Thursday, October 28, 2010

बेदिल मां.....

एक मां ने अपने एक महिने के बेटी को कुडेदान में फेंक दिया और खुद को तिमारदारी से मुक्त कर लिया। यह सारा वाकया सिसिटिव्ही कॅमरे में कैद हो चुका है सारे देश ने भी देख लिया होगा। सात महिने में पैदा हुए दो जुडवा बच्चे एक बेटा और एक बेटी , दोनो को सांस लेने में तकलीफ होने की वजह से उन्हे मुंबई के के.ई.एम अस्पताल में दाखिल करवाया गया। बच्चों की तिमारदारी से और शायद उन्हे हो रही तकलीफ मां से देखी नही जा रही थी। लेकीन एक बेदिल मां ने ही बच्चों को हो रही तकलीफ से निजात देने के लिए उनके मुक्ती का रास्ता ढूंढ लिया। अस्पताल में रात को जब सभी सो गये तब उसने दो जुडवा बच्चो में से बच्ची को लेकर टॉयलेट के खिडकी से बाहर कचरे में फेंक दिया। रात में चुंहों ने उस नवजात को नोंच नोंच के खाना शुरू कर दिया जिसके चलते बच्ची की मौत हो गयी । फिर किसी को खबर ना लगे इसलिए उसने बच्ची चोरी हो जाने का नाटक करके शोर मचाया। लेकीन उसकी चोरी पकडी गयी। लडके और लडकी में से सिर्फ लडकी को चुना गया मारने के लिए। कुल के दीपक को वो मां कैसे मारती जो उनके बूढापे का सहारा बननेवाला था। दो बेटे होते तो वो मां क्या करती। कैसे साहस हुआ होगा उस मां का जिसने बच्ची को खिडकी से बाहर फेका होगा। आज वो मां सलाखो के पिछे है लेकीन उसकी मानसिकता का अंदाजा नही लग पाया है। पुरूष प्रधान संस्कृती में आज भी कन्या की हत्या की जा रही है जिसे परिवार का समर्थन ही मिल रहा है। इस बेदिल मां के भी पिछे उसका परिवार खडा है उनका कहना है की वो सारा किस्सा भुलाना चाहते है और अपने बहू और पोते को वापस लाना चाहते है। स्त्री भ्रुण हत्या का सिलसिला आज भी जारी है। सोनोग्राफी करके पता लगाया जाता है लडका हुआ तो ठिक लेकीन लडकी हुई तो उसका गला पेट में ही घोटा जाता है। लडकीयों की संख्या दिन ब दिन कम होती जा रही है। राजस्थान, गुजरात, यु,पी बिहार में बचपन में ही शादी करवाने का सिलसिला आज भी जारी है। शहर में लडकीयां पढ- लिखकर अपने पैरों पर खडी हो रही है लेकीन देहात में नजारा कुछ और ही होता है। अगर घर में बडी लडकी हो तो चुल्हा – चौका ,भाई- बहनों का संभालने का जिम्मा उन्ही पर होता है, घर के सारे काम काज करनेमें ही सारा वक्त निकल जाता है ना पढाई ना लिखाई। 21 वी सदीं में भी आज नारी को अपने अस्तित्व की लडाई के लिए पुरूषों पर ही निर्भर रहना पड रहा है, चाहे वो पिता हो चाहे भाई या पती। आज एक मां का बेदिल रूप देखने मिला ऐसे अनगिणत मां होंगी जो किसी ना किसी दबाव के चलते अपने बच्चों की बली देने पर मजबूर होती है, लेकीन कन्या की हत्या के पाप में वे बराबर की शरीक है क्योंकी नौ महिने अपनी कोख में बच्चे को रखकर उसको प्यार का स्पर्श देकर पालन पोषण करनवाली मां को पुरा अधिकार है की वो ऐसे दुष्कृत्य को रोके। भगवान को सब जगह रहना नामुमकिन था इसलिए उसने मां बनायी। भगवान का रूप होनेवाली मां बेदिल कैसे बन सकती है।

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