Monday, July 4, 2011

बेटी बचाओ...

मेरे एक दोस्त को लडकी हुई वो काफी खुश हुआ । घर में लक्ष्मी आयी तो उसने सारे ऑफिस में मिठाई बांटने के साथ खुशीयाँ भी बाँटी। उसे बेटी ही चाहिए थी तो उसकी मुराद भी पुरी हो गयी। आज लडकियां भी लडकों के बराबर ही सफालता हासिल कर रही है। इस साल महाराष्ट्र औऱ खासकर कर मुंबई में दसवी और बारहवीं के नतीजों में लडकियों ने बाजी मारकर सफलता का परचम फिर एक बार लहराया। घर में लक्ष्मी आने के बाद जिस तरह मेरा दोस्त खुश हुआ उसी तरह कई अनगिनत लोग भी खुश होते होंगे क्योंकि उन्हे भी लडकियों की इच्छा होती है। लेकिन सभी नही, और यह बात साबित हो चुकी है। खूबसुरत दुनिया में अपने नन्हे कदम रखने से पहले उन्हे गला घोट दिया गया, किलकारियों से आंगन को गूँजने से पहले ही खामोश कर दिया गया, अपनी भीनीं खुशबू से बाबुल का आंगन महकानेवाली नन्ही कली को खिलने से पहले ही कुचल दिया गया। पिछले एक साल में महाराष्ट्र में 95 हजार 332 गर्भपात कराये गये। कोख में पलनेवाले बच्चे का परीक्षण किया जाता है कि लडका है तो गर्भ पल जाता है और अगर लडकी है तो गर्भ में गला घोट दिया जाता है। दुनिया में आने से पहले ही उसे मौत का रास्ता दिखा दिया जाता है। यह कडवी सच्चाई और आंकडे तब साफ साफ दिखने लगे जब महाराष्ट्र के बीड जिलें में 10 से 15 अविकसित गर्भ (अजन्मे बच्चे का शरीर पाया गया, उसे शरीर भी नही कहा जा सकता क्योंकि बस गर्भ ने आकार लिया ही था दूसरे शब्दों में कहें तो मात्र 2 महीने के भ्रुण) नदी के पास फेंके पाये गये और यह सिलसिला कई दिनो तक जारी रहा। स्वास्थ विभाग कुंभकर्ण की नींद सो रहा था। बीड जिले के बाद अन्य जिलों में जब अविकसित भ्रुण मिलने का सिलसिला शुरू हुआ तो उसे अपनी नीं से जागना पडा। सोनोग्राफी सेंटर पर छापेमारी की गयी। अवैध रूप से चलनेवाले कई सेंटरों को सील कर दिया गया। कानून बनाए जाते हैं तो तोडने के लिए भी अनगिनत रास्ते बनाने वालों की कमी नहीं है। कुकुररमुत्ते की तरह सोनोग्राफी सेंटर पनपने लगे है। गर्भ में लडकी होने पर तुरंत गर्भपात करा दिया जाता है, कहा भी जाता है कि , दो घटें में आप आजाद हो सकती हैं। पचास साठ साल पहले कम से कम बच्चा पैदा होने का इंतजार तो किया जाता था। राजस्थान और उत्तर भारत में लडकियों को पैदा होते ही मार डाला जाता था। इन्हें मारने के भी कई तरीके अख्तियार किए जाते थे। कभी नमक को तुरंन्त पैदा हुई बच्ची के जीभ पर रखा दिया था, तो कभी पुरंत पैदा हुई लडकी को दूध में डूबो दिया जाता था। कई बार तो इन्सान बर्बर होकर के गला घोंटकर या फिर पटकपटकर उनकी जान ली ले लेते थे। आधुनिक और विकसित समाज में लडकियों को पैदा होने से पहले ही मार दिया जा रहा है। राज्य सरकार ने ग्रामपंचायत चुनाव में महिलाओं को 50% आरक्षण देने की घोषणा की है, लेकिन कई बहू, बेटियों को उनके गर्भ में पलनेवाले जीव को बचाने का अधिकार नही है। आनेवाले समय में सभी को मां, बहन, या पत्नी नसीब भी होंगी या नही इसका आकलन करना मुश्किल है। सोनोग्राफी सेंटर पर छापेमारी करके हासिल कुछ नही होगा क्योंकि लडकी को बोझ समझने की सोच समाज में आज भी बरकरार है, और यह बडे ही अचरज की बात है, जहां शहर की लडकियां तरक्की करके आसमान छू रही है। कई अनगिनत उदाहरण सामने हैं जहाँ महिलाओं ने अपने परिवार के साथ साथ अपने समाज और देश का नाम रौशन किया है। मातृभूमी को माँ कहने वालों बेटी बोझ नही है, उसे बचाईये....।

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