Tuesday, August 12, 2008

स्वागत या परेशानी

बरसों रे मेघा मेघा कहते कहते लोगों ने बारीश का जोरदार स्वागत किया । बारीश की आस में लोगों ने होम हवन तक किये थे । मेघा बरसा भी लेकीन, पानी के लिए तरसनेवाले कई लोगों के संसार भी उजाड दिये। हरसाल बारीश की राह में आसमान की तरफ टकटकी लगानेवाले किसान ने जब दोबारा बुआई की तो उसे यह नही पता था की उसकी फसल बारीश के चलते बह जाएगी। महाराष्ट्र के कई जिलो में तबाही का मंजर थाइ । कईयों के घर उजड गये तो कई लोगों को अपना घरद्वार छोडकर कहीं और डेरा डालना पडा। दरअसल दोष पकृती का नही बल्की हम इन्सानो का है। पकृती तो हमारी भुख, प्यास मिटाती है लेकीन हम इसांन ही पकृती के बनाये नियमों की धज्जीयां उडाते है। जंगल को तोडकर उसपर भी अपना एक फॉर्महाउस होने की प्रबल इच्छा इंसान ही रखता है। पानी के निकासी की व्यवस्था पर भी अतिक्रमण करके सारा दोष मढा जाता है प्रकृती पर। प्रकृती तो भर भरकर देती है, लेकीन उसका आस्वाद लेना सभीके बस की बात नही है। लेकीन कुछ पकृती प्रेमीयों को सालभर बारीश का इंतजार भी रहता है। प्रकृती से प्यार करनेवाले बहोत सारे लोग है, वे प्रकृती को बचाने के लिए हरसंभव प्रयास करते है, लेकीन सभी लोगो का साथ होना जरूरी है। तभी बारीश की फुहारों से तम मन प्रफुल्लीत हो जाएगा। बारीश के आने से परेशानी नही बल्की सभी लोग स्वागत ही करेंगे

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