महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने की नारायण राणे कि लालसा ने उन्हें पार्टी से बाहर का ही रास्ता दिखा दिया। शिवसेना से बगावत करके कॉंग्रेस में शामिल हुए नारायण राणे नें कांग्रेस भी अपनी अच्छी खासी पैठ बना ली थी, जिसके कारण विलासराव देशमुख सरकार का कच्चा चिट्ठा खोलने वे सोनिया गांधी के दरबार में भी हाजिरी लगा चुके थे। कई बार देशमुख को मुख्यमंत्री पद से हटाने की नाकाम कोशिश भी वे कर चुके थे।
मुंह-तोड जवाब देने का दमखम रखनेवाले नारायण राणे ने शिवसेना छोड कॉग्रेस में आने के बाद भी अपना वजूद बरकरार रखा । मुख्यमंत्री पद के दावेदार बनने के लिए उन्होने विधायकों के अच्छे खासे समर्थन भी जुटा लिया था, लेकिन अफसोस वे मुख्यमंत्री की कुर्सी हथियाने में नाकामयाब रहे। आग बबूला नारायण राणे का क्रोध खुलकर सामने आया जिसे देखकर सभी भौचक्के रह गये। नारायण राणे ने न आवं देखा न ताव सीधे सीधे सभी कॉंग्रेस के वरिष्ठ नेताओं पर निशाना साधा। विलासराव देशमुख पर निशाना साधते हुए उन्होने देशमुख को महाराष्ट्र का कलंक तक कह डाला। देश में हुए सबसे बडे आतंकी हमले को रोकने के लिए देशमुख सरकार नकाम रही। ये बात सोलह आने सच है कि ये जिम्मेवारी मौजूदा सरकार की ही थी। अब इसे इंटिलीजेन्स फेल्युअर कहे या सरकार का निकम्मापन जो समय रहते ही ना तो हमले को होने से पहले रोक पायी नाही आतंकियों का मुकाबला करने के लिए पुलिस को आधुनिक सुविधाएं मुहैय्या करा पायी। हमले की जिम्मेवारी लेते हुए जिन्होने अंतरात्मा की आवाज सुनकर इस्तीफा दिया, वो महज लोगों की नजरों में अपनी छवी अच्छी बनाए रखने के लिए था। सत्ता कि लालसा किस तरह इन्सानियत या देश के प्रति फर्ज से बडी होती है, ये नारायण राणे की करतूतों को देखकर सभी को अंदाजा आ गया होगा। मुख्यमंत्री बनने की होड में लगे मंत्रीयों के घर जमावडा लगा था। खान-पान का अच्छा खासा आयोजन किया गया था और इसी दौरान जोड- तोड का तंत्र भी अपनाया जा रहा था। वहीं दूसरी ओर आतंक के खौफनाक चेहरे को याद कर लोग अभी भी सिहर उठते है। देश के विकास के लिए चुने गये मंत्री जी खुद के विकास कि योजना बना रहे थे, महज आठ दिनों में लोगों का दुख-दर्द भुलानेवाले राणे जैसे नेताओं ने देश के लिए शहीद होनेवाले जाबांजो की शहादत पर कालिक पोत दी। पूरा देश जहां शहीदों को श्रध्दांजलि दे रहा है, वहीं कुर्सी के लिए हो रही रस्साकशी बेहद शर्मनाक रही। लेकिन अब इन नेताओं को याद दिलाना होगा कि जिस कुर्सी को लिए वे झगड रहे है उसका अधिकार जनता के पास है। इतने बडे हादसे से कुछ सीख लेकर अगर इन नेताओं की नींद नही टूटेगी तो जनता को खुद ही जगते रहना होगा, और इन नेताओं को कुंभकर्णी नींद से झकझोर कर उठाना होगा।
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