Monday, April 5, 2010

शोषण अभी भी जारी है...

देश इक्कसवी सदी में पहुँच रहा है और महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए सदन में पुरजोर बहस भी हो रही है। लेकिन महिलाओ के साथ दिन ब दिन अत्याचार बढते उत्याचार में कोई कमी नहीं। आधुनिक समाज में जो नर पिशाच हैं वो महिलाओं को मात्र हवस की नजर से देखते हैं, और जब ताक मिले हवस पूरा करने का सामान मान कर अपने हवस की भूख मिटाते रहे हैं। इन नर पिशाचों ने ना तो किसी साठ साल की बुछिया को छोडा, ना किसी अबला को ना ही किसी विकलांग को ना ही किसी अबोध बच्ची को ही छोडा। दो दिन पहले महाराष्ट्र के पुणे जिले में पच्चीस साल की एक महिला को लिफ्ट देने के बहाने उसे हवस का शिकार बनाया। ये महिला अच्छी खासी एमबीए तक पढी है और सेमिनार में शामिल होने के लिए नागपूर से पुणे आयी थी। गाडी में बिठाकर तीन शौतानों ने उसे जबरन शराब पिलाकर उसकी इज्जत को तार तार कर दिया। इन शैतानों में से एक आरोपी को पहले ही तडीपारी की सजा सुनायी गयी थी, लेकिन पूर्व मंत्रीजी के आशीर्वाद से यह तडीपारी रोकी गयी थी। वहीं लातूर में एक लडकी पर सामूहिक बलात्कार किया गया। गरीब घर की बच्ची की खुशहाल जिंदगी तबाह कर दी। वहीं नासिक में अदिवासी छात्रावास में एक बावर्जी छात्राओं का कई महिनों से लैंगिक शोषण करता आ रहा था। पढे लिखे हो, या फिर अनपढ। महिला हो या बच्चियां सबों के साथ ये नराधम अपनी हवस की लालसा पूरी करते रहते हैं। लगता है बलात्कार करना या लैंगिक शोषण करना अब आम बात हो गयी है, न कानून का डर है ना ही समाज का। ज्यादातर मामलों में उनके सरपर किसी ना किसी गॉडफादर का हाथ होता है । चकलाघर, डान्सबार में जाकर शराब और शबाब का लुत्फ उठाकर अय्याशी करनेवालों इन जानवरों की इतनी हिम्मत बढ गयी है कि अब महिलाओं का अकेली घर से निकलना भी मुश्किल हो गया है। क्यों इन नशेडियों की इतनी हिम्मत बढती जा रही है कि रोज कहीं ना कहीं महिलाएं हवस का शिकार बन रही है। यू.पी में तो दलित महिला के साथ गजब का न्याय किया गया । सामुहिक बलात्कार करने के बाद आरोपियों को गाव की पंचायत ने सजा सुनायी। बलात्कार करनेवाले आरोपियों को कानून की गिरफ्त में ना देते हूए उन्हे बारह हजार जुर्माना भरने को कहा गया। अजीब न्याय है, क्या किसी कि अस्मत को रुपयों से तौला जा सकता है। घोर आश्चर्य होता है अब तो यही कहा जा सकता है कि जुर्माने की रकम इकठ्ठा करके रखिए और बलात्कार करके जाए। क्या यही न्याय सवर्ण घर के किसी संभ्रात महिला से बलत्कार किए जाने पर होता ? भले ही महिला किसी जाति धर्म और समप्रदाय की हो, लेकिन ऐसी हरकत कभी नहीं होनी चाहिए। आज क्यों महिलाओं को आजादी नही मिल पा रही है ? रात में अगर देर हो जाए तो जान हथेली पर लेकर निकलना पडता है। क्यों इतनी ज्यादा हैवानियत बढती जा रही है। पुरूष किसी ना किसी महिला के कोख से ही पैदा होते हैं। पुरुषों को इस सवाल का जवाब देना चाहिए चाहिए। हवस की आग में एक लडकी के साथ उसका पूरा परिवार जलता है। क्या कसूर होता है उन मासुमों का। सरकारें सोती रहती हैं कम से कम कुछ सच्चे पुलिस वाले तो हों जिनके होने पर सुरक्षा महसूस किया जा सके। काम काज करके घर खुशी से लौटती महिलाए आज डरती हैं कि घर सही सलामत पहुँच पाएँगी या नहीं। ट्रेनों में सुरक्षा देने का निर्णय लिया गया था लेकिन वो भी चार दिन की चाँदनी वाली कहावत है। इन वहशी लोगों को इतनी कडी से कडी सजा दी जाए ताकी जुर्म करने वालों की रूंह काप उठे । सरे आम इन दरिंदो के हाथ,पैर काट दिये जाने चाहिए ताकी इनको सबक मिल सके। कहते हैं कि हमारा देश प्रजातांत्रिक है लिहाजा ऐसी सजा की कल्पना की जा सकती है लेकिन सतही तौर पर ऐसी सजाएँ नहीं दी सकती। कहना तो यही पडेगा कि जागो मनुज के पुत्रों जिसे कहते हो जननी उसी पर तुम्हारी निगाहें गन्दी है। पूत कपूत तो हो सकता है लेकिन माता कुमाता नहीं होती तो संभलो और अपनी ही माता को बचा लो।

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