Tuesday, February 24, 2009

क्या ब्रैन्ड बन रहा है धारावी...

स्लम डॉग मिलेनियर ने आठ ऑस्कर अवॉर्ड जीतकर दुनिया में अपनी छाप छोडी है। भारत का सबसे पहला संगीतकार ए.आर.रहमान ने दो ऑस्कर अवॉर्ड जीतकर अपने काबलियत पर मुहर लगा दी है। भारत में टैलेंट की कभी कमी नही थी और ना है। यह गुलजार साहब ने और ए.आर.रहमान ने दुनिया में साबित कर दिया है। स्लम डॉग मिलेनियर को ऑस्कर अवार्ड मिलने के बाद सारे भारतवर्ष में खुशी का माहौल है, फिल्म इंडस्ट्री से लेकर धारावी की हर गली तक। लेकिन अब खुशी के साथ विरोध के स्वर भी सुनायी दे रहे है। धारावी की हकीकत को दुनिया के सामने लाने पर कुछ लोगों को आपत्ति है। उनका कहना है की अक्सर फिल्मों में चाहे वो बॉलीवुड की फिल्म हो या हॉलीवुड की घारावी की गंदगी को सामने लाकर उनका मजाक उडाया जाता रहा है। फिल्मों में गरीबी और बदहाली दिखाकर करोडों रूपये कमाये जाते है, लेकिन झुग्गीवासीयों की बेबसी पर किसी की नजर नही जाती। सलाना अरबों रूपयों का व्यवसाय धारावी से होता है, हर तरह का व्यवसाय वहां पर किया जाता है, तंग गलियाँ, छोटे छोटे कमरे लेकिन हर तरफ मेहनत और सिर्फ मेहनत नजर आती है। कुम्हार का काम हो या फिर जरी का, लेदर वर्क हो या फिर पापड बनाने का हर तरफ सिर्फ आपको काम ही काम नजर आयेगा। कई फिल्मों में हमें घारावी की झुग्गी नजर आती है, लेकिन उसका पुनर्विकास नही हो पा रहा है। प्राईम लोकेशन होने की वजह से कई व्यावसायिकों की नजर उस झुग्गी पर है। राज्य सरकार भी धारावी को ग्लोबल बनाने जा रही है, उसके पुनर्विकास के लिए ग्लोबल टेंडर जो मंगवाये है। आज हर तरफ रहमान की जयजयकार है, स्लमडॉग मिलेनियर की जय हो, और धारावी ब्रैन्ड बनती जा रही है। लोगों में धारावी को देखने की ललक पैदा हो गयी है। वास्तव में धारावी को ग्लोबल फेम मिला है, भारतीय कलाकारों की मेहनत को ऑस्कर में सराहा गया है, लेकिन क्या इससे धारावी के निवासीयों की मुश्किलें कम हो पायेंगी। । स्लम डॉग को लेकर कुछ भारतीय निर्माता भी खफा है उनका मानना है की स्लमडॉग मिलेनियर से पहले भी मदर इंडिया, लगान और तारें जमीं पर जैसी बेहतरीन फिल्मे बनायी गयी है, लेकिन उन्हे ऑस्कर पुरस्कार से नहीं नवाजा गया। फिल्म को एक नही दो नही बल्कि आठ ऑस्कर अवार्ड मिले। लेकिन भारत की उस वास्तविकता का क्या जिसे हम सिर्फ फिल्मों में देखकर नाक सिकुडते है, या फिर सच्चाई पर गम करते है। ऑस्कर के बाद अब हर झुग्गीवासी का यह सपना होगा की हमारी झोपडपट्टी भी दुनिया के सामने आये । क्या धारावी सचमुच अब भारत का ब्रैन्ड बनेगा। हमे तो इस बात को बेहद गंभीरता से सोचना होगा कि सैकड़ो हजारों झुग्गियों का कायापलट कैसे होगा। हम और आप तो केवल फिल्म देख भर लेते हैं लेकिन सच्चाई ये है कि लाखों लोगों के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठता। जरी वाले नीले आसमान के तले आकर के एक होने के बाद ही जय हो .. हो पाएगी।

Monday, February 23, 2009

महाशिवरात्री की सभी को बधाईंयाँ।

भगवान में आस्था रखनेवाले या ना भी रखनेवालों को तो यह जरूर पता होगा की शिवरात्री का पावन पर्व याने भगवान शिव और माता पार्वती का ब्याह. हाल ही में मैने एक किताब पढी, हालांकि किताब पौराणिक नही थी, लेकीन यह जरूर कहा जा सकता है कि शिवभक्तों की आस्था को ध्यान में रखकर ही किताब लिखी गयी है। भोले शकंर के हर रूप को साकार किया गया है। या यूँ कहे कि सर्व शक्तिमान भगवान होने के बावजूद भी एकदम सीधे-साधे,भस्मधारण करके तपस्या करनेवाले, ना सिंहासन का मोह,नाही ऐशो आराम का। कहते है भोले बाबा किसी भी भक्त को खाली हाथ नही लौटाते, बस उनकी सच्चे दिल से आराधना करनी होती है। लेकिन वास्तविकता अब कुछ और ही है, भक्त और भक्तों को भगवान से मिलानेवाले पंडो कि निकल पडी है, पूजा तो कराते है, लेकिन वो होती है इस्टंट । जल्दबाजी में मंत्र पढे और निकल लिये दूसरे जजमान के यहां पूजा कराने। जजमान के लिए तो भगवान से मिलानेवाला पंडित ही भगवान समान होता है, भले ही उनके पढे मंत्र समझ में आये या ना आये। दिल में रचे बसे भगवान को प्रसन्न करने के लिए क्या किसी पंडित की सचमुच जरूरत होती है ? इन दिनों भगवान को सोने से मढने का फैशन सा निकल पडा है, बडा बिजनेसमैन मतलब बडा चढावा। जैसे लगता है कि मुर्तियों को सोना से मढने सचमुच भगवान प्रसन्न होकर और ज्यादा धन देंगे। या फिर अपनी काली कमाई छुपाने के लिए भगवान को हिस्सेदार बनाया जाता है, ताकि पाप घुल जायें। दर्जनों अनाथ आश्रम है, वृध्दाश्रम है,जो राजनैतिक हो या फिर सामाजिक सहायता से वंचीत है। हम और आप भगवान के बीच में किसी माध्यम को ढूँढने के बजाए सीधे भगवान से ही अपनी कहानी कहें। भगवान के प्रति श्रध्दा जरूर रखीये, लेकिन चढावे के रूप में हो, या फिर चंदे के नाम पर दी जानेवाली रकम का अगर सही इस्तेमाल आप करे तो भगवान ही नही बल्की इंसान भी आशीर्वाद देगा। कहा भी जाता है कि कण-कण में भगवान बसते हैं तो क्यों ना हम हर इंसान में ही भगवान को देख कर उसे ही अपनी श्रद्धा व्यक्त करें। हम में तुम में खड्ग खंभ में सबमें व्यापत राम,, ये बात प्रह्लाद ने सैकडो बर्ष पहले कहा है तो क्यों ना भोले शंकर को हम अपने आस पास ही ढूँढे। हर हर महादेव के नारे का मतलब ही है कि हर खुशी चारो तरफ से जल की धारा की तरह बहे। गंगा की धारा की हर कोने कोने तक पहुँचे और तन मन पवित्र हो। ऊ नम: शिवाय, सत्यम् शिवम् सुन्दरम्,, निरंकार ब्रह्म हम में तुम में है तो भेद क्यो?

Friday, February 13, 2009

निठारी के नरपिशाच

निठारी कांड के नराधम पंढेर और कोली को सीबीआई कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाकर रिंपा हलदर के साथ साथ उन सभी मासूमों को न्याय दिलाया है, जो इन नरपिशाच के शिकार बने। मासूम बच्चों को हैवानियत का शिकार बनाया गया। उनके शरीर को नोच नोच कर खाया गया। शरीर के टुकडे-टुकडे कर उसे नाली में फेंका गया। निठारी जैसे शर्मनाक हादसे ने दिल दहलाकर रख दिया था। सीबीआई कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाकर इन पिशाचों को काफी आसान मौत दी है, इनके तो उसी प्रकार छोटे छोटे टुकडे कर के जानवरों और गिद्धों को खिला देना चाहिए जिस प्रकार इन्होने ने मासुम बच्चों के जिंदगी के साथ खिलवाड किया। उसी तरह से उनसे भी उनकी जिन्दगी छीन लेनी चाहिए। उम्मीद तो है कि कोई दूसरा ऐसे कांड करने से पहले दस बार सोचे, लेकिन हैवानियत हमेशा अच्छी सोच पर हावी होती है। बस भगवान से यही दुआ है कि , और कोइ पंढेर या कोली पैदा ना हो।