एक महिला दुकानदार से झगडा कर रही थी। आप कहेंगे की इसमें कौनसी नयी बात है, आमतौर पर महिला किसी ना किसी मुद्दे पर झगडती ही रहती है। दरअसल यह महिला राशन दुकानदार से झगडा कर रही थी, क्योंकी राशन दुकानपर मिलनेवाला अनाज उसे नही मिल पाया था। राशन दुकानपर अनाज तो था लेकीन वो कार्ड पर मिलनेवाला गेहूं नही है ऐसा कहकर दुकानदार ने उसे टालने की कोशीश की। कार्ड पर मिलनेवाला गेहूं गरीबी रेखा के नीचेवाले लोगो को 3 रूपये प्तीकीलो के घाव से मिलता है। वो ही अनाज उन्हे 15 या 20 रूपये में बेचा जा रहा था। यह वाकया सिर्फ एक दुकान का था लेकीन हर मुहल्ले में यही हाल है। देश में अनाज की भरमार तो है लेकीन गरीबों के लिए अनाज का कोटा दुकानो तक पहूंचा ही नही यही कहना है दुकानदारो का।
लाखों टन अनाज सडने का मंजर पुरे देश ने देख लिया था। पंजाब, दिल्ली, महाराष्ट्र में लाखों टन अनाज बरसात में सड रहा था। कृषीमंत्रीजी ने सफाई दी की हमारे देश में अनाज की पैदावार खूब होती लिहाजा गोदामों की किल्लत है तो अनाज को खुलेमें ही रखना पडता है। गोदामों का निर्माण किया जाएगा तब तक अनाज को भगवान भरोसे छोड दिया की आप ही रक्षा करे इस अनाज की हम गोदाम शराब के लिए किराये पर दे रहे है। मुंबई की बात कुछ अलग है, अलग इसलिए की अनाज को तो गोदाम में रखा गया है, लेकीन वो पुरी तरह सड चुका है, उसमें किडे पडे है। दिन ब दिन बढती मंहगाई से अच्छों अच्छो का हाल बूरा हो गया है, ऐसे में रोज अपना पेट पालना किसी जंग से कम नही है। आज सुप्रीम कोर्ट को भी यह पुछना पडा की आपने यह अनाज गरीबों में क्यों नही बांटा। रखने की जगह नही है तो गरीबों में अनाज बाट दो। राशन की दुकाने महिने भर खुली रहनी चाहिए। फुड कॉरपोरेशन का गोदाम हर डिवीजन में होना डाहिए।
देश का हर नागरीक सहमत होता की गरीबो को अगर सही वक्त रहते ही मुफ्त में अनाज बांटा जाता तो ना अनाज सडता और ना ही गरीबों पर मुखमरी की नौबत आती। शहरों में रहनेवाले गरीब से गरीब लोगों ने रोटी खायी होगी लेकीन देश में कई ऐसे इलाके है जहां बस चावल के दानो पर ही गुजारा करना पडता है, कहीं पर तो सिर्फ आलू उबालकर खाते है, ना दाल है, ना सब्जी और रोटी खाना तो दूर की बात। अगर किसीने पूरा खाना खाया हो तो वो दिन उसके लिए दिवाली होगी। अदिवासी बहूल इलाकों में तो जीव जतूंओ और कंदमूल पर ही निर्भर रहना पडता है।
अपने खून पसीने से सिंचकर उगाई गयी फसल के मंजर किसान भी देख रहा है। अनाज की पैदावार करने के लिए किसान जो कर्जा लेता है उसका भुगतान भी नही हो पाता और ना ही फसल के उचीत दाम। वही सरकार खरीदे गये अनाज की बर्बादी खुद कर रही है, जिस सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है की लोगों की परेशानी दुर करें, गरीबों को दो वक्त की रोटी मिल पाये। लाखों टन अनाज की बर्बादी देखकर खून खौलने लगता है। दिल करता है की सामाजीक संस्था की मदत से लोग खुद जाये और खुद उस अनाज को लूटकर लाये। सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद समय रहते ही सरकार जगे और गरीबों मे मुफ्त में अनाज का बटवारा करे तो गरीब जनता की दुवाएं भी मिलेगी और वोट भी।
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