Thursday, March 5, 2009

सपनो का आशियाना

स्लम डॉग मिलेनियर में किरदार निभाकर धारावी का नाम पूरे दुनिया में मशहूर करनेवाली रूबीना को उस दलदल से निकलना मौका मिल रहा है, तो उसके मां का प्यार आडे आ रहा है। म्हाडा रूबीना को आशियाना देकर उसके भविष्य को सवारने का प्रयास करना चाह रही थी, राज्य सरकार ने भी उस पर मुहर लगा दी थी। लेकिन रूबीना नये घर का सपना संजोए उससे पहले ही उसकी मां ने उसके सपनो पंख कतर दिया। रूबीना के सपने सगी और सौतली मां के झगडे में दम तोड रहे है। एक छोटी सी झोपडी में अपने बचपन को संवारने की कोशिश करनेवाली रूबीना के हाथ मौका लगा भी, और उसका नसीब करवट ले ही रहा था कि तभी दो माँओ के झगडे उसकी ख्वाईशों पर पानी फेरते नजर आ रहे है। सगी मां का कहना है कि सौतली मां रूबीना के साथ नये घर में नहीं रहेगी। जबकी सौतेली मां का कहना है कि वह रूबीना की परवरिश कर रही है,तो उसका हक बनता है नये घर में रहने का। उसके अब्बा की भूमिका की क्या बात करें उनकी तो तीन-तीन शादीयां हो चुकी है। नशे की लत सारे परिवार को ले डूब रही है, ऐसे में अगर नन्ही जान रूबीना ने अपने साथ साथ उनको भी एक नयी पहचान दी है। कई घरों में ऐसे बखेडे होते होंगे, लेकिन उन मासूमों का क्या जो इन सबों से कोई लेना देना नहीं होता, उनकी इन झगडों के उपजने में कोई हिस्सेदारी भी नहीं होती। माँ-बाप के झगडें की वजह से अंदर ही अंदर बचपन से लेकर बडे होने तक घुटते रहते है। नन्ही सी कली खिलने से पहले ही मुरझा रही है। प्यार मिलना तो दूर ही रहा लेकिन खुद के बलबूते मिल रहे घर पर विवाद खडा हो गया है। दलदल से निकलने का रास्ता भी मिला तो अपने ही उसमें रोडे अटका रहे है, अपने ही। कमल तो खिला था दलदल में, लेकिन कम से कम अब तो उसकी सही जगह पर उसे जाने देना जाहिए। मुफलिस जिंदगी में अगर रूबीना को पैबंद लगाने का मौका मिल रहा है, तो उसके परिजनों का कोई हक नही बनता कि उसके सपने उससे छीन ले।

1 comment:

Sudeep Gandhi said...

सच कहूँ आपने बेहतरीन लिखा है, ये जरूर होता है कि एक तरफ तरक्की होती है तो अपने ही पर कतरने लगते हैं.. लिखते रहिये आपके लिखे से बल मिलता है.. सुदीप गाँधी,