आगामी लोकसभा के लिए चुनाव होने जा रहे है। सभी पार्टीयों ने अपने अपने उम्मीदवार चुन लिए है, और प्रचार के लिए पूरे देशभर में रैलीयों का आयोजन किया गया है। बडे बडे दिग्गज नेता अपने चुनाव क्षेत्र के साथ-साथ पार्टी के उम्मीदवारों के लिए भी वोट मागं रहे है। राजनीति के बारे में मैं बहुत कुछ तो नही जानती लेकिन आम आदमी के जेहन मे जो सवाल उठते होगें वो मेरे भी दिमाग में रह-रह कर आते है। देश के बडे से बडे नेता के पास न रहने को घर है , ना ही चलने के लिए गाडी। नॉमिनेशन फॉर्म में तो कईयों ने लिखा है कि वो सरकारी घर में रहते है, किसी की संपत्ति पुश्तैनी है तो किसी के पास गुजर बसर करने के लिए थोडा सा धन। एक आम आदमी कैसे यकीन कर सकता है की देश को चलाने वाले नेताओं ने ईमानदारी से अपने संपत्ति को ब्योरा दिया है। कई नेताओं के संपत्ति का ब्योरा देखकर तो कई मध्यमवर्गीय लोगों को लगता होगा कि हम इन नेताओं से अमीर है। लेकिन ऐसा नहीं है हालात ये है कि इन नेताओं की अरबों की काली कमाई विदेशी बैंकों में जमा है। अगर वो सारी रकम अपने देश में आ जाए तो हर किसी के लिए घर बन सकता है और हर किसी के खाने की समस्या दूर हो सकती है। लेकिन ये सांप की तरह अपनी काली कमाई पर कुंडली मार कर बैठे हैं। ना ही इस काली कमाई को कोई ब्योरा भी देने की जहमत उठाते हैं बस लगे रहते हैं दोनों हाथों से पैसे बटोरने में। आखिर सवाल उठाता है कि इन खून चूसनेवाले जोकनुमा नेताओं से कैसे बचा जाए। अगल-बगल की दुनिया देख चुके लोग भले ही कुछ सजग हो जाएगें लेकिन अधिकांश जो कि इन वितारों का कत्लेआम मचानेवाले लोगों के बारें में समझ ही नहीं पाते आर उनके विचारों से अनजान रहते हैं एक बार फिर छले जाएँगे।
लेकिन कई ऐसे भी नेता है जिनकी संपत्ति कई करोड है, उन्होने अपने ब्योरे दिए हैं। लेकिन क्या उन्होने भी ईमानदारी से अपने संपत्ति का ब्योरा दिया है ? क्या आम आदमी इतना बेवकूफ है कि उसे इस तरह दिन ब दिन बेवकूफ बनाया जा रहा है। दो वक्त के रोटी का जुगाड करनेवाले मतदाता को रिझाने का यह पैतरा कितना कामयाब होगा पता नही, लेकिन मतदाता को उल्लू बनाकर अरबो रूपये का धन जमा करनेवाले नेताओं पर कितना यकीन रखना है, ये अब सजग होकर मतदाता को ही सोचना होगा।
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