Saturday, November 28, 2009

शहादत को सलाम.....

देखते ही देखते हमारे शहर और जेहन पर आतंकी हमले हुए एक साल का लम्हा बीत गया। सबसे पहले उन तमाम शहीदों और आतंकियो के शिकार हुए उन बेकसूर लोगो को याद कर तहे दिल से भावभिनी श्रध्दांजली। सारे देश ने अपने अपने तरीके से शहिदों को श्रध्दांजली अर्पित की। एक साल का समय तो बीत गया लेकिन लोगों के जख्म अभी भी हरे है। उस हमले को याद करके, वो मंजर देखकर आज भी सारा बदन कांप उठता है। एक ओर पीडितों के परिवारवालों का अकेलापन, अपने को खोनो का गम वहीं दूसरी ओर देश के लिए अपना कोई शहीद हुआ इस बात का गर्व भी और गुमान की हमारे यहाँ अभी भी वो लोग हैं जो अपने से पहले दूसरों के बारें में सोंचते हैं। साल भर उनपर क्या बीता यह देखकर आंसुओ का सैलाब उमड पडता है। कलेजा मुँह को आता है कि आतंकियों के जरिये खेले गये खूनी खेल के एक साल हो गये लेकिन शहिदों के परिवारवालों तक अभी भी मदतके हाथ तक नहीं पहुँचे। उनके आँसूओं को पोछने वाला कोई नहीं पहुँचा केवल शहादत के चर्चे खूब हुए। सरकारी वयव्स्था की निकम्मापन इतनी की शहीदों की पत्नियों को कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी से गुहार लगाने के लिए दिल्ली तक का सफर तय करना पडा। जहां एक ओर शहिदों और पीडीतों के परिवारवालों को मुआवजे के लिए सरकारी चौखटों पर अपनी एडिंया रगडनी पड रही है, वहीं जिंदा बचे आतंकी अजमल कसाब की सुरक्षा के लिए सालभर में 31 करोड रूपये खर्च हो चुके है, और मुर्दा घरों में रखी लाशे संजाये रखने के लिए लाखों रूपयों के वारे न्यारे हो चुके है। ये कौनसा इन्साफ है शहादत का कर्ज चुकाने का । अब एक साल बाद मानवीय और वित्तीय क्षति के बाद सरकार जगी है। अब प्रमुख जगहों पर चाकचौबंद सुरक्षा तैनात है, मुंबई पुलिस आधुनिक हथियांरो और साधनों से लैस है। सरकार से बस इतनी ही गुजारिश है कि शहिदों और हमले के शिकार हुए लोगों के महज पुतले या स्मारक बनाकर शहिदों का मजाक मत उडाए। इसबार हुए आतंक के खूनी हमले से सबक ले, कम्यों को पता कर सुधार करे। मुंबई की जनता आपके साथ तब खडी रहेगी जब आप शहादत से सबक ले, मुम्बईकर अपने अब और बेटे, भाई और पतियों को खोने की तमन्ना नहीं रखता। सुरक्षा में हुई चूक, बल्कि गलतीयों के अंबार को वक्त रहते ही सुधार ले। दोबारा मौका मिला है शायद आगे ना मिले..... कहीं फिर कोई लाल फिर अनाथ ना हो जाए....