Friday, March 19, 2010

महिलाओं के साथ दोतरफा व्यवहार....

9 मार्च 2010 का दिन भारतीय गणतंत्र में इतिहास के पन्नों में दर्ज होने के लिए गर्व से तैयार है। इस दिन राज्यसभा में एक ऐसा प्रस्ताव पारित किया गया जिसका जिक्र अब ऐतिहासिक घटना के रूप में होगा। देशभर की महिलाओं को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का तोहफा मिल गया । इन इतिहास की बातों से हर किसी का सीना गर्व से फूल गया है। महिलाएँ उत्साह और उमंग से लबेरेज हैं, अपनी जीत पर फूली नहीं समा रही हैं। हक और अधिकार मिलने का जज्बा दिल में था। बुलंदी छूने की भावना जगी थी। दुनिया को नापने और जीतने की उमंग जगी थी। अत्याचार के खिलाफ कमर कसने की तैयारी हो रही थी। लेकिन एक बात मैं जो कहने जा रही हूँ वो शायद कम ही लोगों को पता होगा, 10 मार्च को महाराष्ट्र के बीड जिले के एक गावं में एक महिला के साथ शर्मनाक हादसा हुआ। जिसको देखकर यही कहा जा सकता है कि सारे अधिकार केवल कागजों पर ही है। एक महिला को निर्वस्त्र करके सरेआम पीटा गया। शायद ये वाकया पहली बार नही हुआ होगा। इससे पहले भी महिलाओं के साथ ऐसी दर्दनाक घटनाएँ घटी है। बीड की इस महिला को पाचं भाईयों ने निर्वस्त्र करके पीटा, उसके पीछे का कारण कुछ अलग है, हालांकि इसे अब जमीन के विवाद का नाम दिया जा रहा है। पती के जरिये त्याग किए जाने के बाद एक आदमी ने उसे पनाह दी और आज के युग में भी बेचारी कहे जाने वाली वो महिला पनाह देने वाले व्यक्ति के साथ रहने लगी। उन पांच भाईयों की मांग थी कि महिला मृत पति के पाँचों भाइयों से भी शारीरिक संबंध बनाए, और उनके भाई के जायदाद पर कोई हक ना जताए। शारीरिक संबंध बनाने से इन्कार करने पर उस महिला को निर्वस्त्र करके पीटा गया। इससे बदतर बात तो यह है कि उन्होने इस महिला के मुंह में पेशाब कर उसे पीने पर मजबूर किया। शहर की कामकाजी महिला अपने हक के लिए आवाज उठाती नजर आती है, लेकिन देहात की महिला दाल की तरह पीसी जा रही है कोई ना तो उसकी आवाज सून रहा है ना ही उसे बोलने तक के अधिकार दिये जा रहे हैं। आज भी बेचारगी और लचारगी से जीने को मजबूर है। अमरावती वह इलाका है जहाँ से भारतीय गणतंत्र की राष्ट्रध्यक्षा प्रतिभा पाटिल हैं। उसी अमारवती में एक पारधी समाज की महिला को समाज से बहिष्कृत किया गया क्योंकि एक पुरूष का अनजाने में उसे स्पर्श हुआ था। उस समाज में यह नियम था कि कोई भी दूसरे पुरूष का स्पर्श नही होना चाहिए, अगर हुआ तो उस महिला का बहिष्कार किया जाता है। इसी नियम के तहत उस महिला को बहिष्कृत किया गया। अब राजनीति में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने के ऐतिहासिक निर्णय पर राज्यसभा में मुहर लगते ही पूरे देश में खुशी का माहौल बन गया। मानों महिलाओं के अपना हक मिल गया हो। महिलाओं के चेहरे पर खुशी की लहर दौड गयी। चुनाव लडना है या नही ये बात जब होगी तब लेकिन सारी महिलाएँ खुश थी। कहीं मिठाई बंट रही थी तो कहीं गीत संगीत पर थिरकती महिलाएं नजर आ रही थी। वर्षों से खटाई में पडे इस विधेयक को पारित करने में कई सरकारों को कडे विरोध का सामना करना पडा था। ज्यादा से ज्यादा महिला राजनीति में आयेंगी तो देश का भविष्य उज्जवल होगा, भ्रष्ट्राचार पर नकेल कसी जाएगी, महिलांओ पर हो रहे अन्याय , अत्याचार को रोका जाएगा। एक ओर महिलांए आसमान की बुलंदी छुती हैं कल्पना चावला बनकर , तो दूसरी ओर गांव- देहात में महिलाओं पर हो रहे अत्याचार में इजाफा ही होता जा रहा है। दहेज उत्पीडन के कई मामले आज भी हो रहे है। शराब पीकर आज भी महिलाओं को पीटा जा रहा है। हवस की शिकार होने का सिलसिला अभी भी जारी है। राजनीति में 33 प्रतिशत आरक्षण भी मिल जाएगा उसका फायदा भी होगा और नुकसान भी। कुछ महिलाए तो सचमुच महिलाओं को न्याय दिलवाने में कामयाब होगीं तो कुछ महज कठपुतली बनकर रह जाएगी । लेकिन महिला सुरक्षा का एक एहम मुद्दा जस का तस है। महिलाएं कब अपने आप को सुरक्षित महसूस करेंगी। महिलांओ को आरक्षण के साथ साथ सौ प्रतिशत सुरक्षा की हामी भी देनी होगी तभी जाकर गांव गावं का विकास होकर देश का विकास होगा। कहते हैं शास्त्रों में लिखा है कि यत्र नारियाँ पूजयन्ते तत्र रमन्ते देवा: । शास्त्र सच हो या ना लेकिन ये हकीकत है कि नारियों के सम्मान करने से समृद्धि तो जरूर मिलती है। इस लिए हे मनुज पुत्रों मैं वकालत तो नहीं कर रही हूँ लेकिन जरा आप भी सोचिए क्या ये संभव नहीं है अगर नजरिया बदले तो नारी शक्ति भी उन्नति में भरपूर योगदान कर सकती है।....

Monday, March 1, 2010

स्पेशल चाईल्ड....

कुछ दिन पहले ऑफिस में बैठी थी तभी एक दर्शक का फोन आया उन्होने चॅनल पर एक प्रोग्रॅम देखा जो उनको काफी पसंद आया था। स्पेशल चाईल्ड की जीवनी पर आधारीत वह प्रोग्रॅम था। दो बच्चे ऐसे चुने गये थे जिन्हे हाथ नही है लेकिन पढाई से लेकर हर काम बडी ही आसानी से करते चाहे वो पेंटीग हो या फिर तबला बजाना और तो और यह बच्चे साधारण स्कूल में ही पढते है। हाथ नही होने के बावजूद भी वे खुद अपना सारा काम कर लेते है। उन्हे देखकर तो मुझे भी एक बार लगा की यह तो हमसे भी कई गुना ज्यादा है। हालांकि दस से बारा साल आयु के इन बच्चों को स्पेशल चाईल्ड होने का कोई भी मलाल नही। उनकी इच्छाशक्ती इतनी ज्यादा है की किसीभी परेशानी से जुझने के लिए वे हमेशा तैय्यार रहते है। हमने अपने प्रोग्रॅम के लिए महाराष्ट्र से सिर्फ दो ही बच्चे चुने थे, लेकिन देश में ऐसे कई अनगीनत स्पेशल चाईल्ड है जो रोज परेशानीयों से दो दो हाथ करते है। अपनी अपाहिजता को अपने उज्जवल भविष्य का रोडा नही बनाते। दुसरी ओर पिछले दो- तीन महिनों से पढाई के बोझतले दबे लगभग 40 छात्र छात्राओं ने देशभर में आत्मह्त्या की है। आत्महत्या के पिछे उनकी मानसिकता क्या होगी इसका अंदाजा लगाना तो बेहद मुश्कील है, लेकिन पास में सबकुछ होने के बावजुद मौत को गले लगाना बुजदिली ही कहलाती है। इन स्पेशल चाइल्ड की हिम्मत और कुछ करने का जज्बा देखकर नॉर्मल बच्चों के प्रति गुस्सा आता है, क्यों नही वे इन बच्चों से सिख लेते है, इनका आदर्श सामने रखकर कामयाब होते है। ढूंढने से भगवान भी मिलता है, और इन स्पेशल बच्चों ने भगवान को ढूंढकर कामयाबी पा ली है, तभी तो वे स्पेशल चाइल्ड कहलाते है। कोई भी काम आसान नही होता, मगर नामुमकिन भी नही। इन बच्चों की मिसाल लेकर आम छात्र या लोग प्रेरणा लेगें तो मेहनत और विश्वास के बलबुते कामयाबी जरूर कदम चुमेगी। और जीवन निश्चीत ही खुशहाल होगा।

रिक्शावाले अंकल्स......

मुम्बई में बस या किसी और साधन से सफर करना उतना अच्छा नही लगता जितना की लाइफ लाइन लोकल ट्रेन का सफर इसलिए तो मै रात बारह बजे के बाद भी ऑफिस के ड्रॉपिंग से जाने के बजाए घर तक का सफर ट्रेन से तय करती हूं। हालांकि ट्रेन तो घर तक नही पहुँचाती, सोचती भी हूँ कि काश घर तक ट्रेन पहुँचाती, लिहाजा आठ से दस मीनट के सफर के लिए रिक्शा से जाना लाजमी हो जाता है। रिक्शा के बजाए टैक्सी से रोज रोजाना का सफर हो तो जेब पर भारी पड जाता है, वो ऐसा हो जाएगा की आमदनी अठ्ठनी और खर्चा रूपइय्या। शेअरिंग रिक्शा से जाने के अलावा दुसरा और कोई चारा ही नही होता। रात में घर जाने की जल्दी तो सभी को होती है और मुंबई जैसे शहर में आप ये कतई उम्मीद नही कर सकते की कोई पुरूष आप से कहे कि लेडीज फर्स्ट , कोई यह नही कहेगा कि देर रात हो गयी है और आप अकेली है तो रिक्शा में आप पहले जाए। यहाँ आपधापी इतनी मची है कि अगर कोई रास्ते में गिर जाए तो उसके उपर से कितने सैकडो लोग गुजर जाएगें पता नहीं चलेगा। दिन भर कमरतोड़ मेहनत करके थकने के बाद घर पहुँचने के लिए सभी को मशक्कत करनी पडती है। रात के वक्त रिक्शेवालों की एक अपनी ही अकड होती है । रात में नाईट चार्ज मिलता है तो शेअरिंग से क्यों ले जाए और तो और रात में अगर शेअरिंग रिक्शा ना मिले तो महिलाएं तो कमसे कम मीटर से जरूर जाएंगी । किसी रिक्शेवाले ने गंतव्य स्थान के लिए आवाज लगा दी तो लॉटरी ही लग जाती है। एक दुसरे को कुचलकर लोग अपनी अपनी सीट पाने की होड में लग जाते है। सभी को घर पहुँचने की जल्दी होती है, ऐसे में मै यह उम्मीद भी नही करती की कोई मुझसे यह कहे की मेरे बजाए आप पहले जाए। शहरों में कामकाजी महिलाओं को अक्सर यह अनुभूती होती है। यहां तो महिलाओं की सीट पर बैठे पुरूष उन्हे सीट देने में भी आनाकानी करते है। लेकिन रात के इस दस मीनट के सफर में मुझे एक आशा की किरण भी नजर आती है। रोजमर्रा के इस सफर में मेरे दो रिक्शेवालों से अनजाना से अंकल का रिश्ता बन गया है। एक अंकल रिक्शा चलाते है। दूसरे अंकल से पहचान एक ही समय पर आने से और रिक्शा के इंतजार करते करते हुई है। दोनो भी मेरे दिखने पर मुझे आवाज लगाकर अपनी रिक्शा में बिठा लेते है। जिनकी रिक्शा है वे अंकल पहले मुझे बिठाते है फिर अन्य सवारी को, मै अगर ना रहूं तो किसी अन्य महिला को प्राथमिकता दी जाती है। ना तो उन दोनो को मेरे बारे में कुछ पता है और ना मुझे उनके बारे में, यहां तक की वे मेरा नाम भी नही जानते, यह सिलसिला कई महिनों से शुरू है। एक महिला के प्रति सम्मान देखकर बेहद आश्चर्य होता है। स्वार्थीयों के हुजूम में इन्सानियत अभी भी बरकरार है। रात का सफर अब डरावना नही बल्कि सुहावना लगता है। रात आते ही काले और डरावने बादल नजर आने वाले उस नीली विशाल छतरी की जुम्बिश अभी भी मुझे अपनी ओर खींचती है और कहती है कि भोर भी सुहावना होगा रखो भरोसा... विदा वो इन्सानियत के बन्दे फिर होगी मुलाकात.....।

सचिन रमेश तेडूंलकर.....

सचिन रमेश तेन्दुलकर देश में ही नही बल्कि दुनिया भर के लोगों के दिलों में राज करनेवाला एक ऐसा इंन्सान है जो रोज नई उँचाइयों तक पहुँचने के बाद भी उसके पैर अभी भी जमीन पर ही है। अनगिनत सम्मान, अनगित खिताब पानेवाले सचिन की सादगी के सारे यूँ ही कायल है। सचिन को करीब से जाननेवाले उनकी सादगी, नम्रता, विनय और सामाजिक कार्य से बखूबी वाकिफ है। सचिन को सिर्फ टेलीविजन पर देखनेवाले लोग भी सचिन की सादगी से परीचित है। अनगिनत रेक़ॉर्ड बनानेवाले सचिन को भारतरत्न से सम्मानित करने की सिफारिश महाराष्ट्र सरकार, केंद्र सरकार से करनेवाला है,लेकिन सचिन को यह पुरस्कार देने में स्वंय केंद्र सरकार को ही पहल करनी चाहिए उसके लिए किसी की सिफारिश की जरूरत क्यों आन पडती है। सचिन को सिर्फ टेलीवि़जन पर देखने से ही उनके डाउन टू अर्थ स्वभाव का पता चलता है। हाफ सेंच्युरी हो, सेंच्यूरी या फिर डबल सेंच्यूरी सचिन सबसे पहले अपना बल्ला आकाश की ओर उठाकर भगवान का शुक्रिया अदा करते नजर आते है। अपनी हर एक कामयाबी के लिए अपने परिवार अपने सहयोगी खिलाडियों का शुक्रिया अदा किये बिना उनकी सफलता का क्रेडिट उन्होने आजतक खुद नही लिया। उनकी जगह कोई और होता तो अपनी बैट पटकता या फिर उछलकूद करता। किसी भी विवाद में पडना सचिन को बिल्कुल भी पसंद नही फिर भी उन्हे विवादों में खींचा गया। सचिन ने खामोश रहकर अपने बडप्पन का सबूत दे ही दिया। सचिन के ऐतिहासिक रिकार्ड के बाद देश और दुनिया ने उन्हे सर माथे पर बिठा लिया और उनपर उंगली उठानेवाले की उंगलिया उन्ही की दातों तले दबानेपर मजबूर कर दिया। अब उन्ही लोगों ने सचिन को रेकॉर्ड बनाकर इतिहास रचनेवाले सचिन को विक्रमादित्य करार दिया और उन्हे भारतरत्न से नवाजा जाने की सिफारिश भी की है। क्रिकेट के बारें में मुझे बहुत कुछ जानकारी तो नही है लेकिन सामान्य ज्ञान जरूर है। पिछले कुछ दिन पहले सचिन का फॉर्म खराब होने की चर्चा थी, और उन्हे सन्यास लेना चाहिए ऐसी अफवाएँ भी उडने लगी थी, लेकिन सचिन ने नाही इस बात का बुरा माना या कोई टिप्पणी की। अपने बीस साल के करियर में बुलंदी छुनेवाले सचिन ने कभीभी अहम को अपने आस पास भटकने नही दिया। टेनिस एल्बो की शिकायत के बाद भी वो आज भी पाँच पाँच घंटो तक प्रैक्टीस करते है। सचिन के वन डे में 200 रन का इतिहास रचने के बाद महानतम खिलाडियों ने उनकी प्रशंसा में कसीदे पढे है। उन्हें भगवान तक बना दिया। चाहे वो ऑस्ट्रेलियन खिलाडी हो या फिर पाकीस्तानी। शोएब अख्तर ने कहा है की सचिन गेंदबाजो के दुश्मन नही बल्कि गेंद के दुश्मन होते है और वे इस दुश्मनी को बखुबी निभाते भी है। उनकी सफलता, नम्रता देखकर सामान्य व्यक्ति नतमस्तक हो जाए तो कोई अचरज नही होगा। एक महानतम खिलाडी होने के साथ साथ सचिन एक आदर्श बेटा, आदर्श भाई, आदर्श पति के साथ साथ आदर्श पिता भी है। अपने पिता और भाई से मिली सीख को वे अपने बच्चों को भी दे रहे है साथ ही वे अपने बच्चों के जरिये दिए गए सुझावों पर भी अमल करते है। पूरी दुनिया से भर भर कर प्यार पानेवाले सचिन ने अनाथालय के बच्चों में भर भर कर प्यार, खुशियां बांटी है। अनाथालय में प्यार बांटकर समाज का ऋण भी वे चुका रहे है। विक्रमादित्य, क्रिकेट का शहंशाह, क्रिकेट का भगवान कह लो या फिर सचिन को कोई भी खिताब से नवाजा जाए फिर भी यह अनमोल रत्न अपनी सादगी कभी नही छोडेगा। सफलता के शिखर पर खडे रहने के बाद भी इस महान खिलाडी के पैर जमीन पर होने से उनके सामने अपने आप ही सर झुक जाता है।