Monday, September 15, 2008

देश के गद्दारों के हौसले

फिर एक बार आतंकी अपने गंदे और नापाक इरादे को अंजाम देने में कामयाब हो गये। आतंकीयो ने फिर एक बार फिर सुरक्षा व्यवस्था को धत्ता बताया। राजधानी में सिलसिलेवार बम विस्फोट करा कर फिर एक बार मासूम लोगो को निशाना बनाया गया। राजधानी में चाकचौबंद सुरक्षा व्यवस्था होने के बाद भी देश के गद्दारों ने नमक का कर्ज अदा नही किया। संगठन का नाम है इंडियन मुजाहिद्दीन, जिस देश मं पनाह ले रहे है, उसे ही दीमक की तरह खोकला बनाते जा रहे है। ज़ेहाद के नाम पर युवाओं को गुमराह किया जा रहा है, मदरसों में धार्मिक शिक्षा के नाम पर बच्चों को आतंकी की शिक्षा दी जा रही है और उन्हें ज़ेहाद का पाठ पढाया जा रहा है। साथ ही हमारे नेता इनके हौसले और भी बुलंद करते दिखायी दे रहे है। एक ओर आतकवाद की निंदा कर रहे है, तो दूसरी ओर सीमी जैसे संगठन पर पाबंदी के खिलाफ खडे नजर आते है। इसके सबसे बडे हिमायती और शुभचिन्तक बने हैं। बडी ही आधुनिक तकनीक को अपनाकर इन आतंकीयों ने एटीएस को भी चुनौती दी है। अहमदाबाद ब्लास्ट के सिलसिले में भेजे गये इमेल की तफ़तीश अभी चल रही थी कि तब तक दूसरा भी इमेल आ गया। अब एक नया सच सामने आया है, कि इन आंतकीयों को कुछ कुछ टिप्स आई.बी. से भी मिल जाती है। गुप्तचर संस्थाएँ तो आगाह करती आ रही है, लेकिन उसे गंभीरता से नहीं लिया जा रहै है, क्योकि इसमें मंत्री जी का लाभ नजर नहीं आ रहा है। प्यास लगने के बाद कुवां खोदने की कोशिश का दिखावा किया जा रहै है। यूपी पुलिस को गुजरात ब्लास्ट के आरोपी के संगी साथियों के बारे में जानकारी देने के बावजूद भी उसे हल्के में लिया गया। दिल्ली सरकार ने मुआवजे का तो ऐलान किया है, लेकिन लाइफ सेविंग दवाईयों की किल्लत ही जख्मियों जान ले रही है। केंद्र सरकार ने यह माना कि खुफिया विभाग ने इस बात की जानकारी दी थी कि दिल्ली में हमला होगा लेकिन कब और कैसे इस बात की जानकारी उनके पास नही थी, तभी तो कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पडा और कई मौत से जुझ रहे है। कबतक आम जनता अपने खून से आतंकीयों की प्यास बुझाते रहेगी और अपाहिज राज्य सरकारों से अपनी सुरक्षा के लिए निर्भर रहेंगी। भागदौड की इस जिदंगी में हम आम इंसान भले ही आतंकीयों के इरादे न जान पाये, लेकिन सजगता से भी अपने आस पास हो रही नापाक करतूतों पर नजर रखे, और उन नापाक इरादों को कुचलने के लिए एक साथ जुट जायें तो कितनी ही आपदा आए, हिंदुस्तान नही डगमगाएगा।

Friday, September 12, 2008

सरकार का राज से माफीनामा.....

दो दिनो से चल रहे मनसे के आंदोलन के बाद अभिनेता अमिताभ बच्चन ने मिडीया से रूबरू होकर मनसे नेता से माफी मांगी। अब की बार मनसे ने उत्तर भारतीयों को नही बल्कि सिर्फ बच्चन फैमिली को टार्गेट बनाते हुए उनके पोस्टर को फाडे, प्रोडक्ट का बहिष्कार किया । अमिताभ बच्चन इस बात से बेहद आहत नजर आये की मनसे ने उनके परिवार को निशाना बनाया जबकी वो महाराष्ट्र का काफी सम्मान करते है। मुंबई उनकी कर्मभूमी है। उन्हे मुंबई ने ही शोहरत दी है। उन्होने अपनी माफीनामा में मराठी भाषा के लिए या लोगों को दिये गये दान का फिर जिक्र किया । जब भी मराठी भाषा के प्रति सम्मान जताने की बात आती है, तो मराठी फिल्म श्वास के लिए दिए गए चंदे की बात आती है। श्री अमिताभ बच्चन से मराठी लोग भी उसी तरह प्यार करते है, जिस तरह देश की और अवाम करती है। आगामी फिल्मों के प्रदर्शन पर रोक लगते देख बच्चन जी को आनन फानन में अपना बयान जारी करना पडा। साथ ही साथ उन्होने मनसे नेता को अपना भाई और मित्र भी कह डाला। अमन शांति पसंद करनेवाले बच्चनजी ने अपनी धर्मपत्नी के बयान के लिए माफी मांगी। मराठी बनाम उत्तर भारतीयों का मुद्दा फिर कुरेदकर निकाल अंशाति फैलानेवालों लोगों से अब आम लोगों को सावधान रहना होगा। ये विद्वेष का जहर फैलानेवाले लोग आपस में ही बाँट रहे हैं अपनी राजनीति चमकाने के लिए ये हर स्तर तक जा रहे हैं। जिस प्रदेश ने हमें प्यार, रोजगार सम्मान दिया है, उस प्रदेश के विकास में हाथ बटाना सभी का कर्तव्य है। भारत के कई राज्य किसी एक भाषा या धर्म के लोगो की वजह से जाना जाता होगा । लेकिन सभी जाति, धर्म, और भाषा बोलनेवालों की मुंबई अब विकास की ओर बढने की बजाय प्रातंवाद के लडाई में विनाश की ओर जा रही है। मुंबई में रहनेवाले सभी मुंबईकर है, मुंबईकरों को अपनी दिल की आवाज सुननी होगी, कि प्रातंवाद का बढावा देना है, या फिर प्रांतवाद को बढावा देनेवालों के खिलाफ एकजुट होना है। नेता लोगों के भलाई का सोचे और कलाकार अपने अदाकारी से समाज को सीख दें या फिर लोगों का मनोरंजन करें । तो बेहतर होगा, अपने जन्मस्थल और कर्मस्थल दोनो का ही सम्मान होना जरूरी है। एक ने जन्म दिया है, और दूसरे ने जन्म को सार्थक किया है।

Monday, September 8, 2008

गणपति बाप्पा मोरया...

गणपति बप्पा के आगमन के बाद मुंबई शहर रातभर जाग रहा है साथ ही जगमगा रास्ते भी रहे हैं। हर तरफ रोशनी ही रोशनी। दिन भर अपना कामकाज खत्म करने के बाद मुंबईवासी निकल पडते है, अपने लाडले भगवान के दर्शन के लिए। घंटो घटों तक लाईन लगाकर अपनी मनोकामना पूरी होने के लिए भक्त अपने आराध्य के पास इच्छा जताते नजर आ रहे है। खास बात तो यह है की भक्त सिर्फ अपने परिवार के साथ ही नही बल्कि अपने मित्र- परिवार या मुहल्ले के लोगों के साथ इकठ्ठा निकलते है। मुंबईवासीयों को एक साथ रहने का यही अंदाज अच्छा लगता है। छोटे छोटे बच्चे भी जागकर मुंबई की चकाचौंध को निहारते नजर आते है। हर रास्ता, गली, मुंहल्ला इन दिनो जगमगा रहा है। दिन में बाजारो में चहल पहल रहती है, तो रातों में सडके ठेलों से भरी पडी रहती है। लोकल ट्रेन में आमतौर पर महिलाओं के डिब्बे में महिलायों की संख्या कम रहती है, लेकिन गणेशोत्सव के दरम्यान महिलाओं की संख्या काफी तादाद में रहती है। गणपति में मुंबई को पूरे बारह दिन एक नया उत्साह मिलता है। सुबह भी घर से निकलते वक्त कही न कही गणपति बप्पा के दर्शन हो ही जाते है। और रात में जगमगाती रोशनी में अपने आराध्य के दर्शन के बाद लोगों की सारी थकावट दूर होती है। मुंबई के साथ साथ पूरे महाराष्ट्र में गणपति की धूम होती है ,और सबसे ज्यादा तब सोने पर सुहागा होता है जब घर घर में मिठे पकवान बनते है। साथ ही मिठाईंयां भी भरपूर खाने मिलती है। बाहर से आनेवाले लोगों को यह जरूर महसूस हो सकता है कि मुंबईकर पैसे के पीछे भागते हैं, उनमें भावनाएं नही होती। किसी से कोई लगाव नही जताते खासकर किसी अनजान व्यक्तीयों से। लेकिन गणेशोत्सव के इस पर्व से इन सब बातों को झुठलाया जाता है। कंधे से कंधा लगाकर गणेशभक्त अपने आप को भुलकर समाज के लिए कुछ करने की भावना रखता है। रात भर जागकर गणेशोत्सव की तैयारी करता है। और पूरी श्रध्दा और भक्ति से गणपति बप्पा के इस पावन त्योहार को सफल बनाने के लिए जी- जान से प्रयास करता है। आधुनिकता की इस दौर में समाज सकुंचित होता जा रहा है ऐसी शिकायते है , लेकिन हम सचमुच शुक्रगुजार है उस महान पुरूष बाल गंगाधर तिलक के जिन्होने गणेशोत्सव के माध्यम से लोगों को एक्ठ्ठा करने का सफल प्रयास किया और अंग्रेजो के खिलाफ रणनीति बनायी। अंग्रेज तो चले गये अब उनकी जगह ली है आंतकीयों ने । मुंबई आतंकीयों के निशाने पर है आतंकी बराबर इसको नुकसान पहुँचाने की कोशिश करते रहते हैं। जैसे गणेशोत्सव में ना कोई जाति धर्म,प्रदेश और समाज का बंधन रहता है उसी तरह इन आतंकियों से निपटने के लिए भी एक बार फिर लोगों के साथ जरूर आना पडेगा। राजनैतिक पार्टियाँ एक दूसरे को दूर करने में अपना कोर कसर नहीं छोड़ती लेकिन जरुरत है कि इस मसले को समझा जाए और साथ मिलकर के गणपति बप्पा का जयजयकार किया जाए....और कहा जाए ...गणपति बप्पा मोरया.. पुढच्या वर्षी लवकर या......

Wednesday, September 3, 2008

मराठी अस्मिता के लिए..........?

लोगों की भावना भडकाकर समाज में अशांति पैदा करनेवाले व्यक्तियों पर कुछ लिखना या उनके द्वारा चलाये गये अभियान पर अपनी टिप्पणी देकर उन्हे महत्व देना ये मुझे कतई पसंद नही। फिर भी मनसे नेता की आक्रामक भुमिका पर मैं अपने विचार रख रही हूं। महाराष्ट्र और खासकर मुंबई में मराठी अस्मिता को बचाए रखने के लिए कई दिनों से मनसे ने आक्रमक भूमिका अपनायी है। महाराष्ट्र में रहनेवाले सभी गैरमराठी लोगों को मराठी भाषा का सम्मान करना जरूरी होगा ऐसा फरमान मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे ने जारी किया। महाराष्ट्र में मराठी भाषा को उचित सम्मान मिलना चाहिए , मराठीयों का आदर होना चाहिए। भूमीपुत्रों को रोजगार में प्राथमिकता मिलनी चाहिए , इन बातों की ओर युवाओं को आकर्षित करने में राज ठाकरे ने सफलता पायी है। मैं भी एक मराठी हूं लेकिन मराठी अस्मिता को बचाने के लिए मनसे नेता ने पढे लिखे युवाओं के हाथों में पत्थर,लाठी और डंडे थमा दी है.। युवाओं को सही दिशा देकर उन्हे एक सही राह देने के बजाय मराठी बनाम परप्रांत का मुद्दा खडा कर दिया। मराठी अस्मिता को बचाए रखने का प्रयास करना कोई गलत बात नही लेकिन जबरदस्ती लोगों से सम्मान नही पाया जा सकता है। फिर सवाल उठता है कि वो आखिर करें तो क्या करे पार्टी का गठन किया है , इसलिए राजनीति तो करनी ही है। जनतंत्र में देशवासियों को कही भी आने जाने से रोका नही जा सकता। लेकिन बाहर से आनेवाले लोगों की वजह से स्थानीय लोगों को तकलीफ ना हो ये देखना सरकार का काम है। देवनागरी लिपी में साईनबोर्ड लिखे जाये ये आग्रह करके तोडफोड करना बडी ही शर्मनाक बात है। अगर मराठीयों को स्पर्धा की दौड में उतारना हो तो राज ठाकरे को मराठी युवाओं के लिए कोई ठोस योजनाएँ बनानी होगी एक नया प्रोग्राम देना होगा। रोजगार के साधन मुहैय्या कराना चाहिए । हर क्षेत्र में स्पर्द्धा होती है लेकिन वो स्वस्थ्य कम्पटीशन होनी चादिए। छीनेने से सम्मान नही मिल सकता, लोगों की सोच को किस तरह से बदलना है, ये आप पर निर्भर होगा । आम लोगों को ये जानना होगा कि उन्हे ही एक दूसरे के सहयोग से रहना होगा। राजनेताओं के बहकावे में आये या अपने आप को स्पर्धा में उतारे। तोडफोड करना, मारपीट करके हमारे अपने ही भाई- बधुं को आहत करे या फिर अपने लिए सम्मान हासिल करे चाहे वो किसी भी धर्म, या जाति के हो।