Thursday, April 8, 2010

खिलेगा या मुरझायेगा बचपन…

बचपन को खिलखिलाता बनाने के लिए सरकार ने हर बच्चे के लिए शिक्षा का अधिकार लागू कर दिया क्या होगा इस अधिकार मैं उधेडबुन में सोच रही थी। रोजमर्रा की तरह ट्रेन का सफर शुरू था। महिला डि्ब्बे में महिलाओ के उपयोग में आनेवाली चीजे बेचने के लिए महिला और बच्चों का आना जाना लगा रहता है। आज फूल बेचने के लिए दो बच्चियां चढी । पूरे डिब्बे में उन्होने आवाज लगाई, किसी को फूल पसंद नही आये तो किसी को दाम। दोनो बच्चियां ने जब देखा कि किसी को फूल में दिलचस्पी नहीं है तो थक हार कर सीट पर बैठ गयीं। उत्सुकता में एक महिला ने एक बच्ची से उसकी उम्र पूछी, बडे मासूमियत से उसने उंगली को नीचे मोडकर सात अंक बनाया। मुझे भी उसके भोलापन ने दिल की गहराईयों तक छू डाली। मै पूछ बैठी कि स्कूल जाती हो, तो उन दोनों ने सिर हिलाकर नही का जवाब दिया। सभी को प्रायमरी शिक्षा मिलने के मकसद से प्रधानमंत्रीजी ने शिक्षा के प्रावधान के लिए कडे कानून बनाये। देश को संबोधित करके उन्होने देशवासियों के शिक्षा के महत्व से अवगत कराने की कोशिश की। लेकिन मायानगरी मुंबई में सैंकडों बच्चे है जो शिक्षा से वंचित है। यहाँ पूरा परिवार किसी तरह रोटी पानी का जूगाड कर पाता है। इनके सामने गरीबी सुरसा की तरह मुँह बाए खजी रहती है। ऐसे परिवार सोंच में पड जाता है कि पहले ही घर मे गरीबी का आलम और उसमें अगर बच्चे पढाई करे तो फिर वो खायेंगे क्या। सरकार ने तो प्राइमरी शिक्षा मुफ्त तो करा दी साथ ही प्राइवेट स्कूलों को भी गरीब बच्चों के लिए कोटा रखने को कहा गया। लेकिन यहाँ कहानी अलग थी, चार-पांच साल की उम्र में ही ये बच्चे अपने परिवार के भरण पोषण के लिए जवान हो गये हैं। इन्हे अगर मु्फ्त मे भी शिक्षा दी जाए तो भी वो शायद पढने नही जाएंगे। घर में ना तो मां पढी है ना पिता तो इन बच्चों में पढने की लगन और चाहत कहा से पैदा होगा। दिन भर सामान बेचने के लिए यहां से वहां जाना, रास्ते में अटपटी चीजे खाकर जीवन गुजार देना, यही जिंदगी इनको अच्छी लगने लगती है। इन बच्चों के मन में शायद यही है कि पढाई करने से क्या होगा पढ लिखकर तो पैसे ही कमाने है, सो अभी से ही कमा रहे है। पढाई के प्रति अरूची सिर्फ गरीब तबके में ही नजर आती है जिन्हे रोज कमाकर ही खाना होता है। मध्यम वर्ग से आनेवाले बच्चों के परिजन बच्चों के पढाई के लिए जी जान लगाते है। और उच्चवर्ग की तो बात ही ना करे तो बेहतर होगा। उनके लिए तारे जमीन पर ही होते है। देश में कई ऐसे बच्चे है जो बिना पढे लिखे अकेले अपने परिवार का पेट पाल रहे है।
सरकार का मकसद है कि प्राथमिक शिक्षा हर तबके के लिए अनिवार्य हो, ताकि देश मे कोई भी निरक्षर ना रहे, और देश का भविष्य उज्जवल हो। लेकिन क्या सरकार गरीब बच्चों को शिक्षा देने के लिए उनपर सख्ती करके उन्हे शिक्षा देगी या फिर जो पढना चाहेगा उन्हे मदत का हाथ बढा हुआ मिलेगा। क्या फुल बेचनेवाली इन बच्चियों या मजदूरी करनेवाले बच्चों को अनिवार्य शिक्षा देकर उनका बचपन खिलेगा या फिर उनके हाथों से काम छीनकर उनको भूखा रखकर उनका बचपन को मुरझा जाने दिया जाएगा।

1 comment:

vidhya said...

क्या हुवा अब तक अभी भी बच्चे काम पे जाते है

आप का बलाँग मूझे पढ कर अच्छा लगा , मैं भी एक बलाँग खोली हू
लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/

आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें.

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