लाईटस्... कैमरा.. एक्शन.... ये अलफाज सुनने के बाद यकीनन हमें महसूस होता है कि कहीं पर शुटींग चल रही है। ये अलफाज मैने भी सुने। शुटिंग देखने के लिए समय तो नही था लेकिन देखा वो भी अपने काम करते हुए, दरअसल बात ये हुई कि हमारे ऑफिस में ही दो दिन से शुटींग चल रही थी। एक फिल्म है जिसका नाम तो तय नही है, लेकिन थीम थायद न्यूज चैनल पर आधारित थी। दो शॉट देने के लिए तकरीबन 3 घंटे का समय लगा। दो शॉट में सिर्फ दो लाईन का डायलॉग था। ऐसा नही था कि कलाकार ठीक से शॉट नही दे रहे थे लेकिन शुटींग में लगने वाला साजो सामान सजाने और उठाने में ही सारा समय निकल जाता था। बडी बडी लाईटस, ट्रॉली, कैमेरे, परदे और अनगिनत चीजें। फिल्म देखते वक्त हम सिर्फ डायलॉग, लोकेशन और हीरो, हीरोईन को देखते है, लेकिन उसके पीछे की जी तोड मेहनत के बारे में हम सोचते भी नही। भरपूर मेहनत और संयम से भरे इस मेहनत मजदूरी भरे काम को ना तो उचित मेहनताना मिलता है और ना ही कोई पहचान ही। इस व्यवसाय में होने वाले घंटो घंटो कमरतोड मेहनत का अनुमान दो दिन में ही हो गया। चकाचौधं की दुनिया में होने के बावजूद वे चकाचौंध से कोसो दूर हें। कहीं पर उनके काम को सराहा जाता है तो कहीं रौशनी दिखाने वाले लोगों की जिंदगी को गुमनामी के अंधेरे निकल जोते हैं। जितना समझ में आया उससे यही लगता है लाईटस्.. कैमरा... एक्शन भले ही युवापीढी को अपनी तरफ आकर्षित करती हो लेकिन उसमें लगनेवाली कमरतोड मेहनत से सीख लेनी बेहद जरुरी है। कई दशक लग जाते हैं तब जाके कामयाबी नसीब होती है वो भी इस चमकीली दुनिया में कितने दिनों तक कायम रह पाती है कहना बेहद मुश्किल है। इस लिए जीवन के लाईटस्... कैमरा.... एक्शन को संभाला जाए ना कि चमकीली दुनिया में खो कर। ये जरुर है कि उत्थान की पहली सीढी जी तोड मेहनत है.... इसलिए आप भी मेहनत करें कभी तो मेहनत रंग लाएगी जो कामयाबी की चटख लाल रंग को दिखाएगी।
No comments:
Post a Comment