Tuesday, January 5, 2010

बच्चे का दोस्त बनिए

नये साल का चौथा दिन कईयों ने नये साल के लिए अलग –अलग प्लान बनाये होंगे, कईयों ने नया कुछ करने का संकल्प किया होगा। मुंबई ने नये साल का स्वागत जोशो खरोश में किया । आतंकीयों के हमले में पिछले साल सहमी मुंबई नये साल में फिर एक बार नये सिरे से पुरी ताकद के साथ खडी हूई। लेकिन नये साल की खुशियों में सराबोर मुंबई पर सोमवार को जैसा मातमसा छा गया । दिन एक घटनाएं तीन मुंबई में अलग अलग तीन जगहों पर दो छात्राएं और एक छात्र ने आत्महत्या की। तीनो छात्रों ने एक ही तरीका अपनाया फांसी का फंदा। मुंबई से सटे डोंबिवली में छठी कक्षा में पढनेवाली नेहा ने मौत को गले लगाया। नेहा पढने में तो होशियार थी साथ ही नृत्य में भी निपूण। नृत्य के लिए उसे कई अवार्ड भी मिल चुके है। नेहा का पढाई में ध्यान लगने के लिए उसका डान्स क्लास बंद कराया गया। बस यही कारण था नेहा ने घर में फांसी ले ली। नेहा उसका डान्स बंद नही करना चाहती थी, यह सदमा वो सह नही पायी और उसने मौत को गले लगाना पसंद किया। दूसरा वाकया दादर के शारदाश्रम स्कूल का है। सातवी कक्षा में पढनेवाले सुशांत ने स्कूल के टॉयलेट में फांसी लगाकर आत्महत्या की। सेकंड सेमिस्टर में सुशांत चार सब्जेक्ट में फेल हो गया । वहीं तीसरी आत्महत्या की है पवई में रहनेवाले भजनप्रीत कौर ने। एमबीबीएस के पहली वर्ष की छात्रा भजनप्रीत के परिक्षा में कम नंबर आये थे। एक दिन में घटी तिनों घटनाओं को देखकर मुंबई दहल गयी। अभिभावक दहशत में है। प्राथमिक अनुमान निकाला जाए तो छात्रों की आत्महत्या के पिछे का कारण है पढाई का बोझ, और परिवारवालों की बढती अपेक्षा। अभिभावकों को लगता है की अपना बच्चा पढाई में अव्वल हो, समाज में उसे उचीत सम्मान मिले। लेकिन वो भूल जाते है की उनके बच्चा रेस में दौडनेवाला घोडा नही है। बच्चों पर पढाई का बोझ लादना सरासर गलत तो है ही लेकिन बच्चों के साथ संवाद का अभाव भी एक कारण है। बच्चों के उज्वल भविष्य के लिए माता- पिता दोनो को नौकरी करना अनिवार्य हो गया है। अभिभावक पैसा कमाकर बच्चों की जरूरतों को पुरा कर रहे है, लेकिन इस व्यस्तता में वे भूल रहे है की बच्चों से बैठकर बात करना उनकी मानसिकता समझना बेहद जरूरी है। बच्चों की कमजोरी पर उन्हे डांटकर नही बल्की उनकी परेशानियों का हल निकालना जरूरी है। साथ ही टिचर्स ने भी बच्चों की कमजोरीयों को भांपना जरूरी है। बच्चों में हो रहे बदलाव पर नजर रखकर उसे उचीत समय पर डॉक्टर को दिखाना होगा। बच्चों के दोस्त बनिए, अपनी इच्छा के बोझतले उन्हे मत दबाईये। उनके अंदर छुपे गुणों को बढावा दिजीए। आपका बच्चा सही मायने में मानसिक और शारीरीक रूप से स्वस्थ रहेगा और कामयाबी को चुमेगा।

1 comment:

Ajit Srivastav said...

bahut jaroori sawal uthaya hai aapne.
bachcho ko doctor se dikhana ilaj nahi hai balki jis parivesh me ham rah rahe hain usko badlane ki jaroorat hai. mansik roop se divaliya hokar na jane kis talash me bhag rahe is samaj ko thahar kar jara sochane ki jaroorat hai.
thanks ki apne ek jaroori sawal logo ke samne rakha.