Wednesday, July 6, 2011

सावधान....

पौधों के लिए मिट्टी खरीदने गयी थी (मि्टटी मुप्त में नही मिलती)। मैने भैय्याजी से कहा पिछले महिने में आपके यहां से गुलाब का पौधा ले गयी थी वो मुरझा गया। मेरे सौ रूपये पानी मे चले गये। मैने वहां झाककर देखा सारे पौधे गटर में रखे थे। मैने उससे कहा हम तो पौधों को फिल्टर का पानी देते है, और तुम तो गटर का फिर भी हमारे पौधे मुरझा क्यों जाते है। भैय्याजी ने कहा मै झुठ नही बोलुंगा मै तो पौधो में गटर का पानी ही डालता हूं क्योंकि मेरे यहां पिने के लिए भी पानी नही है। मैने सोचा गटर के पानी की आदत से पौधो का इम्युन सिस्टम स्ट्रांग हो गया होगा। मुंबई से सटे ठाणे इलाके में हूई घटना को शायद आपने फिल्म डेल्ही बेल्ही में भी देखा होगा, और यह बात सोलह आने सच भी है। एक छात्रा ने मोबाईल मे पानीपुरीवाले की करतूत को कैद किया है। मेरे एक पत्रकार दोस्त ने यह स्टिंग ऑपरेशन न्यूज चॅनेल पर दिखाया था। वाकया ये था की पानीपुरी बेचनेवाला भै्य्या पानी पिनेवाले लोटे में पेशाब करता था और उसे बिना धोये ग्राहकों को पानी पिने के लिए रखता था। अगर यह बात वह छात्रा उजागर नही करती तो यह सिलसिला बरकरार रहता। रास्ते पर ठेला लगानेवाले लोगों को उल्लू बनाने की नयी तरकीबे ढूंढते रहते है। एक दिन ऑफिस के लिए टॅक्सी से जा रही थी, सिग्नल लगा था। सामने देखा तो एक स्लेट पर लिखा था सेब का ज्यूस केवल दो रूपये में। ज्यूस बनानेवाले ने पानी से भरे एक बरतन में खाने का कलर मिलाया, वो भी नकली था। एक सेब को कद्दुकस करके पानी में डाल दिया। हो गया सेब का ज्यूस तैय्यार। कल की घटना ले लो सेब बेचनेवाले का सेब गटर में गिरा तो उसने गटर से सेब निकालकर फिर से बेचने के लिए रखा वो भी बिना धोये। जिस तरह गटर का पानी पिकर पौधे लहलहा रहे है उसी तरह आम इन्सान भी मिलावटी चिजे खाने पर मजबूर है, और उसका शरीर भी उसी तरह की चिजों के लिए ढल चुका है। बिना मिलावट की शुध्द चिजे खाना आम आदमी के बस की बात नही रही क्योंकि आमदनी अठ्ठनी और खर्चा रूपय्या जो हो गया है। लेकिन आप को अपने सेहत का खयाल रखना लाजमी है क्योंकि रास्ते पर मिल रही खाने की चिजे भले ही सस्ती मिले लेकिन उसकी वजह से होनेवाली बिमारी से आप बच नही सकते । दवाईयों पर खर्च करने के बजाए खाते वक्त सावधान....

Tuesday, July 5, 2011

वडापाव की महिमा....

फर्ज करें आप मुंबई के किसी बाज़ार में सैर सपाटे के लिए आए हो और आपको अचानक से सुनाई दे कि गरमागरम छत्रपति ले लो, फिर एक और अवाज़ मिले कि चटकारे शिव वडा ले लो। तो आपको आश्चर्य होगा। हद तो तब हो जाएगी जब आपको जोरो की भुख लगी हो, स्टॉल के पास आकर आप अगर वडा पाव माँगे तो आप पर सवालों की बौछार हो कि कौन सा ब्रैन्ड दूँ शिव वडा या छत्रपति वडा। लोगों ने छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम पर अब गलियों में भी राजनीति शुरु कर दी है। इस नई गरमा गरम राजनीति का ही नतीजा है कि वडा पाव के नाम से अब राजनीति शुरु हो गई है। शिवसेना कह रही है कि मराठी युवकों को रोजगार देने के लिए शिव वडा की शुरूआत की है। स्वाभिमान संगठन का दावा है कि शिव वडा पाव के स्टॉल्स अनाधिकृत है । शिव वडा पाव के स्टॉल्स हटाने के लिए स्वाभिमान संगठन ने छत्रपती वडा के स्टॉल्स लगाये। आनेवाले दिनो में कांग्रेस बाजार में कांदा पोहा लेकर आनेवाली है, उसका नाम अगर तिलक कांदा पोहा हो जाए तो आप अचरज नहीं कीजिएगा। शायद ये राजनीतिक पार्टियाँ गलियाँ और सडकों के नाम महापुरुषों पर कर कर के उकता गई हैं , अब लोगों के प्लेटों तक महापुरुषों को पहुँचाने का बीडा उठाया है। शायद इनका मानना है कि महापुरुषों के डर से मँहगाई भाग जाएगी और हाजमा भी ठीक रहेगा। घडी की सुई की माफिक निरंतर चलने वाली मुंबई हर किसी को अपने आप में समा लेती है। कहते है मुंबई में सर छुपाने के लिए आसरा तो नही मिलेगा लेकिन मुंबई में रहनेवाला गरीब से गरीब आदमी भूखा नही रह सकता। क्योकि एक वडा पाव से गुजारा करने वाले लाखो लोग हैं। इसे हर कोई खाता है चाहे वो अमीर हो या फिर गरीब, शाम के वक्त वडा पाव खाने के लिए ठेले पर लोगों का हूजूम लगता है। कोई पेट भरने के लिए खाता है तो कोई चखने और मुँह का जायका बदलने के लिए। वडा पाव एक ऐसी चीज है जिसे खाने से किसी को कोई परहेज नही होता। लेकिन मुंबई में शिवाजी महाराज के नाम पर वडा पाव की राजनीति कढाई में गरमाने लगी है। ज़रा सोचिए अगर मुंबई की घमासान के माफिक पूरे देश में यह चलन चलने लगे तो कैसा होगा। दिल्ली में बहादुर शाह जफ़र हलवा के साथ रणजीत सिंह छोले कुलचे की अवाजें आने लगेगी। रानी लक्ष्मी वाई जलेबी और भगत सिंह पराठे का भी चलन शुरु हो जाएगी । तो उत्तर प्रदेश में वाजिद अली शाह कबाब और बीबी हजरतगंज सेवई की दुकाने सजने लगेगी। हद तो तब हो जाएगी जब सुभाषचन्द्र बोस रसगुल्ले और विवेकान्द मिठाई कलकत्ते में बिकने लगे। अगर उत्तर पूर्व और पश्चिम महापुरुषों के नाम पर समान बेचने लगे तो दक्षिण ही क्यों पीछे रहे वो भी अपने मसाला डोसा को पेरियार डोसा नाम रख देंगे और मेन्दु वडा को टीपू सुल्तान वडा के नाम से बेचने लगेंगे। मुझे लगता है कि आने वाले दिन इससे भी गए गुजरे होंगे। महापुरूषों के नाम को इस्तेमाल करके अपनी झोली भरनेवाले राजनेता महज वोटो के लिए किसी भी हद तक गिर सकते है। आम लोगों के निवाले को ब्रैन्डेट बनाकर महंगा बनाया जा रहा है, और उन्हे उनसे दूर किया जा रहा है। 2011 में होनेवाले महापालिका चुनाव की तैयारी मुंबई में तो शुरू हो चुकी है लेकिन आम आदमी का निवाला वडा पाव का टेस्ट कडवा बनते जा रहा है। राजनीति विकास के नाम पर करने के बजाए आज के राजनेता अपनी राजनीति को पहले ही महापुरुषों के नाम की बैसाखी के जरिए लोगों की भावना से सत्ता हथियाने में कोई कसर नहीं छोडना चाहते। थोडे तो शर्म करो शायद शर्म उसे आती है जिसे चेतना होती है यहाँ तो चेतना और मानवता तो कब के फुर्र हो चुकी है...धन्य हैं हमारे राजनेता।

बक्श दो....

रात के करीब दो बज रहे थे, 17 साल की लडकी पुणे से मुंबई के समीप कल्याण स्टेशन पर उतरी। लोकल ट्रेन सुबह चार बजे से शुरू होती है तो स्टेशन पर ही लोकल ट्रेन का इंतजार करना ज्यादा सुरक्षित मान कर रुक गई। अकेली स्टेशन पर रूकने में थोडा डर भी लगने लगी लिहाजा आपने एक दोस्त को स्टेशन पर ही बुला लिया जिससे थोडी सुरक्षित महसूस कर सके। दोनो हमउम्र थे तो लोकल ट्रेन का इंतजार करते करते बातें कर रहे थे। उसी समय तीन मनचलें वहां पर आए उनके हाथ में चाकू था। चाकू की नोंक पर उन्होने लडके को धमकाया तो लडकी का दोस्त वहां से भाग गया, और मनचले उस लडकी को झाडीयों के पीछे ले गये और बारी बारी उस पर बलात्कार किया। इस घटना के दो दिन बीतते ही डोंबिवली इलाके में ही लडकी का दोस्त उसे घर दिखाने के बहाने ले गया और तीन दिनों तक लगातार उससे बलात्कार करता रहा किया। इस घटना के दो दिन बीतते ही और एक घटना सामने आयी है जहां नाबालिग लडको ने ही बलात्कार किया है। एक सप्ताह में बलात्कार के तीन मामले सामने आये है। ये बातें महज एक सप्ताह और एक ही इलाके की थीं। पूरे देश में क्या स्थिती होगी यह तो सोंच कर ही दिल दहने लगता है। दिल्ली के समीप ग्रेटर नोयडा में तो हैवानियत की ही हद पार हो चुकी है। आये दिन कोई ना कोई वारदात होती रहती है। लडकियों पर हो रही अत्याचार के आंकडे बढते ही जा रहे है। राह चलती लडकी पर फिंकरे कसना या उसका पीछा करना ये तो अब रोजमर्रा की बातें हो चुकी है और उन्हे अनदेखी करना भी लडकियां की मजबूरी बन गई है। जिसे बक्त की धार ने नजरअंदाज़ करना लडकियों को सीखा दिया है। मेरे इस ब्लॉग लिखते लिखते एक और मामला सामने आया है वो ये है कि 12वी में पढ रही छात्रा की ब्लू फिल्म निकालकर उसे सार्वजनिक कर दिया गया। लडकी के पिता का 45 वर्षीय दोस्त पिता के साथ शराब पीकर अक्सर घर पर आता था। शराबी दोस्त लडकी को अपनी लडकी कहता था। पिता के दोस्त ने पीडिता को मोबाईल भी खरीद कर दिया । वो अब लडकी को अपने जाल में फसाने की कोशिश करने लगा। आरोपी ने पीडिता से कहा की तुम 18 साल की हो चुकी हो तो मुझे गवाह के तौर पर तुम्हारा हस्ताक्षर चाहिए। लडकी को उसने इस बारे में घर पर किसीसे जिक्र ना करने की हिदायत दे दी। जब लडकी उस जगह पहूंची तो आरोपी ने उसे रिक्शा में अपने तीन दोस्तो के साथ जबरन बांद्रा के कोर्ट ले गया और उससे शादी कर ली। फिर उसे चाकू की नोंक पर मंदिर ले गया और उसके गले में मंगलसुत्र पहना दिया। घर पर बात बताई तो भाई और पिता को जान से मारने की धमकी आरोपी देता रहा। खुद को काग्रेस का कार्यकर्ता बतानेवाला यह शक्स 45 साल का है और लडकी 19 साल की। उसे एक लॉज में ले जाकर उसके साथ शारीरीक संबध बनाए और उसकी ब्लू फिल्म बनायी। मां के लाख बार पूछने के बाद लडकी ने चुप्पी तोडी तब तक अस्मत तार तार हो चुकी थी। हवस की आग इस कदर हावी होती जा रही है की उसके आगे क्या लडकी , क्या बच्चियां या अधेड उम्र की महिलाएं कोई भी बच नही पा रही है। वहशीपन ने अच्छे बुरे का फर्क ही मिटा दिया है। यह एक मानसिक विकृती है जिसका इलाज होना बेहद जरूरी है। रोज रोज हो रहे अमानवीय कृत्य से वो अपने आप को बचा नही पाती, लेकिन कुछ मामले ऐसे भी है जहां अंधा प्यार हावी हो जाता है। चिकनी चुपडी बातों पर लडकियां विश्वास रखकर अपना सब कुछ न्योछावर कर देती है। मां हमेशा लडकी की दोस्त होती है, अपने बच्चियों के साथ दोस्ती करे, उन्हे अच्छे-बुरे की समझ दे। उनकी दिन भर की बातें सुने जिससे आगे चलकर अनहोनी को टाला जा सकता है। कई अनगिनत लडकियां हवस का शिकार बन चुकी है और उन्होने इसे पेशे के तौर पर भी अपना लिया है, क्योंकि तार तार हुई अस्मत को समाज में सम्मान नही मिलता है। बलात्कारियों के लिए सजा का प्रावधान तो है, लेकिन कानून का डर किसी को नही है। दो चार साल की सजा काटकर फिर जुर्म करने के लिए तैयार हो जाते है, दरिन्दे।मेरी गुजारिश है कि इस अमानवीय कहर झेल चुकी बच्चियों का हमेशा ख्याल रखे। मासुमों की जिंदगी नर्क बनाने वालों को कानून के हवाले करके उन्हे कडी से कडी सजा दिलाने में आप भी मदद करे। कौन जाने आपके इस एक मदद से किसी के सपने बिखरने से बच जाए। भ्रष्टाचार के खिलाफ जिस तरह समाज एक साथ आया है उसी तरह महिलाओं पर हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए आगे आना होगा तभी तो सही तौर पर भारतीय संस्कृति की मर्यादा बच सकेगी।

Monday, July 4, 2011

बेटी बचाओ...

मेरे एक दोस्त को लडकी हुई वो काफी खुश हुआ । घर में लक्ष्मी आयी तो उसने सारे ऑफिस में मिठाई बांटने के साथ खुशीयाँ भी बाँटी। उसे बेटी ही चाहिए थी तो उसकी मुराद भी पुरी हो गयी। आज लडकियां भी लडकों के बराबर ही सफालता हासिल कर रही है। इस साल महाराष्ट्र औऱ खासकर कर मुंबई में दसवी और बारहवीं के नतीजों में लडकियों ने बाजी मारकर सफलता का परचम फिर एक बार लहराया। घर में लक्ष्मी आने के बाद जिस तरह मेरा दोस्त खुश हुआ उसी तरह कई अनगिनत लोग भी खुश होते होंगे क्योंकि उन्हे भी लडकियों की इच्छा होती है। लेकिन सभी नही, और यह बात साबित हो चुकी है। खूबसुरत दुनिया में अपने नन्हे कदम रखने से पहले उन्हे गला घोट दिया गया, किलकारियों से आंगन को गूँजने से पहले ही खामोश कर दिया गया, अपनी भीनीं खुशबू से बाबुल का आंगन महकानेवाली नन्ही कली को खिलने से पहले ही कुचल दिया गया। पिछले एक साल में महाराष्ट्र में 95 हजार 332 गर्भपात कराये गये। कोख में पलनेवाले बच्चे का परीक्षण किया जाता है कि लडका है तो गर्भ पल जाता है और अगर लडकी है तो गर्भ में गला घोट दिया जाता है। दुनिया में आने से पहले ही उसे मौत का रास्ता दिखा दिया जाता है। यह कडवी सच्चाई और आंकडे तब साफ साफ दिखने लगे जब महाराष्ट्र के बीड जिलें में 10 से 15 अविकसित गर्भ (अजन्मे बच्चे का शरीर पाया गया, उसे शरीर भी नही कहा जा सकता क्योंकि बस गर्भ ने आकार लिया ही था दूसरे शब्दों में कहें तो मात्र 2 महीने के भ्रुण) नदी के पास फेंके पाये गये और यह सिलसिला कई दिनो तक जारी रहा। स्वास्थ विभाग कुंभकर्ण की नींद सो रहा था। बीड जिले के बाद अन्य जिलों में जब अविकसित भ्रुण मिलने का सिलसिला शुरू हुआ तो उसे अपनी नीं से जागना पडा। सोनोग्राफी सेंटर पर छापेमारी की गयी। अवैध रूप से चलनेवाले कई सेंटरों को सील कर दिया गया। कानून बनाए जाते हैं तो तोडने के लिए भी अनगिनत रास्ते बनाने वालों की कमी नहीं है। कुकुररमुत्ते की तरह सोनोग्राफी सेंटर पनपने लगे है। गर्भ में लडकी होने पर तुरंत गर्भपात करा दिया जाता है, कहा भी जाता है कि , दो घटें में आप आजाद हो सकती हैं। पचास साठ साल पहले कम से कम बच्चा पैदा होने का इंतजार तो किया जाता था। राजस्थान और उत्तर भारत में लडकियों को पैदा होते ही मार डाला जाता था। इन्हें मारने के भी कई तरीके अख्तियार किए जाते थे। कभी नमक को तुरंन्त पैदा हुई बच्ची के जीभ पर रखा दिया था, तो कभी पुरंत पैदा हुई लडकी को दूध में डूबो दिया जाता था। कई बार तो इन्सान बर्बर होकर के गला घोंटकर या फिर पटकपटकर उनकी जान ली ले लेते थे। आधुनिक और विकसित समाज में लडकियों को पैदा होने से पहले ही मार दिया जा रहा है। राज्य सरकार ने ग्रामपंचायत चुनाव में महिलाओं को 50% आरक्षण देने की घोषणा की है, लेकिन कई बहू, बेटियों को उनके गर्भ में पलनेवाले जीव को बचाने का अधिकार नही है। आनेवाले समय में सभी को मां, बहन, या पत्नी नसीब भी होंगी या नही इसका आकलन करना मुश्किल है। सोनोग्राफी सेंटर पर छापेमारी करके हासिल कुछ नही होगा क्योंकि लडकी को बोझ समझने की सोच समाज में आज भी बरकरार है, और यह बडे ही अचरज की बात है, जहां शहर की लडकियां तरक्की करके आसमान छू रही है। कई अनगिनत उदाहरण सामने हैं जहाँ महिलाओं ने अपने परिवार के साथ साथ अपने समाज और देश का नाम रौशन किया है। मातृभूमी को माँ कहने वालों बेटी बोझ नही है, उसे बचाईये....।