Wednesday, January 20, 2010

अब की बारी दूध.....

केंद्रीय कृषी मंत्री श्री शरद पवार का एक और बयान, जो मुनाफाखोरो के लिए वरदान साबित होगा। पहले चावल, फिर दाल बाद में गाज गिरी चीनी पर अबकी बारी है दुध की । शरद पवार जी का बयान है की भविष्य में दूध की किल्लत होगी याने दूध महंगा होगा । धिरे धिरे आम आदमी के मुंह से बचा कुचा निवाला भी छिने जाने की तैय्यारी। एनसीपी नेता तारीक अन्वर कह रहे है की शरद पवार एक जिम्मेदार व्यक्ती है और किसी भी चिज की किल्लत होगी तो वो चिज महंगी तो होनी ही है। भारत दूध उत्पादन में नंबर एक पर है, वावजूद इसके लोगों को एक लिटर दूध के लिए 40 रूपये देने पडते है। अभी यह हाल है तो शरद पवार के बयान के बाद दूध के दाम आसमान छुने लगेंगे। बच्चों के मुंह से दूध की प्याली छिन जाएगी। चलिए हम विश्वास रखते है की भले ही कृषीमंत्रीजी की यह बिल्कूल भी मंशा नही होगी की जरूरी चिजों के दाम बढे लेकीन उनके बयान आम आदमी की कमर तोड रहा है। चिनी के दाम बढने से चाय की मिठास पहले से ही कम हूई थी अब रंग भी फिका हो जाएगा। वैसे भी गरीब आदमी चाय पीकर अपनी भुख को दबा रहा है। मंहगाई के मुद्दे पर तो मायावतीजी ने श्री शरद पवार को मंत्रीमंडल से हटाने तक की मांग कर डाली । दुसरे दिन पवार साहब अपने बयान से मुकरे जरूर है लेकीन महाराष्ट्र में इसका असर जरूर हो गया है। गोकुल दूध के दाम प्रती लिटर २ रूपयोंसे जरूर बढे है। आमदनी अठ्ठनी और खर्चा दो रूपया हो गया है। मंत्रीजी से यह बिनती है की आप भविष्यवाणी करके आम आदमी के मुह का निवाला तो मत छिनीए।

Tuesday, January 12, 2010

मंत्रीजी मांगे मोर.....

बढती महंगाई ने आम आदमी की पहले से ही कमर तोड दी है। राशन का खर्चा, घर का किराया, बच्चो की फीस का खर्चा निकालकर कुछ सेव्हींग करना मुश्कील बात है फिर भी मुंबई में बसेरा हो यह सबकी चाहत होती है । आम आदमी का मुंबई में घर खरीदने का सपना महज सपना ही रह गया है। घर का सपना आम मुंबईकरों को शहर से दूर ले गया है। आमदनी अठ्ठनी और खर्चा रूपय्या ऐसी हालात में गुजर बसर करना लाजमी हो गया। मंहगाई की मार ने तो दो वक्त के खाने में कजुंसी करने पर मजबूर कर दिया है। लेकिन महाराष्ट्र सरकार करोडो रूपयों के वारे न्यारे कर रही है, वो भी जनता के पैसो पर। महाराष्ट्र सरकारने मंत्रीयों के केबीन को नया लूक देने का काम शुरू कर दिया है। एक एक केबीन के रिनोवेशन का खर्च है 10 लाख से लेकर 25 लाख रूपये। एक केबीन के खर्च में एक परिवार अपना घरौंदा बना सकता है। एक और जहां सरकार करोडो रूपयों के कर्ज तले दबी है, वहीं दुसरी और लोगों का पैसा पानी के तरह बहाया जा रहा है। मंत्रालय को अब कॉर्पोरेट लूक चाहिए। एसी केबीन में बैठकर किसानो और पीडीतों का दुख दर्द सुना जाएगा। किसानों की फसल की नुकसान की चर्चा अब मंहगी केबीन में बैठकर की जाएगी। मुंबई महाराष्ट्र की जनता महंगाई, बेमोसमी बारीश, बेरोजगारी से त्रस्त है, वहीं सरकार करोडो रूपये खर्च करने में मस्त है। केंद्रीय कृषीमंत्री ने ये कहकर अपना पल्ला झाड लिया की चीनी के दाम कब कम होगें यह कहने के लिए मै कोई ज्योतिषी नही हू। कृषीमंत्री का यह बयान मुनाफाखोरों की जेबे भर रहा है। मुनाफाखोर तो बस इसी ताक में है की कब सरकार यह ऐलान करे की महंगाई पर काबू नही पाया जा रहा है और कब वे अपने गोदाम में रखे माल को दुगने तिगुने दाम में बेचकर मालामाल हो जाए। कृषीमंत्रीजी को ज्योतिषी नही बनना है तो ना सही लेकिन कम से कम एक अच्छा मंत्री बनकर लोगों के दुख को दूर नही लेकिन कम तो जरूर कर सकते है। आतंकी हमले से निपटने के लिए मुंबई पुलिस को आधुनिक हथियारों से लैस करने करने की कवायद तो हो रही है, लेकिन अभीभी नक्षल प्रभावित क्षेत्र में पुलिस को अपनी जान की बाजी लगाकर शहिद होना पड रहा है। उनके पास ना तो आधुनिक हथियार है नाही जंगल का मुआयना करने के लिए हेलीकॉप्टर। मंत्रीयों में जरासी भी संजीदगी बची हो तो पुलिस बल को सक्षम करे, महंगाई कम करने के लिए ठोस उपाय ढूंढे । अलिशान केबिन में बैठकर मगरमच्छ के आसुं मत बहाईये।

Tuesday, January 5, 2010

बच्चे का दोस्त बनिए

नये साल का चौथा दिन कईयों ने नये साल के लिए अलग –अलग प्लान बनाये होंगे, कईयों ने नया कुछ करने का संकल्प किया होगा। मुंबई ने नये साल का स्वागत जोशो खरोश में किया । आतंकीयों के हमले में पिछले साल सहमी मुंबई नये साल में फिर एक बार नये सिरे से पुरी ताकद के साथ खडी हूई। लेकिन नये साल की खुशियों में सराबोर मुंबई पर सोमवार को जैसा मातमसा छा गया । दिन एक घटनाएं तीन मुंबई में अलग अलग तीन जगहों पर दो छात्राएं और एक छात्र ने आत्महत्या की। तीनो छात्रों ने एक ही तरीका अपनाया फांसी का फंदा। मुंबई से सटे डोंबिवली में छठी कक्षा में पढनेवाली नेहा ने मौत को गले लगाया। नेहा पढने में तो होशियार थी साथ ही नृत्य में भी निपूण। नृत्य के लिए उसे कई अवार्ड भी मिल चुके है। नेहा का पढाई में ध्यान लगने के लिए उसका डान्स क्लास बंद कराया गया। बस यही कारण था नेहा ने घर में फांसी ले ली। नेहा उसका डान्स बंद नही करना चाहती थी, यह सदमा वो सह नही पायी और उसने मौत को गले लगाना पसंद किया। दूसरा वाकया दादर के शारदाश्रम स्कूल का है। सातवी कक्षा में पढनेवाले सुशांत ने स्कूल के टॉयलेट में फांसी लगाकर आत्महत्या की। सेकंड सेमिस्टर में सुशांत चार सब्जेक्ट में फेल हो गया । वहीं तीसरी आत्महत्या की है पवई में रहनेवाले भजनप्रीत कौर ने। एमबीबीएस के पहली वर्ष की छात्रा भजनप्रीत के परिक्षा में कम नंबर आये थे। एक दिन में घटी तिनों घटनाओं को देखकर मुंबई दहल गयी। अभिभावक दहशत में है। प्राथमिक अनुमान निकाला जाए तो छात्रों की आत्महत्या के पिछे का कारण है पढाई का बोझ, और परिवारवालों की बढती अपेक्षा। अभिभावकों को लगता है की अपना बच्चा पढाई में अव्वल हो, समाज में उसे उचीत सम्मान मिले। लेकिन वो भूल जाते है की उनके बच्चा रेस में दौडनेवाला घोडा नही है। बच्चों पर पढाई का बोझ लादना सरासर गलत तो है ही लेकिन बच्चों के साथ संवाद का अभाव भी एक कारण है। बच्चों के उज्वल भविष्य के लिए माता- पिता दोनो को नौकरी करना अनिवार्य हो गया है। अभिभावक पैसा कमाकर बच्चों की जरूरतों को पुरा कर रहे है, लेकिन इस व्यस्तता में वे भूल रहे है की बच्चों से बैठकर बात करना उनकी मानसिकता समझना बेहद जरूरी है। बच्चों की कमजोरी पर उन्हे डांटकर नही बल्की उनकी परेशानियों का हल निकालना जरूरी है। साथ ही टिचर्स ने भी बच्चों की कमजोरीयों को भांपना जरूरी है। बच्चों में हो रहे बदलाव पर नजर रखकर उसे उचीत समय पर डॉक्टर को दिखाना होगा। बच्चों के दोस्त बनिए, अपनी इच्छा के बोझतले उन्हे मत दबाईये। उनके अंदर छुपे गुणों को बढावा दिजीए। आपका बच्चा सही मायने में मानसिक और शारीरीक रूप से स्वस्थ रहेगा और कामयाबी को चुमेगा।

Monday, January 4, 2010

करियर का विनाश- रैगिंग

मुझे आज भी याद है कॉलेज को वो दिन, एडमिशन लेते वक्त काफी खुशी थी, कैसा होगा कॉलेज, स्टुडेन्टस कैसे होगे, टिचर्स कैसे पढाएंगे इस बात का एक्साईटमेंट था। लेकिन जब कॉलेज का पहला दिन आया तो कॉलेज जाने से डर लगने लगा। डर पढाई का नही था बल्कि रैगिंग का नाम सुन रखा था। कुछ साल पहले भी कॉलेज में रैगिंग का चलन था, लेकिन आज जिस तरह वहशियाना है उस तरह का नजारा पहले नही था। कॉलेज में सिनीअर्स ज्युनियर्स का मजाक उडाते थे, वह मजाक केवल मजाक तक ही सीमित रहता था। बाद में सिनिअर्स ज्युनिअर्स को अपने नोटस देकर उन्हे पढाई करने का तरीका भी सिखाते थे। लेकिन आज का दौर काफी आगे निकल गया है। नयी नयी तकनीक से लैस छात्रों को छेडछाड के नये नये तरीके आसानी से मिल रहे है। आज पढने पढाने का तरीका, रहन सहन का तरीका बिल्कुल बदल चुका है। छात्रों से बदसलूकी करना, लडकियों से छेडछाड करना आम बात हो गयी है। रैगिंग का विभत्स रूप सामने आ रहा है। अश्लीलता ने अपने हाथ पांव पसारे है। और अश्लीलता का शिकार बन रहे है मासूम छात्र। पैसा और तकनीक को इन्सानियत से ज्यादा जगह मिल रही है। रैगिंग के शिकार सैकडों बच्चो ने आत्महत्या करके मौत को गले लगा लिया वहीं कई बच्चों की मानसिक हालात ठीक नही है, उनकी जिंदगी पुरी तरह से बर्बाद हो गयी है। सुप्रीम कोर्ट ने रैगिंग के खिलाफ ठोस कदम उठाने के निर्देश भी दिए है बाबजूद ऐसी घटनाओं में कमी नही आ रही है। रैगिंग के खिलाफ कानूनी कारवाई तो हो रही है, लेकिन जो छात्र उसका शिकार हो रहे है उनकी जिंदगी का खामियाजा कोन देगा। फिल्में देखकर उसमें दिखायी गयी निगेटिव बातों को अमल में लाना सरासर बेवकूफी है। फिल्में सिर्फ मनोरंजन के लिए देखें ना ही उसका दुरूपयोग करने के लिए। ज्युनिअर्स से मजाक मस्ती जरूर करें लेकिन सिनिअर्स होने के नाते उनकी रक्षा करना आपकी जिम्मेदारी बनती है। संस्कार सफलता की कुंजी है, उसे खो देने से जीवन पार तो हो जाता है लेकिन सफल नही होता। छात्र भी यह जान ले की अन्य छात्रों को मारपीट करके या उनसे अश्लील हरकते करवाकर उनका तो कुछ फायदा नही होगा बल्कि खुद उनका ही करियर बर्बाद होगा। विद्या के मंदीर को कलंकित करने से मंदीर पर काला धब्बा तो लग ही जाता है लेकिन दुष्कर्म करनेवाले को सजा भी जरूर मिलेगी। के. ई.एम के 18 छात्रों के खिलाफ पुलिस केस बन चुका है, उन्हे पढने की इजाजत तो दी गयी है, लेकिन उन्हे हॉस्टल से धक्का मारकर निकाला गया । पढाई के लिए मिलनेवाला पैसा भी हाथ से निकल गया साथ ही अब वो किसी भी कॉम्पीटिशन में हिस्सा नही ले पायेंगे। इस सब घटनाओं मे उन मां बाप का क्या कसूर जिन्होने अपना पेट काटकर, कर्ज लेकर मेडिकल में अपने बच्चे का दाखिला करवाया है, वो कहां से लाये पढाई के लिए ढेर सारा पैसा। रैगिंग करना आसान है, लेकिन उसका खामियाजा भुगतना दर्दनाक है। कॉलेज लाईफ जरूर एन्जॉय किजीए लेकिन गलत इरादों को फलने फूलने ना दें।