Monday, December 14, 2009

आत्महत्या की वजह शराब या बरसात का पानी

हमारे राजस्व मंत्री नारायण राणे कहते है कि महाराष्ट्र में विदर्भ के 6 जिलों में शराबबंदी कराई जाए ताकि वहां के किसानों को आत्महत्या से बचाया जा सके। मंत्री जी के मुताबिक किसानों की आत्महत्या का कारण है शराब। शराब की बातें कह कर मंत्री जी ने किसानों के मुंह पर सरासर तमाचा जड दिया है। उनकी गरीबी, मुफलिसी और लाचारी का खुल कर मजाक उडाया मंत्री जी ने। शराब सिर्फ महाराष्ट्र के 6 जिलों के किसान ही नही बल्कि देशभर में कई लोग पीते हैं। शराब कुछ हद तक बर्बादी का कारण हो सकती है, लेकिन जहां बरखा रानी ही अपना मुंह मोड ले वहां किसान अपनी फसल के लिए कहां से पानी लाए। गनीमत है कि महाराष्ट्र में फसल बरबाद हो जाते हैं तो काजू और अंगूर के सहार किसान कुछ कमा लेते हैं जिससे उनके खाने का जुगाड भर होकर के रह जाता है। महाराष्ट्र के अन्य जिलों के मुकाबले विदर्भ का किसान ज्यादा परेशान है। मुफलिसी तो जैसे उनकी किस्मत ही बन गयी है जिससे साफ लगता है कि, इन गरीब किसानों से इस जीवन में तो यह साथ छोडने से रही अगले जन्म के लिए भी शायद ही छोडे। विदर्भ के भंडारा में इस साल दोबारा हुई बरसात ने किसानों की उम्मीद जगाई लेकिन धान का बीज डालने के बावजूद भी फसल नही आयी क्योंकि बीजों की किस्म ही खराब बल्कि नकली थे। किसान इतना आहत हुआ कि अपनी मेहनत से उगाई गई फसल में ही आग लगा दी। जबकि उसको पता था की खेत जलाने का मुआवजा उसे मिलनेवाला नही। मंत्रीयों के भी खेत खलिहान है, वहां चौबीसों घंटा पानी मिलता है। फसल लहलहाती रहती है। फसल के दाम भी अच्छे खासे मिलते है। मंत्रीयों के शक्कर के कारखानों का बिजली बिल का बकाया लाखों रूपये है। वहीं दूसरी ओर विदर्भ में कुछ समय के लिए भी बिजली नसीब है। पानी है, तो बिजली नही और बिजली है तो पानी नही। नकली बीज,नकली खाद। फसल की बर्बादी के बाद सब कुछ गिरवी रखने के बाद भी दो वक्त की रोटी नसीब नही। विलासराव देशमुख ने भी एक बार कहा था की कपास की पैदावार करनेवाले किसान कपास बेचते वक्त उसमें पानी और पत्थर मिलाते है। किसानों की आत्महत्या अब इतनी सस्ती हो चुकी है की प्रधानमंत्री द्वारा आनन फानन में पैकेज जारी करने के बाद भी कईयों तक अभीभी मदत की राशि पहुँच नही पायी है। किसानों की आत्महत्या बहुत ही सस्ती हो चुकी है, क्यों की आश्वासनों का पुलिंदा देकर जीत कर आनेवाले नेता चाहे वो सरकार में बैठे हो या विपक्ष में उनसे पूछने वाला कोई नही। खून पसीने से मिट्टी से सोना उगानेवाला किसान मिट्टी में मिल जाए इन खद्दरधारियों को कोई फर्क नहीं पडता। मौत सस्ती हो गयी है, नेताओं की मौज पर कोई रोक नहीं ये जरुरी है। किसान जय नहीं रहा अब किसानों पर राजनीति करने वालों की ही जयजयकार है इनकी मोटी खाल पर कुछ भी असर नहीं पडता।

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