Monday, August 30, 2010

आमदनी रूपय्या....

आज में बाजार में सब्जीयां खरीदते खरीदते एक ठेले पर लहसून लेने के लिए रूक गयी उसी वक्त एक मांगनेवाली वहां मांगने के लिए आयी, उसके हाथ में थाली थी जिसमें कुछ चावल और भगवान की फोटो रखी हुई थी। दुकानदार ने उसके थाली में एक लहसून की गांठ डाल दी, वो भिखारन आगे बढ गयी । मैने उस ठेलेवाले से पुछा अरे भैय्या उसे पैसे क्यों नही दिये, लहसून लेकर क्या करेगी वह। उस ठेलेवाले ने तुरंत कहा अरे बहनजी मै तो तैय्यार हूं एक रूपया देने के लिए लेकीन उसे लहसून ही चाहिए क्योंकी लहसून की छोटीसी छोटी गांठ भी दो रूपये में आती है। महंगाई की मार सभी अपने अपने तरीके से झेल रहे है। ऐसे ही हर ठेले से कुछ न कुछ मांग कर वो अपना पेट पाल ही लेती है। पैसा और चिजें लेकर कमसे कम सौ रूपये आमदनी तो दिनभर में हो ही जाती है। एक भिखारन भी अपने परिवार का भरणपोषण करने के लिए एक ठेले से एक रूपया लेने से मना करती है वहीं राजस्थान के 99 मजदूरों को एक रूपया दिहाडी मिलने की बात सुनकर पैरो तले की जमीन ही खिसक गयी। कई दिनो तक इन मजदुरों से बारह बारह घंटो तक हड्डीयां पिस जानेवाली कमरतोड मेहनत करवाई गयी। जब मेहनताना देने की बारी आयी तो पता चला की हर मजदूर को प्रती दिन 1 रूपया मजदूरी के हिसाब से मेहनताना मिलेगा। इतनी बडी जालसाजी और धोखाधडी से अनभिज्ञ इन लोगों को पता नही था की इतनी मेहनत के बाद उन्हे जो मेहनताना मिलेगा जिसमें लिमलेट की एक गोली भी नही आएगी। रोजगार गारंटी योजना के तहत न्यूनतम से न्यूनतम मजदूरी भी सौ रूपये प्रतिदिन है, और यह हर एक मजदूर का अ्धिकार है। रोजगार गारंटी योजना सरकारी योजना होने के बावजूद उसमें बडे पैमाने पर भ्रष्टाचार हो रहा है जिसकी मिसाल हमारे सामने है। लाखो टन अनाज सडकर बर्बाद हो गया लेकीन उसे गरीबों में मुफ्त में नही बांटा गया। एक रूपया मजदूरी मिलने के खबर के बाद इन मजदुरों को अपने हक के लिए लडना पड रहा है । प्रशासन से बिना लडाई झगडा किये इन मजदुरों को उनकी मेहनत की कमाई मिलने से रही। यह तो हमारे देश की परंपराही बनते जा रही है, अपनी सच्चाई खुद को ही साबीत करनी पडती है। भ्रष्टाचार से लतपत हमारी समाजव्यवस्था में इन मजदूरों को कब न्याय मिलेगा पता नही लेकीन काली कमाई करनेवाले मोटी चमडीवालों का दिल कभी नही पसिजेगा। आनेवाली पिढीयो के लिए भी काली कमाई की पुंजी इकठ्ठा करने में व्यस्त भ्रष्टाचारीयों को इस बात का अंदाजा नही होगा की काले धन के साथ साथ वे अपने परिजनों के लिए बद्दुऑ का पिटारा भी भर रहे है। मजदूरों की आखों से निकले एक एक आसुओं की किमत उन्हे चुकानी होगी । भगवान की लाठी को आवाज नही होती और यह लाठी किस रूप में बरसेगी इसका अंदाजा लगाना नामुमकिन है।

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