Tuesday, December 15, 2009

इन्सानियत भी मर चुकी…........

आतंक का हमला वो भी संसद पर इसके आठ साल बीत गये। इस आतंक का खूनी खेल खेलने वाले दोषीयों को सजा देना तो दूर की बात लेकिन अपनों को श्रध्दांजलि देने के लिए भी सासंदो ने पीठ ही दिखाई। इन शहीदों की शहादता का ये बदला क्या लेगें अपनी ही लाज छुपाने के लिए घरों में दुबके रहे। सुरक्षा कर्मियों ने अपनी जान की बाजी लगाकर संसद पर हमले करनेवालों की खबर ली लेकिन उनके लिए दो पखुंडियां फुलों की श्रध्दांजलि देने के लिए भी नेताओं को फुरसत नही मिली। नेताओं के लिए संडे यानी फन डे, मौज मस्ती का दिन। एसी कमरों में रहकर के ये कामकाज से थक गये हैं सो सूकून पाना इनके लिए थायद सबसे जरुरी था। रीलैक्स होने के लिए किसी ने मना नहीं किया था बस जरूरत थी इन वीरों के लिए थोडी सी अपने कर्त्तव्य का निर्वहन करने के लिए भी। सिर्फ कुछ समय निकालकर अगर शहादत की लाज रखते तो लोगों की नजरों में उनका सम्मान और बढ जाता। शहीदों के परिजन अभीतक मुआवजे से महरुम हैं, वहीं दूसरी ओर उन शहीदों के परिजनों का मजाक बनाकर रखा गया है। सांसदो ने अपने जान की रखवाली का शुक्रिया अदा करना तो दूर की बात आगे चलकर यह सरेआम कहने में भी नही हिचकिचाएंगे की सुरक्षा कर्मी तो होते ही है देश की सुरक्षा के लिए, और शहादत के बाद उनके परिजनों को मुआवजा भी मिलता है। 26/11 के हमले के बाद रतन टाटा ने ताज में मारे गये लोगों के परिजनों और जख्मियों को घर पर रखकर सैलरी दी, उनके बच्चों के पढाई का खर्च भी उठा रहे हैं। और भी बहुत कुछ कर रहे है। जिसका उन्होने प्रदर्शन भी नहीं किया है। ये बात अलग है कि उनके पास पैसा है लेकिन इतना भी नहीं कि सरकार से ज्यादा जिसे हम और आप अपना मालिक ही समझते हैं। लेकिन इन्सानियत को देखते हुए इन पीडितों से रतन टाटा मिले और पीडितों का ढांढस भी बंधाया। नेताओं को अपने जेब से मुआवजा या मदत नही देनी थी,वो लोगों का ही पैसा होता है। सीमा पर लडनेवाले, देश पर शहीद होने वाले, देश के लिए मर मिटनेवाले लोगों की कद्र नही होगी तो आगे चलकर कोई मां, कोई पत्नी , कोई पिता या भाई अपने बेटे या बेटी को देश के हवाले करने से पहले सौ बार जरूर सोचेगा। देश प्रेम तो जरूर होगा लेकिन सरकारी उपेक्षा उसपर हावी रहेगी जिससे पूरा परिवार जीते जी रोज रोज मरता रहेगा।

1 comment:

Anonymous said...

बहुत अच्छा लिखा आपने-- सुदीप