Monday, January 4, 2010

करियर का विनाश- रैगिंग

मुझे आज भी याद है कॉलेज को वो दिन, एडमिशन लेते वक्त काफी खुशी थी, कैसा होगा कॉलेज, स्टुडेन्टस कैसे होगे, टिचर्स कैसे पढाएंगे इस बात का एक्साईटमेंट था। लेकिन जब कॉलेज का पहला दिन आया तो कॉलेज जाने से डर लगने लगा। डर पढाई का नही था बल्कि रैगिंग का नाम सुन रखा था। कुछ साल पहले भी कॉलेज में रैगिंग का चलन था, लेकिन आज जिस तरह वहशियाना है उस तरह का नजारा पहले नही था। कॉलेज में सिनीअर्स ज्युनियर्स का मजाक उडाते थे, वह मजाक केवल मजाक तक ही सीमित रहता था। बाद में सिनिअर्स ज्युनिअर्स को अपने नोटस देकर उन्हे पढाई करने का तरीका भी सिखाते थे। लेकिन आज का दौर काफी आगे निकल गया है। नयी नयी तकनीक से लैस छात्रों को छेडछाड के नये नये तरीके आसानी से मिल रहे है। आज पढने पढाने का तरीका, रहन सहन का तरीका बिल्कुल बदल चुका है। छात्रों से बदसलूकी करना, लडकियों से छेडछाड करना आम बात हो गयी है। रैगिंग का विभत्स रूप सामने आ रहा है। अश्लीलता ने अपने हाथ पांव पसारे है। और अश्लीलता का शिकार बन रहे है मासूम छात्र। पैसा और तकनीक को इन्सानियत से ज्यादा जगह मिल रही है। रैगिंग के शिकार सैकडों बच्चो ने आत्महत्या करके मौत को गले लगा लिया वहीं कई बच्चों की मानसिक हालात ठीक नही है, उनकी जिंदगी पुरी तरह से बर्बाद हो गयी है। सुप्रीम कोर्ट ने रैगिंग के खिलाफ ठोस कदम उठाने के निर्देश भी दिए है बाबजूद ऐसी घटनाओं में कमी नही आ रही है। रैगिंग के खिलाफ कानूनी कारवाई तो हो रही है, लेकिन जो छात्र उसका शिकार हो रहे है उनकी जिंदगी का खामियाजा कोन देगा। फिल्में देखकर उसमें दिखायी गयी निगेटिव बातों को अमल में लाना सरासर बेवकूफी है। फिल्में सिर्फ मनोरंजन के लिए देखें ना ही उसका दुरूपयोग करने के लिए। ज्युनिअर्स से मजाक मस्ती जरूर करें लेकिन सिनिअर्स होने के नाते उनकी रक्षा करना आपकी जिम्मेदारी बनती है। संस्कार सफलता की कुंजी है, उसे खो देने से जीवन पार तो हो जाता है लेकिन सफल नही होता। छात्र भी यह जान ले की अन्य छात्रों को मारपीट करके या उनसे अश्लील हरकते करवाकर उनका तो कुछ फायदा नही होगा बल्कि खुद उनका ही करियर बर्बाद होगा। विद्या के मंदीर को कलंकित करने से मंदीर पर काला धब्बा तो लग ही जाता है लेकिन दुष्कर्म करनेवाले को सजा भी जरूर मिलेगी। के. ई.एम के 18 छात्रों के खिलाफ पुलिस केस बन चुका है, उन्हे पढने की इजाजत तो दी गयी है, लेकिन उन्हे हॉस्टल से धक्का मारकर निकाला गया । पढाई के लिए मिलनेवाला पैसा भी हाथ से निकल गया साथ ही अब वो किसी भी कॉम्पीटिशन में हिस्सा नही ले पायेंगे। इस सब घटनाओं मे उन मां बाप का क्या कसूर जिन्होने अपना पेट काटकर, कर्ज लेकर मेडिकल में अपने बच्चे का दाखिला करवाया है, वो कहां से लाये पढाई के लिए ढेर सारा पैसा। रैगिंग करना आसान है, लेकिन उसका खामियाजा भुगतना दर्दनाक है। कॉलेज लाईफ जरूर एन्जॉय किजीए लेकिन गलत इरादों को फलने फूलने ना दें।

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