Tuesday, July 5, 2011

वडापाव की महिमा....

फर्ज करें आप मुंबई के किसी बाज़ार में सैर सपाटे के लिए आए हो और आपको अचानक से सुनाई दे कि गरमागरम छत्रपति ले लो, फिर एक और अवाज़ मिले कि चटकारे शिव वडा ले लो। तो आपको आश्चर्य होगा। हद तो तब हो जाएगी जब आपको जोरो की भुख लगी हो, स्टॉल के पास आकर आप अगर वडा पाव माँगे तो आप पर सवालों की बौछार हो कि कौन सा ब्रैन्ड दूँ शिव वडा या छत्रपति वडा। लोगों ने छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम पर अब गलियों में भी राजनीति शुरु कर दी है। इस नई गरमा गरम राजनीति का ही नतीजा है कि वडा पाव के नाम से अब राजनीति शुरु हो गई है। शिवसेना कह रही है कि मराठी युवकों को रोजगार देने के लिए शिव वडा की शुरूआत की है। स्वाभिमान संगठन का दावा है कि शिव वडा पाव के स्टॉल्स अनाधिकृत है । शिव वडा पाव के स्टॉल्स हटाने के लिए स्वाभिमान संगठन ने छत्रपती वडा के स्टॉल्स लगाये। आनेवाले दिनो में कांग्रेस बाजार में कांदा पोहा लेकर आनेवाली है, उसका नाम अगर तिलक कांदा पोहा हो जाए तो आप अचरज नहीं कीजिएगा। शायद ये राजनीतिक पार्टियाँ गलियाँ और सडकों के नाम महापुरुषों पर कर कर के उकता गई हैं , अब लोगों के प्लेटों तक महापुरुषों को पहुँचाने का बीडा उठाया है। शायद इनका मानना है कि महापुरुषों के डर से मँहगाई भाग जाएगी और हाजमा भी ठीक रहेगा। घडी की सुई की माफिक निरंतर चलने वाली मुंबई हर किसी को अपने आप में समा लेती है। कहते है मुंबई में सर छुपाने के लिए आसरा तो नही मिलेगा लेकिन मुंबई में रहनेवाला गरीब से गरीब आदमी भूखा नही रह सकता। क्योकि एक वडा पाव से गुजारा करने वाले लाखो लोग हैं। इसे हर कोई खाता है चाहे वो अमीर हो या फिर गरीब, शाम के वक्त वडा पाव खाने के लिए ठेले पर लोगों का हूजूम लगता है। कोई पेट भरने के लिए खाता है तो कोई चखने और मुँह का जायका बदलने के लिए। वडा पाव एक ऐसी चीज है जिसे खाने से किसी को कोई परहेज नही होता। लेकिन मुंबई में शिवाजी महाराज के नाम पर वडा पाव की राजनीति कढाई में गरमाने लगी है। ज़रा सोचिए अगर मुंबई की घमासान के माफिक पूरे देश में यह चलन चलने लगे तो कैसा होगा। दिल्ली में बहादुर शाह जफ़र हलवा के साथ रणजीत सिंह छोले कुलचे की अवाजें आने लगेगी। रानी लक्ष्मी वाई जलेबी और भगत सिंह पराठे का भी चलन शुरु हो जाएगी । तो उत्तर प्रदेश में वाजिद अली शाह कबाब और बीबी हजरतगंज सेवई की दुकाने सजने लगेगी। हद तो तब हो जाएगी जब सुभाषचन्द्र बोस रसगुल्ले और विवेकान्द मिठाई कलकत्ते में बिकने लगे। अगर उत्तर पूर्व और पश्चिम महापुरुषों के नाम पर समान बेचने लगे तो दक्षिण ही क्यों पीछे रहे वो भी अपने मसाला डोसा को पेरियार डोसा नाम रख देंगे और मेन्दु वडा को टीपू सुल्तान वडा के नाम से बेचने लगेंगे। मुझे लगता है कि आने वाले दिन इससे भी गए गुजरे होंगे। महापुरूषों के नाम को इस्तेमाल करके अपनी झोली भरनेवाले राजनेता महज वोटो के लिए किसी भी हद तक गिर सकते है। आम लोगों के निवाले को ब्रैन्डेट बनाकर महंगा बनाया जा रहा है, और उन्हे उनसे दूर किया जा रहा है। 2011 में होनेवाले महापालिका चुनाव की तैयारी मुंबई में तो शुरू हो चुकी है लेकिन आम आदमी का निवाला वडा पाव का टेस्ट कडवा बनते जा रहा है। राजनीति विकास के नाम पर करने के बजाए आज के राजनेता अपनी राजनीति को पहले ही महापुरुषों के नाम की बैसाखी के जरिए लोगों की भावना से सत्ता हथियाने में कोई कसर नहीं छोडना चाहते। थोडे तो शर्म करो शायद शर्म उसे आती है जिसे चेतना होती है यहाँ तो चेतना और मानवता तो कब के फुर्र हो चुकी है...धन्य हैं हमारे राजनेता।

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