गुरूपूर्णिमा का उत्सव तो सभी मनाते है। स्कूलों में भी यह उत्सव मनाया जाता है। गुरू के प्रति अपनी श्रध्दा या भावना जताने का एकमात्र दिन। मुझे याद है स्कूलों में हम भी गुलाब लेकर जाते थे और आशीर्वाद लेते थे। लेकिन स्कूल में भी पसंदीदा टीचर को ही फूल दिया जाता था। सबकी अपनी अलग अलग पसंद। बाजार में स्कूल के बच्चों के लिए बनाये गये गुलदस्ते देखकर पता चल जाता है कि आज गुरूपूर्णिमा है। गुरू और शिष्य का रिश्ता क्या उसी तरह का रह गया है, जो कई सालों पहले हुआ करता था। गुरू अपने शिष्य को पढाने के लिए कोसो दूर पैदल चलकर जाया करते थे। अब आधुनिक जमाना है शिष्य भी मॉर्डन और गुरू भी। कई गुरू तो इस पाक रिश्ते को कलंक भी लगा चुके है। कई छात्रा अपने गुरू के हवस का शिकार भी बनी है। अब गुरू शिष्य के रिश्ते में वो संजीदगी नही रही है। आधुनिकता की दौर में शिक्षा का बाजारीकरण हो गया है, और छात्र को अपना करियर बनाना होता है। और इन दिनो तो जिस तरह शिक्षा पाने के लिए छात्रों को आंदोलन , धरना प्रदर्शन, एडमिशन पाने के लिए करनी पड रही जद्दोजहद की वजह से छात्रों के मन में गुरू के प्रति कटूता का ही निर्माण किया है। भक्त भी भगवान के मंदिर में जाकर अपनी आस्था प्रकट कर रहे है लेकिन मन में कुछ न कुछ पाने की इच्छा जरूर होती है। बच्चो और मां पिता का रिश्ता भी दिन ब दिन व्यावहारिक होता जा रहा है। बच्चो को अपनी इच्छा पूरी करनी होती है तो मां पिता को अपनी । हालांकि सभी ऐसे नही होगें लेकिन कुल मिलाकर देखा जाय तो लेन और देन पर ही गुरू शिष्य का रिश्ता निभ रहा है।
2 comments:
आपका लिखना बेहद सार्थक है. बातें बिल्कुल सही हैं। अच्छा है लिखते रहिए। सुदीप..
मैंने आपकी बातों को बडे संजीदगी से पढा मेरे टीचर जी की याद ताजा हो गयी। बहुत बढिया... नेहा कपूर
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