Sunday, March 15, 2009

जवाब दो.. गाँव के हालात बदलो..

मेरा एक दोस्त है जो वर्षो से मुम्बई में रहता है। वैसे वो है तो रहनेवाला उत्तर प्रदेश का। काम की तलाश में उसके बुजर्ग मुम्बई आ गये और मुम्बई ने वाकई उनको आसरा दिया और वो भी मुम्बई के होकर रह गये। लेकिन अपनी ज़मीन से दूर रहे जरूर लेकिन कटे नहीं। रह रह कर दिल में एक दर्द उभरता रहा कि उनके इलाके में भी ऐसी ही तरक्की होती, तो शायद वो भी अपने ज़मीन से हजारो किलोमीटर दूर नहीं रहते शायद पूरे देश का विकास होता। यही सोचता हुआ गाँव गया, लौटने में कई दिन लग गये। मुझे लगा इस बार फिर वो बदहाली की बातें सुनाएगा। लेकिन इस बार उसका अनुभव बेहद अलग था। गावं से लौटकर उसके चेहरे पर वह खुशी झलक रही थी, चेहरे पर संतोष दिखायी दे रहा था। वो कह रहा था की अब गावं में विकास का काम हो रहा है। पढे लिखे नौजवानों को रोजगार उपलब्ध हो रहे है। घर घर में टेलीविजन और डिश एन्टीना की छतरी लगी दिख रही है। बेरोजगारों को भी दिहाडी मिल रही है। जिन्हे काम नहीं मिला है उन्हें भी भत्ते के रुप में खाते में पैसे जमा हो रहा है। शहर की चकाचौंध से आकर्षित होकर शहर की तरफ दौडनेवाली युवा पीढी अब गांव में रहकर ही व्यापार या नौकरी कर रही है। सडकों का निर्माण हो रहा है, तो अनपढ लोगो को भी रोजी रोटी का साधन मिल रहा है। अचानक तो किसी गांव की या शहर की तस्वीर तो नही बदलती है।लेकिन इस विकास पे पीछे डर ज्यादी हावी है तभी तो आनन फानन में विकास हो रहे हैं। जी हां डर मुंबई से लौटे उत्तर भारतीय अपने सांसदो और विधायकों से काफी खफ़ा है। मुम्बई में जो उनकी दुर्गति हुई उसके जिम्मेदार अपने सांसद और विधायकों को ही ठहराया। साफ तौर पर कह डाला कि अगर रोजगार यहीं मिलते तो दूर देश जाने की कोई जरुरत ही नहीं थी। धमकी दे डाली कि विकास नही तो सरकार को वोट भी नही मिलेगा। चुनावों की सरगर्मियाँ तेज है, ऐसें में अगर वोट बैंक को लुभाने में सासंद नाकाम होता है, तो सत्ता की नैय्या डांवा डोल हो ही जाएगी। मुंबई से अपने प्रदेश लौटे लोग काफी नाराज है। मुंबई में भाषावाद का तो वे शिकार बने ही साथ ही रोजी रोटी का भी साधन छीन गया । कई लोगों के साथ तो मार पीट भी हुई। नतीजा अब यह है की, वे अब अपने राज्य के सांसद से जवाब मांग रहे है। उन्हे अब कोरे आश्वासन नही चाहिए। सह चुके जितना सहना था। उन्हे भी पता चला है, चुनावी बिगुल बज चुका है, और अब बारी है जवाब तलब करने की । यह बात सिर्फ उत्तर भारत तक सीमित न रहते हुए देश के हर कोने तक पहुँचनी चाहिए। हर मतदाता को अपने नेता से जवाब मांगने का अधिकार है, और वोट देकर सही सरकार चुनने का। वोट का प्रयोग अवश्य करे और सोच समझकर करे ताकि विकसित और सुरक्षित देश में रह पाये।

पाकिस्तान के नापाक इरादे...

पाकिस्तान नाम से को साफ है कि पाक- साफ लोगों के रहने का स्थान, लेकिन आज ये पाकिस्तान के फिरकापरस्त लोगों के कारनामे ने नापाक इरादों को साफ कर दिया है। इनके इसी हररकत ने विश्वभर फैले हर पाकिस्तानी पर शक पैदा कर रहा है। हालात यहाँ तक है कि एक फिर सेना अपने मनसूबे बनाने लगी है। पाकिस्तान मे अब सेना शासन लगने के आसार नजर आ रहे। जनता बेबस बस देख भर रही है। लोकतंत्र तो पहले से ही दम तोड़ रहा है,और अब तो आतंकी दूसरे देशो के साथ साथ अब पाकिस्तान पर भी कभी कभार हमला कर दे रहे है। वहीं नवाज शऱीफ ने अब ज़रदारी को चुनौती दी है। मुस्लिम बहुल देश होने के बावजूद लोगों का विकास नही हो पा रहा है। अनपढ़ बोरोजगार युवकों को बरगलाकर आतंक की राह पर चलने को मजबूर किया जा रहा है। अमरिका, भारत के साथ कई देश इन आतंकीयों का शिकार बने है। लेकिन दुनिया की सबसे निंदनीय घटना और शर्मनाक घटना हुई इसी देश में। श्रीलंकाई क्रिकेट टीम पर आतंकीयों का हमला। पाकिस्तान को और कितने सबूत चाहिए आतंकीयो का बेपर्दा करने के लिए । आतंक को पनाह देनेवाला पाकिस्तान अपने देशवासीयों की हिफाजत नही कर पा रहा है। इसकी खुल्लम खुल्ला मिसाल है, स्वात घाटी का । ये वो इलाका जहां लडकियों को पढाया नही जाता। लडकियों के स्कूल जला दिये गयें है। जबरन नन्ही सी बच्चियों की आतंकियों से शादी करायी जाती है। तालीबान की हुकूमत पाकिस्तान तक पहुँच गयी है। आतंक का पनाहगार बनकर अब पाकिस्तान से हर देश का भरोसा उठ रहा है। समाज,देश और जाति की सीमाओं से पार खिलाडियों को भी नहीं बख्शा नहीं इन हैवानियत के पुजारियों ने। शांति के दूत माने जाने वाले खिलाडियों पर गोलियां बरसायी गयी। खतरे की चेतावनी मिलने के बाद भी खिलाडियों के सुरक्षा के लिए पुख्ता इंतजा़मात नही किये गये, उलट पाकिस्तान ने यह तक कह डाला की यह हमला भारत ने किया है। खुले आम आतंकी बाईक पर घूमते है, लेकिन उनका कोई कुछ नही बिगाड सकता। खुद को आतंकवाद का शिकार बताकर मगरमच्छ के आसूं बहानेवाला पाकिस्तान इतना कुछ होने के बावजूद भी भारत की सहायता नही कर रहा है। हर बात से पल्ला झाडकर आतंकियो की हौसला अफजाई कर रहा है। क्यों नही पहल करके प्रत्यार्पण कानून बनाने पर जोर दे रहा है। विश्व में भारत एक शक्ति बनकर उभर रहा है, उसे इतनी आसानी से खोखला नही बनाया जा सकता। भारतवासीयो के बुलंद हौसलों को पस्त करना इतना आसान नही होगा। हर बार सच्चाई से आतंकवाद का सामना करनेवाला भारत आतंकियों की जडे खोदने में एक ना एक दिन जरूर कामयाब होगा। जरूरत है भारतीयों को एक साथ आने की और देश के भीतर के गद्दारों को चुन-चुन कर निकाल फेकने की।

Thursday, March 5, 2009

सपनो का आशियाना

स्लम डॉग मिलेनियर में किरदार निभाकर धारावी का नाम पूरे दुनिया में मशहूर करनेवाली रूबीना को उस दलदल से निकलना मौका मिल रहा है, तो उसके मां का प्यार आडे आ रहा है। म्हाडा रूबीना को आशियाना देकर उसके भविष्य को सवारने का प्रयास करना चाह रही थी, राज्य सरकार ने भी उस पर मुहर लगा दी थी। लेकिन रूबीना नये घर का सपना संजोए उससे पहले ही उसकी मां ने उसके सपनो पंख कतर दिया। रूबीना के सपने सगी और सौतली मां के झगडे में दम तोड रहे है। एक छोटी सी झोपडी में अपने बचपन को संवारने की कोशिश करनेवाली रूबीना के हाथ मौका लगा भी, और उसका नसीब करवट ले ही रहा था कि तभी दो माँओ के झगडे उसकी ख्वाईशों पर पानी फेरते नजर आ रहे है। सगी मां का कहना है कि सौतली मां रूबीना के साथ नये घर में नहीं रहेगी। जबकी सौतेली मां का कहना है कि वह रूबीना की परवरिश कर रही है,तो उसका हक बनता है नये घर में रहने का। उसके अब्बा की भूमिका की क्या बात करें उनकी तो तीन-तीन शादीयां हो चुकी है। नशे की लत सारे परिवार को ले डूब रही है, ऐसे में अगर नन्ही जान रूबीना ने अपने साथ साथ उनको भी एक नयी पहचान दी है। कई घरों में ऐसे बखेडे होते होंगे, लेकिन उन मासूमों का क्या जो इन सबों से कोई लेना देना नहीं होता, उनकी इन झगडों के उपजने में कोई हिस्सेदारी भी नहीं होती। माँ-बाप के झगडें की वजह से अंदर ही अंदर बचपन से लेकर बडे होने तक घुटते रहते है। नन्ही सी कली खिलने से पहले ही मुरझा रही है। प्यार मिलना तो दूर ही रहा लेकिन खुद के बलबूते मिल रहे घर पर विवाद खडा हो गया है। दलदल से निकलने का रास्ता भी मिला तो अपने ही उसमें रोडे अटका रहे है, अपने ही। कमल तो खिला था दलदल में, लेकिन कम से कम अब तो उसकी सही जगह पर उसे जाने देना जाहिए। मुफलिस जिंदगी में अगर रूबीना को पैबंद लगाने का मौका मिल रहा है, तो उसके परिजनों का कोई हक नही बनता कि उसके सपने उससे छीन ले।