Saturday, December 5, 2009
पानी का शिकार.
पानी रे पानी .... इस मचे हाहाकार के चलते,हालही में स्वाभिमान संगठन के कार्यकर्ताओं ने मुंबई महानगरपालिका पर मोर्चा निकाला था, लेकिन मोर्चे पर पुलिस ने बेरहमी से लाठीचार्ज किया, जिसमें एक की मौत हो गयी और कई घायल भी हुए। बेरहमी से लाठीचार्ज करना सरासर गलत तो था ही, लेकिन मंत्रीयों की माने तो लाठीचार्ज जरूरी नही था, और पुलिस की माने तो वक्त की नजाकत। पानी की किल्लत और वॉटर माफिया का फैलता जाल मुंबईकरों के लिए कोई नयी बात तो नही है। मुंबई में कहीं चौबीसों घंटो पानी है तो कहीं एक बाल्टी पानी के लिए भी लोग तरस रहे हैं। रात रात भर जग कर पानी ढोना पडता है तो कहीं जेब खाली करनी पडती है। जिनके पास पानी खरीदने के लिए पैसे है, वो तो खरीद लेते है, मगर दिन भर की मजदूरी करके दो वक्त का खाना जुटाना जिनके लिए मुश्किल है वो पानी कहां से खरीदे। गंदे पानी से ही गुजर बरस करे तो कई बिमारीयों को न्योता। आखिर पानी जाता कहां है? लोगों को पानी खरीद कर क्यों पीना पड रहा है? असल में लोंगों के हिस्से का पानी जाता है बिल्डरों को और ये बात कोई नयी नही है कि राजनेता चाहे वो बडे स्तर के हो या छोटे स्तर उनके आदेश पर ही पानी कनेक्शन जोडा या हटाया जाता है। अब आम जनता के लिए मोर्चा का आयोजन करनेवाले नेताओं के घर पर तो चौबीसो घंटे पानी बहता है, आश्चर्य है कि उन्हे आम लोगों के लिए रास्ते पर उतरना पड रहा है। आम आदमी निकल रहा है रास्ते पर बस इसी उम्मीद की टिमटिमाती रौशनी में कि किसी न किसी तरह उनकी मुश्किले तो कम होगी।लेकिन बदनसीबी उनकी है कि उन्हे भी सहारा लेना पड रहा है किसी न किसी राजनितीक पार्टीयों का, पार्टियों को भी जरुरत है अपनी वजूद के साथ साथ प्रभाव दिखाने की। वार्ड स्तर पर पार्षदों ने अगर ईमानदारी रखते हुए पानी की हेराफेरी रोकी होती तो पानी के किल्लत से लोगों को कतई नही जुझना पडेगा। शिवसेना- भाजपा ने महानगरपालिका पर अपना फिर अपना झंडा फहराने में कामयाबी तो पायी है, लेकिन करोडो रूपये टैक्स देने के बाद भी अगर लोगों को सुविधाएं नही मिली तो अगली बार महानगरपालिका में बची सत्ता के साथ राज्य भर में रही सही अपनी साख भी गवाने की नौबत आन पड सकती है। जनता ने इनलोगों के लिए एक मौका अब भी बरकरार रखा है। अगर जनता को ये जनता के प्रतिनिधि लाठियों के बजाए न्याय नहीं दिला सकते तो इनके लिए ये भी तो नहीं कहा जा सकता कि चुल्लू भर पानी में डूब मरो बेशर्मो... पानी तो न डूबने के लिए ना ही जीने के लिए डकार गये.. ये कालाबाजारी के ठेकेदार....
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