Thursday, December 24, 2009

बूझ गया चिराग.. डूब गया घर का सूरज ...

कक्षा पांचवी का छात्र चिराग पटेल स्कूल प्रशासन की लापरवाही की बलि चढ़ गया। स्कूलों में चलन हो गया है एडुकेशनल टूर और पिकनिक मनाने का। चिराग के स्कूल वालों ने भी पूरे स्कूल का पिकनिक मनाने पुणे के वॉटरपार्क में ले गये थे। सुबह सात बजे नवी मुंबई से गये पिकनिक मनाने वाले सारे बच्चे रात को दस- ग्यारह तक मुंबई लौट आए लेकिन उन बच्चों में चिराग नही था। लौटते वक्त बच्चों का गिनती की गयी जिसमें चिराग नही था। बच्चों से यह कहा गया की चिराग बाद में आ जाएगा और चिराग को छोडकर सभी बच्चों को वापस लाया गया। बच्चों के साथ गये टीचर्स ने उसके माता –पिता को इत्तला देने की जहमत भी नही उठायी। पांच छ घटों तक चिराग के परिजनों से यह बात छुपाई गयी। सुबह पता चला की स्विमींगपुल में तैरने के लिए चिराग पानी में तो उतरा लेकिन बाहर आया। बाहर निकला तो चिराग का मृत शरीर जिसमें कभी बचपन हँसता था अब वो बेजान हो चुका था। हालांकि सभी को यह पता था कि चिराग तैरना नही जानता। इस बात की जानकारी होने बावजूद भी टीचर्स ने उसे रोका नही। इसका दोष तो सीधे उन लोगों पर जाता है जो बच्चों को तो पिकनिक मामने को ले जाते हैं, लेकिन उनके नाम पर और उन्हीं के माता पिता के जरिये चुकाए पैसे से अपने मौज मस्ती में मशगूल हो जाते हैं, तो वैसे लोगों को चिराग का घ्यान ही कहाँ रहेगा। उनकी शर्म तब भी नहीं आयी जब लापाता होने का बात जान कर छुपाई और ना ही चिराग के माता पिता से इस बात की चर्चा ही की। ना ही मासूम चिराग को ढूँढने की कोशिश की गयी। पिछले कुछ दिनों से प्राइवेट स्कूलों की लापरवाही के कई मामले सामने आये है। बसों में बच्चों को तो ठूँसने का मामला हमेशा ही देखने को मिलता है । हाल ही में नवी मुंबई में स्कूल बस में आग लगने से छह बच्चे झुलस गये थे। उसी नवी मुंबई में ही दो स्कूली बस आपस में टकराई थी। शुक्र है इस हादसे में बच्चों को कोई नुकसान नही पहूंचा। कल की ही बात है उल्हासनगर में नौवीं क्लास में पढनेवाले छात्र को स्कूल में पहूंचने में थोडीसी देरी हो गयी, जिसे सहमा बच्चा मारे डर के पिछले गेट से स्कूल के अंदर जाने की कोशिश की और इसी कोशिश में लोहे का सरीया उसके हाथ में घुस गया। दो घटें तक बच्चा लहु-लुहान होकर गेट से लटका रहा। लेकिन स्कूल से कोई मदद के लिए उस बेबस के पास नहीं पहुँचा असहाय और सहमा मासूम झूलता रहा और सनता रहा अपने ही खून में। आखिरकार आसपास के लोगों ने गैस कटर के सहारे सरीया काटकर बच्चे को अलग किया। बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले, अच्छे संस्कार मिले इसी उम्मीद पर अपना पेट काटकर कई मां बाप बच्चों के स्कूलों का खर्चा उठाते है। बडे बडे स्कूलों में डोनेशन के नाम पर ऐठने वाली मोटी रकम चुका कर दाखिला करवाते है। लेकिन स्कूल है कि केवल रकम इकट्टी करने की मशीन बन गए हैं। टीचर हैं कि संस्कार देना और हिफाज़त करना तो दूर अपने ही विद्या मंदिर और गरिमा को कलंकित कर रहे हैं। बहुत पहले ही कहा गया है कि गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देव महेश्वर:, गुरूर साक्षात परब्रह्म तस्मैव श्री गुरुवे नम:। छात्र तो इस पर अमल कर लेगें लेकिन लेकिन अब वो गुरु कहाँ से लाएँगे चिराग को जो बुझ चुका है.... क्या गुरु अपने पद से गिर नहीं गये। इन पदच्यूत गुरुओं के साथ व्यवहार क्या होना चाहिए ये तो आप ही तय करेंगे।

1 comment:

Sudeep Gandhi said...

बहुत बढिया लिखा आपने आज लोग स्वार्थी हो गए हैं मासूमों की जिन्दगी से खेलने लगे हैं। बहुत बढिया अच्छी बातें लिखी आपने। -- सुदीप