Monday, December 14, 2009

पा ने पा ली दिल की राह

कल मैने भी पा देखी, सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के जरिये साकार किए ऑरो के किरदार को मेरा सलाम। उनके अभिनय में शायद ही कोई ऐसी जगह हो जहाँ खामियां निकाली जा सके। ऑरो का किरदार निभाने में उन्होने इस उम्र में जो मेहनत की है, उसके लिए शब्द ही नही है, हालांकि अमित जी इस भूमिका को महज भूमिका मानते है। उन्हे लगता नही कि उन्होने कोई अदभूत काम किया है। उनके अभिनय, और सहनशीलता को लाखों बार नमन कर सकते हैं। बढती उम्र में कलाकार पिता, दादा या नानाजी का किरदार निभाते है लेकिन अमिताभ बच्चन मेरी नजरों में अमिताभ बच्चन जी बन गये हैं। ऑरो के किरदार के लिए घंटो मेक-अप करके आवाज में बदलाव लाकर अपने नाते पोतीयों के रहन- सहन, चाल- ढाल को देखकर ऑरो को सौ प्रतिशत न्याय दिलाया है। प्रोजेरिया से पीडित बच्चे तो हमारे देश में है लेकिन “पा” के जरिए उनकी पीडा के बारे में जानने का मौका मिला है। इस बिमारी से पीडित बच्चे बुजुर्गों के तरह दिखते है, साथ ही लोगों के मजाक का विषय भी बनते हैं। ऑरो के किरदार ने छत्तीसगड में पल रहे दो जुडवा बच्चों पर रोशनी डाली है। उनके पालन पोशन के लिए उनके माता –पिता को किस तरह की परेशानी आ रही है इसका पता भी चल गया। उनकी परेशानी और दुख दर्द को देखकर मन बडा ही आहत हुआ। लेकिन ऑरो और इन बच्चों में काफी असामानताएं है। दिखने में ये बच्चे उम्रदराज लगते हो, लेकिन ऑरो से काफी अलग। ऑरो स्कूल जाता है, उसके दोस्त, प्रीसींपल, टीचर सभी उसके सेहत का ख्याल रखते हैं, और तो और उसकी मां एक डॉक्टर है जो उसकी सेहत का हर पल खयाल रखती है। ऑरो को सारी सुविधांए है, पढाई के लिए कॉम्प्युटर, खेलने के लिए गेम ।वावजूद इसके ऑरो 13 साल के उम्र में ही चल बसता है। इस बिमारी और उसके पीडा के बारें में जानने को मिला। उसके लाईइलाज होने की जानकारी भी मिली। लेकिन गरीब घर में पैदा होनेवाले कई ऑरो को ना तो डॉक्टरी सुविधा मिल पाती है ना ही स्कूल जाना नसीब होता है। प्रोजेरिया पर आनेवाले कुछ सालों में इलाज निकलने की संभावना तो है, लेकिन उसका खर्च करना आम आदमी के लिए नामुमकिन। स्थानीय प्रशासन को इन बच्चों के इलाज का खर्चा उठाकर उन्हे कुछ ही दिन के लिए सही लेकिन जीने की उम्मीद दिलानी चाहिए, जीवन में भरपूर खुशियाँ बिखेर देनी चाहिए।