Friday, July 4, 2008

मिशन- एडमिशन

मनपसंद कॉलेज में ऍडमिशन लेना किसी मिशन से कम नही. कहते हैं दसवी की परीक्षा के बाद जीवन में एक नया मोड आता है, नये जीवन की शुरूवात होती है, तो जाहीर है कि छात्रो के साथ साथ उनके अभिभावक और स्कुल के टीचर को परीक्षा की कसौटी पर खरा उतरना पडता है। सालभर पढाई कर अच्छे नंबर से पास होना जितना कठिन नही होगा उतना कॉलेज में ऍडमिशन लेना। गरीबी में आटा गिला वैसे ही अब अलग अलग बोर्ड के छात्रों को एक जद्दोजेहत से गुजरना पड रहा है । मनपसंद कॉलेज के साथ साथ मनपसंद फैकेल्टी में ऍडमिशन लेना तो दूर की बात अब तो पर्सेंटाईल की सूत्र में छात्र उलझ गया है। कुछ अभिभावकों को तो इस नयी परेशानी का सामना कैसे करे ये भी समझ में नही आ रहा है। नया सूत्र नयी उलझन, ऍडमिशन मिलेगा की नही, बच्चों के भविष्य का क्या होगा यह चिता अभिभावको को खाये जा रही है। पर्सेंटाईल सूत्र ने छात्रों की नींद और चैन छिन लिया है। चाहे वो अव्वल आए छात्र हो या फिर महज पास हुए छात्र तो तलवार तो सभी के सर पर टंगी है। छात्रों को इस बात का पता नही चल पा रहा है की उनके पर्सेंटेज घट रहे है या बढ रहे है, और ये चिंता तब तक रहेगी जबतक सारी लिस्ट डिक्लेअर नही हो जाती. उधर आयसीएसी बोर्ड छात्रों के भविष्य को लेकर नाराज है और कोर्ट का दरवाजा खटखटाने जा रहे हैं। वहीं एसएससी बोर्ड के छात्रों को कॉलेजमें प्राधान्यता देने के सुर निकलने लगे है। कही इस पर्सेंटाईल सूत्र के चक्कर में एक बोर्ड के छात्र के मन में दुसरे के प्रति द्वेष ना हो। करीयर बनाने के लिए छात्र ऍडमिशन की मिशन पर निकल पडे है।

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