नागपूर में १ अगस्त को 10 वर्षीय ने फांसी लगाकर खुदखुशी की। वजह उसे ज्यादा देर तक कार्टून देखने के लिये उसके चाचा ने मना किया। कमलेश ने कमरे में जाकर अंदर से मौत को गले लगाया। घटना को सुनकर उसकी लाश को देखकर दिल दहला गया। आजकल बच्चो की मानसिकता बदलती जा रही है। पढाई का बोझ, फिर ट्यूशन, पेंटीग क्लासेस, डान्सिंग क्लासेस का प्रेशर। बच्चे तो आजकल खेलना कुदना ही भूल गये है। टीवी, गेम शो, इंटरनेट, मोबाईल जैसी चीजों ने बच्चो को समय से पहले ही मैच्यूअर बना दिया है। आमिर खान की फिल्म तारें जमीं पर देखी, फिल्म दिल को छू गयी थी। अब यह जिम्मेदारी पूरी तरह अभिभावको की है,कि मिट्टी के कच्चे घडे को कैसा आकार देना है। अब है को डाट डपटकर नही बल्कि उनके मित्र बनकर बातें समझनी होगी, और अच्छी बातें समझानी भी होगी। अचानक बच्चे चिडचिडे नही बनते, उसके पिछे छिपे कई कारणों को अभिभावक कों खुद ही खोजना होगा। उनके साथ समय बिताना होगा। शहरों में मां और पिता दोनो के नौकरीपेशा होने की वजह से बच्चों की तरफ ना चाहते हुए भी अनदेखी हो जाती है। कच्ची उम्र में बच्चों को सही दिशा देना बहुत जरूरी होता है। खेल,कुद, सेहत, पढाई इन सब बातों पर अगर अभिभावक समय रहते ही ध्यान न दे तो बच्चे के शारीरीक और मानसिक बदलाव के दौरान कई परेशानियां आ सकती है। चाहे आप बच्चों को उचित समय ना दे पायें लेकिन इतना जरूर ध्यान में रखना चाहिए कि बच्चों को ढेर सारा प्यार दे, उनकी जरूरतों को समझे, उन्हे प्यार से समझाये, उनके साथ मित्रता रखें। मैत्री और प्यार का भाव दुराव नष्ट करके परिवार को आपस में जोडता ही है।
1 comment:
अच्छा लगा आपके नये लेख को देखकर लगता है आप भी लोगों की मानसिकता से दु:खी हैं बात सच है उपर कुछ और नीचे कुछ और होता है।-- बॉबी सिंह
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