कल्याण- डोबींवली महानगर पालिका चुनाव के कुरूक्षेत्र में अब ठाकरे
परिवार के बीच जंग की शुरुआत हो चुकी है। महापालिका चुनाव के अखाडे में चाचा और
भतीजे ने अपनी तलवार की धार तेज कर दी है। वार- पलटवार का सिलसिला यूं तो
कई दिनो से जारी है लेकिन सोमवार को डोंबिवली में हुई सभा में भतीजे ने
अपने भाषण में चाचा को खूब खरी खोटी सुनाई उसका बदला लेने में चाचा भी पीछे नहीं रहे, बदले में तीखी और धारदार आलोचना ही कर डाली । राज ठाकरे बनाम बालासाहब ठाकरे शीत युद्ध अब शब्दबेधी वाण का शक्ल ले चुका। पिछले काफी दिनों से थोडा स्थिर था लेकिन अब मुखर हो गया है। दशहरा रैली के दौरान शिवसेना सुप्रीमों ने राज ठाकरे पर निशाना साधते हुए राज को कॉपी कॅट कहा और उनकी नकल उतारकर लोगो को बरगलाने का आरोप भी किया साथ ही यह भी साफ कर दिया की शिवसेना कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में उध्दव ठाकरे का चुनाव खुद राज ठाकरे ने ही किया था। ठाकरे परिवार में वंशवाद नही होने का दावा करनेवाले बालासाहब ने अपने पोते को तलवार देकर युवासेना की स्थापना करने के लिए शुभ आशिर्वाद भी दिया। चाचा के नक्शे कदम पर चलनेवाले भतीजे ने यह स्वीकार किया कि उनका लहजा , बोलने का तरीका बालासाहब जैसा ही है क्योंकि बचपन से ही वे बालासाहब के साथ हर सभा में जाते थे, उन्हे सुनते थे। उनके दिए हुए संस्कार को वो आज भी निभा रहे हे। राज ठाकरे ने ये भी स्पष्ट कर दिया कि चाहे कुछ भी हो जाए बालासाहब उनके लिए पूजनीय थे, है और रहेंगे। लेकिन राज ठाकरे ने बालासाहब को भी कॉपी कॅट होने का आरोप लगाया और कहा कि वो भी मेरे दादाजी की कॉपी करते है। साथ ही यह भी आरोप लगाया की उन्हे शाखाप्रमुख चुनने का अधिकार नही था। बालासाहब ने शब्दों के अनेक अस्त्र चलाकर ठाकरे परिवार में छिडी जंग को स्वीकार किया और राज ठाकरे की सरेआम धज्जियां उडायी। बात तो वही होने लगी जो नाना पाटेकर ने अपने डॉयलग में कहा था,यही वाला साहव ने भी बोला... बच्चा समझ के कंधे पर उठाया तो कान में .........। जिस बच्चे को कंधे पर घुमाया अपने हाथों से खाना खिलाया आज वही हमारे नाम से चिल्ला रहा है। शिवसेना की दुहाई दे रहा है, उसी शिवसेना के बलबुते ये चूहों की सेना चींची करती नजर आ रही है। लातों के भूत जिस तरह बातों से नही मानते उसी तरह मनसे अध्यक्ष का भी समाचार लेना लाजमी हो जाता है।
ठाकरी भाषा से हर कोई अवगत है, और उनके इसी लहजे को सुनने के लिए लाखो लोग जुटते हैं, जिसे आम भाषा में मास अपील की संज्ञा देते हैं। लेकिन एक मराठी माणूस चाहे वो शिवसैनिक हो या मनसैनिक हो इस घडी में दुविधा में है। ठाकरे परिवार का पारिवारीक कलह पब्लीक मंच से घर घर तक पहुच चुका है। सत्ताधारी एनसीपी और कांग्रेस नेता भी खूब मजे लेकर परिवार की उडती धज्जियां को गिना रहे है। राजनीति में इस तरह के वाकये होना लाजमी है।लेकिन आशा भंग तब हो रहा है जब मराठी माणूस के अधिकार के लिए लडनेवाले दोनो ही ठाकरे आज आपस में लड रहे है। जिस मराठी माणुष के कल्याण के लिए शिवसेना और मनसे का गठन किया गया था वो आज वंशवाद के मुद्दे पर एक दूसरे की बखिया उघेडने में लगे हैं। लोगों मे आज मजाक का विषय बनते जा रहे है, लोग अब भ्रम में पड चुके है किसका साथ निभाये, किसके साथ जाए। कौन उनकी समस्याएं दूर करेंगा।
राजनीति और सत्ता में कोई किसी का नही होता लेकिन आम आदमी के कल्याण का बीडा उठानेवाला ठाकरे परिवार अब अपने अस्त्र एक दूसरे पर नही बल्कि आम आदमी को न्याय दिलाने के लिए उठाये तो बेहतर होगा ताकि जिस उम्मीद से ठाकरे परिवार के साथ लोग जुडे है उनकी उम्मीदों और इच्छाओं पर पानी ना फिर जाए। अंदरूनी राजनीति जानने में आम इंसान को कोई सरोकार नही होता उसे तो चाहिए बस इंसाफ। वो तो कहता है हम क्या जाने नेता कौन कौन हमारा तारणहार हमें बसे दे दो जीने का अधिकार।--
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