भगवान में आस्था रखनेवाले या ना भी रखनेवालों को तो यह जरूर पता होगा की शिवरात्री का पावन पर्व याने भगवान शिव और माता पार्वती का ब्याह. हाल ही में मैने एक किताब पढी, हालांकि किताब पौराणिक नही थी, लेकीन यह जरूर कहा जा सकता है कि शिवभक्तों की आस्था को ध्यान में रखकर ही किताब लिखी गयी है। भोले शकंर के हर रूप को साकार किया गया है। या यूँ कहे कि सर्व शक्तिमान भगवान होने के बावजूद भी एकदम सीधे-साधे,भस्मधारण करके तपस्या करनेवाले, ना सिंहासन का मोह,नाही ऐशो आराम का। कहते है भोले बाबा किसी भी भक्त को खाली हाथ नही लौटाते, बस उनकी सच्चे दिल से आराधना करनी होती है। लेकिन वास्तविकता अब कुछ और ही है, भक्त और भक्तों को भगवान से मिलानेवाले पंडो कि निकल पडी है, पूजा तो कराते है, लेकिन वो होती है इस्टंट । जल्दबाजी में मंत्र पढे और निकल लिये दूसरे जजमान के यहां पूजा कराने। जजमान के लिए तो भगवान से मिलानेवाला पंडित ही भगवान समान होता है, भले ही उनके पढे मंत्र समझ में आये या ना आये। दिल में रचे बसे भगवान को प्रसन्न करने के लिए क्या किसी पंडित की सचमुच जरूरत होती है ? इन दिनों भगवान को सोने से मढने का फैशन सा निकल पडा है, बडा बिजनेसमैन मतलब बडा चढावा। जैसे लगता है कि मुर्तियों को सोना से मढने सचमुच भगवान प्रसन्न होकर और ज्यादा धन देंगे। या फिर अपनी काली कमाई छुपाने के लिए भगवान को हिस्सेदार बनाया जाता है, ताकि पाप घुल जायें। दर्जनों अनाथ आश्रम है, वृध्दाश्रम है,जो राजनैतिक हो या फिर सामाजिक सहायता से वंचीत है। हम और आप भगवान के बीच में किसी माध्यम को ढूँढने के बजाए सीधे भगवान से ही अपनी कहानी कहें। भगवान के प्रति श्रध्दा जरूर रखीये, लेकिन चढावे के रूप में हो, या फिर चंदे के नाम पर दी जानेवाली रकम का अगर सही इस्तेमाल आप करे तो भगवान ही नही बल्की इंसान भी आशीर्वाद देगा। कहा भी जाता है कि कण-कण में भगवान बसते हैं तो क्यों ना हम हर इंसान में ही भगवान को देख कर उसे ही अपनी श्रद्धा व्यक्त करें। हम में तुम में खड्ग खंभ में सबमें व्यापत राम,, ये बात प्रह्लाद ने सैकडो बर्ष पहले कहा है तो क्यों ना भोले शंकर को हम अपने आस पास ही ढूँढे। हर हर महादेव के नारे का मतलब ही है कि हर खुशी चारो तरफ से जल की धारा की तरह बहे। गंगा की धारा की हर कोने कोने तक पहुँचे और तन मन पवित्र हो। ऊ नम: शिवाय, सत्यम् शिवम् सुन्दरम्,, निरंकार ब्रह्म हम में तुम में है तो भेद क्यो?
1 comment:
वाकई हर हर महादेव बोलने से नहीं होता आचरण में उतारना बेहद जरूरी है, बढिया लिखा आपने.. सुदीप गाँधी
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