लोगों की भावना भडकाकर समाज में अशांति पैदा करनेवाले व्यक्तियों पर कुछ लिखना या उनके द्वारा चलाये गये अभियान पर अपनी टिप्पणी देकर उन्हे महत्व देना ये मुझे कतई पसंद नही। फिर भी मनसे नेता की आक्रामक भुमिका पर मैं अपने विचार रख रही हूं। महाराष्ट्र और खासकर मुंबई में मराठी अस्मिता को बचाए रखने के लिए कई दिनों से मनसे ने आक्रमक भूमिका अपनायी है। महाराष्ट्र में रहनेवाले सभी गैरमराठी लोगों को मराठी भाषा का सम्मान करना जरूरी होगा ऐसा फरमान मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे ने जारी किया। महाराष्ट्र में मराठी भाषा को उचित सम्मान मिलना चाहिए , मराठीयों का आदर होना चाहिए। भूमीपुत्रों को रोजगार में प्राथमिकता मिलनी चाहिए , इन बातों की ओर युवाओं को आकर्षित करने में राज ठाकरे ने सफलता पायी है। मैं भी एक मराठी हूं लेकिन मराठी अस्मिता को बचाने के लिए मनसे नेता ने पढे लिखे युवाओं के हाथों में पत्थर,लाठी और डंडे थमा दी है.। युवाओं को सही दिशा देकर उन्हे एक सही राह देने के बजाय मराठी बनाम परप्रांत का मुद्दा खडा कर दिया। मराठी अस्मिता को बचाए रखने का प्रयास करना कोई गलत बात नही लेकिन जबरदस्ती लोगों से सम्मान नही पाया जा सकता है। फिर सवाल उठता है कि वो आखिर करें तो क्या करे पार्टी का गठन किया है , इसलिए राजनीति तो करनी ही है। जनतंत्र में देशवासियों को कही भी आने जाने से रोका नही जा सकता। लेकिन बाहर से आनेवाले लोगों की वजह से स्थानीय लोगों को तकलीफ ना हो ये देखना सरकार का काम है। देवनागरी लिपी में साईनबोर्ड लिखे जाये ये आग्रह करके तोडफोड करना बडी ही शर्मनाक बात है। अगर मराठीयों को स्पर्धा की दौड में उतारना हो तो राज ठाकरे को मराठी युवाओं के लिए कोई ठोस योजनाएँ बनानी होगी एक नया प्रोग्राम देना होगा। रोजगार के साधन मुहैय्या कराना चाहिए । हर क्षेत्र में स्पर्द्धा होती है लेकिन वो स्वस्थ्य कम्पटीशन होनी चादिए। छीनेने से सम्मान नही मिल सकता, लोगों की सोच को किस तरह से बदलना है, ये आप पर निर्भर होगा । आम लोगों को ये जानना होगा कि उन्हे ही एक दूसरे के सहयोग से रहना होगा। राजनेताओं के बहकावे में आये या अपने आप को स्पर्धा में उतारे। तोडफोड करना, मारपीट करके हमारे अपने ही भाई- बधुं को आहत करे या फिर अपने लिए सम्मान हासिल करे चाहे वो किसी भी धर्म, या जाति के हो।
1 comment:
बाल ठाकरे एवं राज ठाकरे महाराष्ट्रवासियों में बैर का बीज बो रहे हैं. अधिकांश महाराष्ट्रवासियों का मानना है कि उत्तर भारतीय, बिहारी मराठी माणुस से ज्यादा मेहनती होते हैं. सुबह चार बजे दुकान, होटल खोलना मराठी माणुस के बस की बात नहीं है. राज ठाकरे एंड कंपनी उत्तर भारतीयों की दुकानों को बंद करके मराठी माणुस को दुकान लगाने के लिए कह रही है. वे उन्हें वो धंधा करने के लिए कह रहे ह जो बरसो से पर प्रांतीय कर रहे हैं. जिन्होंने मेहनत की और अपना धंधा खडा किया, उस बने-बनाए धंधे पर कब्जा किया जा रहा है. अरे मजे की बात तो तब होती जब उसी परप्रांतीय के बाजु में खडे होकर कॉम्पिटीशन में दुकान लगाई जाए*. मेरा दावा है कि मराठी माणुस १० के पहले दुकान खोलेगा नहीं और शाम को ६ के बाद घर में होगा* मैं मराठियों के खिलाफ नहीं हूँ. लेकिन किसी एक के मुंह का निवाला छिनकर दूसरे को देना कहां का न्याय है?
राज ठाकरे एंड कंपनी ने महाराष्ट्र के लिए क्या किया* उनका खुद का कोई योगदान नहीं है. उनके पास कोहिनूर मिल खरीदने के लिए अरबों रुपया कहां से आया*.? तोडफोड, बंद, पथराव, आगजनी, मारपीट से तो कोई भी शहर बंद करवा सकता है*.. लेकिन शांतिपूर्ण तरीके से बंद सिर्फ और सिर्फ उत्तर भारतीय ही करवा सकते हैं. यदि मुंबई का हर उत्तर भारतीय अपने घर से काम पर नहीं निकले तो मुंबई में ठहर जाएगी*.
Post a Comment