Tuesday, September 7, 2010

उंचाई ले गयी जान....

किशोर कांबले उम्र 20 साल परिवार में इकलौता ऐसा लडका जिसपर सारे परिवार की आशाएं बंधी हुई थी। परिवार को उम्मीद थी की यह लडका हमारे बूढापे की लाठी बनेगा और परिवार का भरणपोषण करेगा। कुछ ही दिन में बेटे को नौकरी मिलेगी तो परिवार के हालात में सुधार आएगा यह उम्मीद लगाये माता – पिता बैठे थे। लडका भी मेहनती था जानता था परिवार की उम्मीदों पर उसे ही खरा उतरना है। बडा भाई अपाहिज, दो छोटे भाई अभी अपनी पढाई पूरी कर रहे है और मां बाप बुढे है। किशोर ने जल्द पैसे कमाने के लिए दहीहंडी फोडनेवाले मंडली में जाकर अपना नाम दर्ज करा दिया। उसने सोचा लाखों की इनामी राशी में से कम से कम उसके हिस्से में दस हजार रूपये तो आएंगे ही। मुंबई और मुंबई से सटे ठाणे इलाके में दहीहंडी के आयोजन का क्रेझ बढता ही जा रहा है। राजनेता दहीहंडीयों का बडे पैमाने पर आयोजन करती नजर आ रही है। दहीहंडी फोडनेवाले मंडलो को लाखों रूपयो के इनाम का लालच देकर उन्हे आकर्षीत किया जा रहा है। उंची से उंची मटकी बांधी गयी जिसतक पहूंचना मुश्कील ही नही बल्की नामुमकीन भी होता है। 10 थरों का मानवीय पिरामीड बनाने की कोशीश में कई मासुम बच्चों को उपर चढाया गया । जानलेवा और खतरनाक खेल में कई गोविंदा गिरते रहे, पिरामीड बनाते रहे। ऐसे ही एक मानवीय थर के चौथे थर में किशोर था। किशोर मानवीय थर बनाने की कोशीश में 3 से 4 बार छाती के बल गिरा। गोविंदा रे गोपाला की जयजयकार, डिजे के शोर में थिरकते गोविंदा के आवाज में किशोर के दर्द की आवाज दब गयी। दुसरे दिन उसकी हालात बिगडी और उसे अस्पताल में दाखिल कराया गया। एक्सरे में पता चला की उसकी छाती में खून जम गया था। किशोर की मौत हो गयी और परिवार में अंधेरा। पिछले तीन चार सालो से नेता दहीहंडी और सार्वजनिक गणेशोत्सव के दौरान अपना शक्तीप्रदर्शन कर रहे है। दहीहांडी का आयोजन किया जाता है जिसमें लाखों के वारे न्यारे हो रहे है और गोविंदाओ की जान से खेला जा रहा है। धार्मीक और पारंपारीक त्योहारों को राजनितीक रंग चढ गया है जिसकी होड में सभी पार्टीयां एक दुसरे से आगे निकलने की कोशीश मे है। सुबह से लेकर रात तक रंगारंग कार्यक्रम , अभिनेता अभिनेत्रीयों की मौजुदगी और डिजे की गुंज में गोविंदा दिनभर खडे रहकर थक जाते है । मानवीय थर लगाने की ताकद भी नही रहती की वो मानवीय थर लगा पाए, नतीजा कई गोविंदा गिरकर जख्मी हो गये है तो कई अपाहिज भी हो चुके है। इस वर्ष गोविंदाओ का बिमा निकाला गया लेकीन उस राशी पर इलाज नही हो पाएगा ना ही अपाहिजता को दूर किया जा पाएगा। किशोर की मोत के बाद उसके परिजनों को एक लाख का मुआवजा मिला लेकीन क्या बेटे की कमी भर पाएगी। क्या इस मौत के खेल पर अंकुश लग पाएगा। दहीहांडी की उंचाइ पर नकेल कसी जाएगी। आयोजको को गोविंदा के जीवन से खेलने से रोका जाएगा। क्या किशोर की मौत के बाद ही सही दहीहांडी का पारंपारीक और धार्मीक रूप बरकरार रहेगा।

1 comment:

संगीता पुरी said...

दही हांडी का पारंपारीक और धार्मिक रूप तो बरकरार रहना चाहिए .. पर इसकी उंचाइ पर जरूर नकेल कसी जानी चाहिए !!