Thursday, April 9, 2009

चुनाव और पैसे की बाढ़....

आगामी लोकसभा के लिए चुनाव होने जा रहे है। सभी पार्टीयों ने अपने अपने उम्मीदवार चुन लिए है, और प्रचार के लिए पूरे देशभर में रैलीयों का आयोजन किया गया है। बडे बडे दिग्गज नेता अपने चुनाव क्षेत्र के साथ-साथ पार्टी के उम्मीदवारों के लिए भी वोट मागं रहे है। राजनीति के बारे में मैं बहुत कुछ तो नही जानती लेकिन आम आदमी के जेहन मे जो सवाल उठते होगें वो मेरे भी दिमाग में रह-रह कर आते है। देश के बडे से बडे नेता के पास न रहने को घर है , ना ही चलने के लिए गाडी। नॉमिनेशन फॉर्म में तो कईयों ने लिखा है कि वो सरकारी घर में रहते है, किसी की संपत्ति पुश्तैनी है तो किसी के पास गुजर बसर करने के लिए थोडा सा धन। एक आम आदमी कैसे यकीन कर सकता है की देश को चलाने वाले नेताओं ने ईमानदारी से अपने संपत्ति को ब्योरा दिया है। कई नेताओं के संपत्ति का ब्योरा देखकर तो कई मध्यमवर्गीय लोगों को लगता होगा कि हम इन नेताओं से अमीर है। लेकिन ऐसा नहीं है हालात ये है कि इन नेताओं की अरबों की काली कमाई विदेशी बैंकों में जमा है। अगर वो सारी रकम अपने देश में आ जाए तो हर किसी के लिए घर बन सकता है और हर किसी के खाने की समस्या दूर हो सकती है। लेकिन ये सांप की तरह अपनी काली कमाई पर कुंडली मार कर बैठे हैं। ना ही इस काली कमाई को कोई ब्योरा भी देने की जहमत उठाते हैं बस लगे रहते हैं दोनों हाथों से पैसे बटोरने में। आखिर सवाल उठाता है कि इन खून चूसनेवाले जोकनुमा नेताओं से कैसे बचा जाए। अगल-बगल की दुनिया देख चुके लोग भले ही कुछ सजग हो जाएगें लेकिन अधिकांश जो कि इन वितारों का कत्लेआम मचानेवाले लोगों के बारें में समझ ही नहीं पाते आर उनके विचारों से अनजान रहते हैं एक बार फिर छले जाएँगे। लेकिन कई ऐसे भी नेता है जिनकी संपत्ति कई करोड है, उन्होने अपने ब्योरे दिए हैं। लेकिन क्या उन्होने भी ईमानदारी से अपने संपत्ति का ब्योरा दिया है ? क्या आम आदमी इतना बेवकूफ है कि उसे इस तरह दिन ब दिन बेवकूफ बनाया जा रहा है। दो वक्त के रोटी का जुगाड करनेवाले मतदाता को रिझाने का यह पैतरा कितना कामयाब होगा पता नही, लेकिन मतदाता को उल्लू बनाकर अरबो रूपये का धन जमा करनेवाले नेताओं पर कितना यकीन रखना है, ये अब सजग होकर मतदाता को ही सोचना होगा।

Monday, April 6, 2009

बहशी पापा को मौत दे दो ....

कहते है लडकियां पापा की लाडली होती है, यह सिर्फ कहना ही नही है, मैं खुद बेटी होने के नाते यह महसूस भी कर रही हूं। इसके साथ ये भी लग रहा है कि अब आज पता नहीं क्यों आज के पापा अपने गरीमा को तोड रहे हैं। हकीकत ये है कि एक बेटी ने अपने बाप के लिए कानून से मौत मांगी है। मांगे भी क्यूं नही, ऐसे वहशी बाप के लिए तो मौत भी आसान ही सजा होगी। इस आसान मौत से उस पिडित लड़की का दर्द तो कम नहीं होगा लेकिन उसे जरुर तसल्ली होगी। बाप ने बेटी के साथ बलात्कार किया है, वो भी एक बार नही सालों से वो मासूम अपने बाप के हवस का शिकार बन रही । जब छोटी सगी बहन भी बाप के हवस का शिकार बनने जा रही थी, तब बडी बहन को अपनी चुप्पी तोडनी ही । अपने जीवन को तो बरबाद करनेवाले को बडी बहन तो अपनी चुप्पी से छुपाए थी लेकिन छोटी बहन को अपनी आँखों के सामने तार-तार कैसे होते कैसे देखती । लेकिन बाप की करतूत,अपने खून के साथ दरींदगी करने का कारण बडा ही हास्यास्पद और खून खौलाने वाला काम है । घर में शांति बनाये रखने के लिए एक तांत्रिक ने यह सुझाव दिया था। वो कैसा पिता होगा जो घर की शांति के लिए अपनी ही बच्ची का इस्तेमाल करता था। सोचने वाली बात है कि घर कि शांति कैसे कायम रह सकती है घर के ही बच्ची को हवस का शिकार बनाने से। लेकिन बच्ची को हवस का शिकार बनते देख रही मां ने भी अपनी चुप्पी नही तोडी। पता नहीं उस परिवार को कौनसी ऐसी शांति की तलाश थी, जो सिर्फ जिस्म की मांग कर रही थी। तांत्रिक और ज्योतिष के चक्कर में हजारो घर बर्बाद हो चुके है, और शायद होते भी रहेंगे जब तक लोग इन तंत्र मंत्र के चक्कर से बाहर नही निकलते. तब तक हवस का शिकार दूसरे नही बल्कि अपने बच्चे भी शिकार बनते रहेंगे। मुंबई की यह घटना उस लडकी की वजह से सामने आयी , लेकिन समय रहते ही अगर उसने अपनी चुप्पी तोडी होती तो आज उस पर अपने बाप के लिए मौत मांगने की नौबत नही आती। बाप के साथ साथ अब तांत्रिक भी जेल की हवा खा रहा है, बेटी का कहना है की मां इस सब के लिए जिम्मेदार नही है,,लेकिन बाप को मौत की सजा दे दी जाए। पिछले दो महीने में महिलांओ पर हो रहे अत्याचार का ग्राफ बढता ही जा रहा है। महाराष्ट्र से हर रोज महिला पर हुए अत्याचार की खबर सुनायी दे रही है। रोज रोज बलात्कार के हादसों से खून खौल उठता है। क्या हासिल होता है महिला पर अत्याचार करके, हवस की आग अगर नही बुझती होगी तो अपने आप को ही खत्म कर लेना चाहिए। मानसिकता बदलना मुश्किल नही है, लेकिन मानसिकता बदलने की तैयार होना भी जरूरी है। अंधविश्वास विश्वास पर हावी होता जा रहा है। भगवान से ज्यादा शैतान का महत्व बढता जा रहा है। अंधविश्वास से कोई धन, शांति, व्यापार, शादी नही होगी, होगी तो सिर्फ बर्बादी और बर्बादी ही।