए। घटनास्थल पर का नजारा देखकर तो दिल खून के आँसू रोने लगा। कईयों ने वो खौफनाक नजारा देखा भी होगा, कईयों ने प्रशासन की मदत पहूंचने से पहले ईन्सानियत की मिसाल भी दी। उस घटना को आज दो साल हो गये लेकिन पीडितों के दुखो का कोई अंत नही हुआ। जिन्होने अपने परिजनों को खोया है उनके दर्द को कोई चाहकर भी कम नही कर सकता। मुआवजे की लीपापोती करने में भी रेल प्रशासन के साथ साथ राज्यसरकार भी नाकाम ही रही है। शर्मनाक बात तो यह है की रेल प्रशासन ने पीडीतों से ब्याज की रकम वापस मांगने के लिए लोगों को नोटीस तक दे दी है। मुंबई के जज्बे के लोग सलाम करते है की मुंबईकर डरता नही है, बडी सी बडी घटना हो मुंबईकरों की जिंदगी दुसरे दिन ही पटरी पर लौट आती है। असल में मुंबईकर के पास अभी अपनी जींदगी हथेली पर लेकर चलने के सीवा दुसरा कोई चारा नही है। अपनी जिंदगी को जोखिम में नही डालेगा तो मुंबईकर दो जून की रोटी के लिए भी दुसरो का मोहताज होना पडेगा। मुंबईकर अभी यूज टू हो गया है ऐसी घटनाओं से। बस दुख इस बात का है की बेकसुर लोगों की बली जा रही है, और इस सब के लिए जिम्मेदार लोग खुलेआम घुम रहे है। मृत हुए लोगों को श्रध्दांजली देने का फंडा अब कई पार्टीयों ने निकाला है। क्या उनकी जिम्मेदारी बस इतनी ही है। दो साल गुजरने के वाबजूद भी रेल प्रशासन अभीभी लोगों को सुरक्षा मुहैय्या कराने में नाकामयाब है। आतंकवादी पकडना तो दुर लेकिन रेल में बढते अपराध को कम भी नही कर पा रहे है। महिलाए कल भी असुरक्षित थी और आज भी है। लोग अपने आप को आपस मे धर्म , जाति के नाम पर भले ही अलग कर ले लेकिन मुंबई चलती ही रहेगी। उन तमाम बेकसूर लोगों को मेरी श्रध्दांजली जो आतंकवादीयों के नापाक इरादे के शिकार हो चुके है।

Thursday, July 10, 2008

काम का दिखावा

आमतौरपर कार्यालय की कुंडली में ऐसे भी महाभाग आ जाते है कि , ईमानदारी से काम करनेवाले को पूरी तरह से निचोड लेते है। अपना काम दूसरे पर डालकर काम करने का दिखावा करना तो कोई इनसे सीखे बॉस के सामने काम दिखाने का नाटक तो इस तरह होता है कि मानो सासं लेने तक की फुरसत नही। अरे भाई ये हुआ क्या , वो कहां है, यह काम उसको दिया है, उस काम का क्या हुआ , ये पूछताछ भी होती है और भी चिल्लाचिल्लाकर ताकी बॉस को भी लगे कि अरे ये कितना काम हो रहा है, एक अकेला इन्सान कितना काम करेगा। बॉस गये की इनका घुमना फिरना गप लगाना शुरू। चुपचाप से काम करनेवाले बस कोल्हू के बैल की तरह खटते ही रहते है। कोई भी आवें और काम बताकर जावै, पता होता ही है कि इनको काम दिया है तो होना है ऐसे कामचोर व्यक्तियों पर सीसीटीवी जैसी पैनी नजर रखें तो भेंद खुलते देर नही लगेगी। अच्छा कामचोरी करना तो इन्हे आता ही है और एक बात ये बखुबी निभाते है और वो है चापलुसी। चापसूसी करने में माहीर ये कुंडली के ग्रह किसी के न किसी के कुंडली में आसन जमाए रहते है। हमारे कुंडली में भी है, शायद आप के भी हो।

Friday, July 4, 2008

मिशन- एडमिशन

मनपसंद कॉलेज में ऍडमिशन लेना किसी मिशन से कम नही. कहते हैं दसवी की परीक्षा के बाद जीवन में एक नया मोड आता है, नये जीवन की शुरूवात होती है, तो जाहीर है कि छात्रो के साथ साथ उनके अभिभावक और स्कुल के टीचर को परीक्षा की कसौटी पर खरा उतरना पडता है। सालभर पढाई कर अच्छे नंबर से पास होना जितना कठिन नही होगा उतना कॉलेज में ऍडमिशन लेना। गरीबी में आटा गिला वैसे ही अब अलग अलग बोर्ड के छात्रों को एक जद्दोजेहत से गुजरना पड रहा है । मनपसंद कॉलेज के साथ साथ मनपसंद फैकेल्टी में ऍडमिशन लेना तो दूर की बात अब तो पर्सेंटाईल की सूत्र में छात्र उलझ गया है। कुछ अभिभावकों को तो इस नयी परेशानी का सामना कैसे करे ये भी समझ में नही आ रहा है। नया सूत्र नयी उलझन, ऍडमिशन मिलेगा की नही, बच्चों के भविष्य का क्या होगा यह चिता अभिभावको को खाये जा रही है। पर्सेंटाईल सूत्र ने छात्रों की नींद और चैन छिन लिया है। चाहे वो अव्वल आए छात्र हो या फिर महज पास हुए छात्र तो तलवार तो सभी के सर पर टंगी है। छात्रों को इस बात का पता नही चल पा रहा है की उनके पर्सेंटेज घट रहे है या बढ रहे है, और ये चिंता तब तक रहेगी जबतक सारी लिस्ट डिक्लेअर नही हो जाती. उधर आयसीएसी बोर्ड छात्रों के भविष्य को लेकर नाराज है और कोर्ट का दरवाजा खटखटाने जा रहे हैं। वहीं एसएससी बोर्ड के छात्रों को कॉलेजमें प्राधान्यता देने के सुर निकलने लगे है। कही इस पर्सेंटाईल सूत्र के चक्कर में एक बोर्ड के छात्र के मन में दुसरे के प्रति द्वेष ना हो। करीयर बनाने के लिए छात्र ऍडमिशन की मिशन पर निकल पडे है।

Thursday, June 26, 2008

सावन आयो रे...

आज सुबह सुबह ऑफिस जाने के लिए हमेशा की तरह निकल पडी, रात भर गर्मी की वजह से फ्रेशनेस बिल्कुल नही थी, मारे गरमी के गुस्सा, चिडचिडपना सीमाएं लांघ रही थी। जबसे गरमी का मौसम शुरू हुआ है रोज बस यही हाल होता है। बस में बैठने के बाद एहसास हुआ कि आज तो बादल घिर आए है, कहीं न कही तो बारीश की बौछारे जरूर गिरी होंगी, जैसे तैसे स्टेशन पहुंची, ट्रेन में प्रवेश भी कर लिया । सुबह सुबह आमतौर पर महिलाए थोडासा कम ही बातें करती है। कई सारी महिलाएं झपकियां ले रही थी,कोई पढ रही थी तो कोई बाहर का नजारा देखने में मशगुल थी। मेरे सामने के बेंच पर एक छात्रा और एक महिला झपकिया ले रही थी। आज थोडी गरमी कम होने का एहसास हुआ तभी खिडकी से बारीश की एक बुंद ने चेहरे को छुआ। बाहर झांक कर देखा तो हल्की सी बूदा बांदी हो रही थी । मन प्रफुल्लीत हो उठा, मेरे सामने झपकियां लेने वाली छात्रा मन ही मन मुस्कुराने लगी, महिला ने मेरी और देखकर एक स्मित हास्य किया । बारीश की कुछ बूदों ने सारे तनाव को उडन छू कर दिया। और आंखो के सामने ऐश्वर्या डोलने लगी... बरसो रे मेघा मेघा.... और मुड हो गया एकदम फ्रेश....

राजनीति वडापाव की

'वडापाव' मुंबईकरों की पहली पसंद. मुंबईमें आनेवाला कोई भी इंसान कभी भुखो नही रह सकता. गरीब हो या अमिर वडापाव खाने की चाहत सभी को होती है. लेकीन अब इस वडापाव के भाग्य बदलने जा रहे वडापाव की राजनीती इतनी गरमाती जा रही है की इसका नामकरण अब हमारे शिवाजी महाराज के नाम से किये जाने की घोषणा की गयी है। अगर वडापाव का नाम 'शिववडा' हो जाये तो आम लोग कैसे खायेंगे. पहले तो गरीब तबकेसे आनेवाले कई लोग इसे खरीदनेसे कतरायेंगें क्योंकी फिर एकबार राजनीती की चक्कीमें वे कतई पिसना नही चाहेंगे. शिववडा मांगा और फिर एक बार मराठी अस्मिता का मुद्दा बन गया तो लेने के देने पड जायेंगे.अब गरीबों के मुंह का खाना छिनने से भी यह राजनितीज्ञ कतरा नही रहे है. मुगल साम्राज्य को खदेडकर हिंदवी स्वराज्य का निर्माण करनेवाले महापुरूष का नाम वडापाव बनने जाएगा इससे बडी शर्मनाक बात कोई दुसरी हो ही नही सकती. राजनितीज्ञ इतनी हदतक गिरे जा रहे की उनको पता भी नही चल पा रहा है की लोगों की भावनाओं से खेलकर वे कतई कामयाब नही हो पायेंगे.चाहे वो लोगों की भलाई के लिए किया गया दिखावाही क्यों न हो.वडापाव मुंबईकरों का खाना है और उसे महज खाना ही रहा दिया जाए तो बेहतर होगा. आम मुंबईकरों को मेहनत करने के बाद दो निवाला सुकून का चाहिए नाकि राजनिती के खेल का मोहरा बनना."अन्नपूर्णा ही सबकी इच्छा पूरी कर सकती हैं।"

कपडो का अलग अंदाज

कपडे हम सभी पहनते है. सभी को अच्छा लगता है अलग अलग पहनावा करना.जिस तरह फॅशन की डिमांड हो उस तरह का पहराव करना कईयों को भाता भी है.पहराव करना अलग बात है लेकिन आजकल हम रास्ते पर चलते है तो सडक पर लगे बैनर , पार्टीयों के झंडे, लंबे से लंबे होर्डींग्ज का भरमार लगी होती है जिसे बनाने के लिए पार्टी लाखो रूपये खर्च कर रही है .अपने अपने पार्टीयों का झंडा बुलंद करने के लिए कपडो का भरमार रास्तों पर लगा दे रही है, क्या इसे झंडे और बॅनर के जरीए शक्तीप्रदर्शन नहीं कहा जा सकता है, आम इंसान को इसके बारे में शायद पता नही होगा, उसे इससे क्या लेना देना होगा. बस कपडे पर लिखे अक्षरों को पढना या देखकर आगे बढना यही उसकी आदत बन गयी है. झंडो और पार्टी की प्रसिद्धि के लिए कपडे का गलत इस्तेमाल करना कहाँ तक उचित होगा, जबकि कई ऐसे लोग है जिनको तन ढकने के लिए भी कपडे नसीब नही होते.क्या राजनितीक पार्टीयों के प्रमुखों को इस बारे में विचार नहीं करना चाहिए. वे इसे उचित नहां समझते . अपने शक्तीप्रदर्शन करने की होड में लगी राजनितीक पार्टीयां शहर की खूबूसूरती तो बिगाड ही रही है लेकीन अपने कर्तव्य के प्रति भी जागरूक नही है, मै भी आम इंसान की तरह इन कपडों की हो रही बर्बादी को चुपचाप देख रही हूं आप ही की तरह.

Wednesday, June 25, 2008

संवेदनाहीन मुम्बईकर

मुलुंड में एक छात्र का सडक पर एक्सीडेंट हो गया । सही वक्त पर मदत नही मिलने से इंजीनियरींग पढनेवाले छात्र को अपनी जान से हाथ धोना पडा। पादचारी को बचाने के प्रयास में महज 20 साल का वो युवक 45 मिनिट खून में लथपथ मौत से जुझता रहा, लेकिन आखिर जीत हुई मौत की ही । उस युवक को मदत करने के लिए एक इन्सानियत जागी भी लेकिन जरूरत थी और हाथों की मदत की। संवेदनाहीन मुंबईकरों ने अपनी व्यस्तता का झुठा नकाब नही उतारा, किसी भी पिता,मां भाई या बहन का दिल नही पसीजा उस युकक को जीवनदान देने के लिए। कोई गाडी नही रूकी उसकी बंद होती सांसो को बचाए रखने के लिए । हां तमाशबिनों को वक्त तो जरूर मिला लेकिन सिर्फ तमाशा देखने के लिए। जीवनदाता के रूप में कोई हाथ आगे नही बढा। कुछ दिन पहले ऐसेही एक वाकया सामने आया था जब फर्स्ट क्लास के एक कम्पार्टमेंट में खून में लथपथ एक महिला निर्वस्त्र बेहोश पडी थी। ट्रेन सीएसीटी से लेकर कल्याण पहूंची और फिर कल्याण से सीएसटी लेकिन महिला निर्वस्त्र स्थिती में ही थी। किसी महिला ने उसपर एक कपडे का टूकडा डालने की जहमत नही उठाई पुलिस को इत्तला भी की गयी लेकिन उनकी भी संवेदनाएं नही जागी क्योंकी उनके पास महिला सिपाही नही थी। शराब पिकर रईसजादे गरीब मजदुरों को अपनी गाडीयों से कुचलते ही जा रहे है और पैसे की शय पर आजाद घुम रहे है। मासुमों पर बलात्कार करनेवाले वहशी दरिंदे अपनी हवस की भुख मिटाने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाकर अपना शिकार ढूंढते रहे है। प्रेम जैसे पवित्र भावना से खिलवाड करनेवाले प्रेमियों की भी कमी नही, जिस प्यार के लिए जीने मरने की कसमें खाते है उसी प्यार पर वार करने से नही चुंकते ।क्या सचमुच मुंबईकर संवेदनाहीन बन गये है। पैसा और एहम इन्सानियत पर हावी हो रहा है। या इन्सान अपने आपको परिपुर्ण समझने की भुल कर बैठा है। उसे क्यों ऐसा लगता है की उसे कभीभी किसी प्रकार के मदत की आवश्यकता नही पडेगी। अगर जिंदादिल शहर दिलों को जीते जी ही मरने पर मजबूर कर रहा हो तो मुंबईवासी इस बात पर जरूर सोचिए की आप अमिर हो या गरीब जागिए,अंतरआत्मा को झंझोडिए क्योंकी ऐसा ना हो की कल आपका हाथ मदत मांगे और आपके हाथ निराशा लगे........

Tuesday, May 20, 2008

गणपति की धूम

मुंबई गणेशोत्सव की तैय्यारी में व्यस्त है,और पुलिस भगवान की सुरक्षा में। आतंकीयों का डर भगवान को भी है। गणपती बाप्पा भलेही दस दिनों के मेहमान नवाजी का लुत्फ उठाते है,लेकिन इन्ही दस दिनों के लिए ही करोडो रूपये के वारे न्यारे होते है। कुछ सालों पहले गणपती मंडल लिमीटेड होते थे और चंदा भी होता था ग्यारह,इक्कीस या इक्यावन रूपये का अब यह आंकडा हजारो की संख्यां में है,अगर नही दिया तो सामना करना पडता है गुंडागर्दी का। आए दिन कुकुरमुत्ते की तरह पैदा होने वाले यह मंडल क्या सचमुच गणेशभक्त होते है ये सवाल अभी बरकरार है स्पर्धा के इस युग में उंची से उंची गणेशमुर्तीयां बनवाना मंडल की प्रेस्टीज का विषय होता है। पर्यावरण को इससे हानी पहुंचे तो क्या इन मंडल के कार्यकर्ताओं के पास जवाब है की भगवान से भला कोइ प्रदुषण फैलता है। मुंबई महानगर पालिका ने भी अपील की की गणेश मुर्तीयां 8 फीट से बडी होगी तो उसे स्पर्धा में शामील नही कीया जाएगा,लेकिन मंडलों की नाराजगी ने ही प्रदुषण फैलाया और बीएमसी ने पर्यावरण की प्राथमीकता को कोई खास तवज्जो नही दी। आखीर सत्ता में बने रहने की चिंता उन्हे भी है। यह बात भी सच है की मुर्तीयां बनाने वाले हजारों लोगो का भरणपोषण इसी उत्सव पर निर्भर होता है। लेकिन समुद्र में फैल रहे प्रदुषण की वजह से मछलीयां मर जाती है,जिसकी वजह से मछुवारों पर भी अब भुखो मरने की बारी आयी । गणेशोत्सव के लिए इकठ्ठा किए गए चंदे का लेखा जोखा होता तो है, लेकिन जमा पैसे का कितना बडा हिस्सा कारगर कामों पर खर्च किया जाता है इसके उदाहरण उंगलीयों पर गिने जा सकते है। लाखों रूपये का चढावा चढाने वाले भक्त भी केवल सोने-चांदी की भेट देकर बाप्पा को धन्यवाद देते है,लेकिन गरीब और अनाथों के लिए मदत देने से इनके धन में इजाफा नही होता जो बाप्पा को देने के बाद होता है। चढावे के पैसे का कितना सही उपयोग होता है या उन पैसे या चढावे का क्या अंजाम होता है इनसे भक्तों को कौई सरोकार नही है क्योंकी भगवान के मामले में तेरी भी चुप और मेरी भी चुप. बुध्दी के इस देवता के सजावट के लिए जगमगाहट ना हो ऐसे तो हो ही नही सकता । भलेही महाराष्ट्र में पंधरा पंधरा घंटे का लोडशेडिंग हो और किसानो की फसल बिजली और पानी के अभाव के चलते चौपट हौ जाए ।मुंबई में तो दस दिनो में ही सालभर लगने वाली बिजली की खपत हो जाती है और बिजलीचोरों की महारथ तो ऐसे की तो प्रशासन के नाक के निचे ही वे अपना गोरखधंदा बिनदिक्कत चला रहे है। करोडो रूपये के इस उत्सव में चाहे हत्याएं हो, हप्तेबाजी हो,किसानों की आत्महत्याओं का सिलसिला जारी रहे,बालमजदुरी का जहर फैलता रहे, बलात्कार की घटनाएं आम होती जाएं लेकिन गणोशोत्सव की धूम जारी रहेगी पुरे आनंद और उत्साह के साथ..

स्वागत है आपका

कुछ आप कहें कुछ हम तब जाकर इस जमाने से कदम से कदम मिला कर जमाने से जंग लड़ी जा सकती है। फिलहाल हर जगह एक ही बातें हो रही कि सरकार ने अपनी नकारापन साफ जाहिर किया है। एक आदर्श स्थापित करने का हौसला रखना होगा तभी जाकर के कुछ अपनी भी जिम्मेवारियों का निर्वहन हो सकेगा भले ही वो एक हों या बहुतेरी हों। जलेम ते हम एक दूसरे से सहयोग करने के लिए तैयार हो जाए और कदम से कदम मिला ले , हो सके तो अपने सारे गिले शिकवे को भी भूल जाए।

Monday, May 19, 2008

एक शुरुआत

हमारे और आपके बीच की कड़ी होगी ये बातें, कोशिश करुगी कि आपके साथ यह संपर्क बराबर बना रहे।