Tuesday, June 22, 2010

फिर भी बरसो....

मुंबई में बरसात का आना मतलब मुसीबतों का दस्तक देना । बरसात का खुशनुमा माहैल किसे अच्छा नही लगता। चिलचिलाती धुप से निजात तो मिल जाता है लेकीन साथ साथ मुसीबतें भी आती है। यह सब देन है हमारे मुंबई महानगर पालिका की । हर साल लोगों से किये गये वादे और धोखाधडी का सिलसिला इस साल भी बरकरार है। प्री मॉन्सून में ही अलग अलग चार जगहों पर दिवार ढहने से तीन मासुम बच्चों की मौत हो गयी थी और कई जखमी भी हो गये थे। नालों की सफाई के बारें में पुछा जाए तो कमिश्नर और मुंबई की मेयर दोनो ने ही 90 प्रतिशत सफाई होने का दावा किया। लेकीन सारे दावे खोखले निकले जब रास्तों पर पानी जमने लगा मुंबई महानगरपालिका में शिवसेना की सत्ता है तो अपना कर्तव्य निभाने के लिए शिवसेना कार्यकारी अध्यक्ष उध्दव ठाकरे भी नालों की सफाई का मुआयना करने मेयर के साथ गये दो दिन नालों की सफाई का जायजा लिया और तिसरे दिन मेयर, कमिश्नर और कार्यकारी अध्यक्ष ने 12 लाख रूपये खर्च करके हेलिकॉप्टर से मुआयना किया।
मुंबई का चेहरा नरिमन पॉईंट, वर्ली,जूहू, चौपाटी जैसे इलाके बनते जा रहे है। जहां समुद्र की लहरो का लुत्फ उठाने के लिए सैलानी आते है, लहरों के साथ बारीश में भिंगने का मजा भी लुटते है। छुट्टीयों के दिन बारीश में भिगंना सभी को अच्छा लगता है। चौपाटी पर गरामा गरम भुट्टे और चाय की चुस्की भी लज्जतदार लगती है। नौजवानो की मौज मस्ती तब तक वाजीब है जब तक वे नशा ना करे, नशे के हालात में कईयों ने अपनी जान गवाई है। लाईफ गार्ड की कमी सैलानियों की सुरक्षा के लिए नाकाफी है। ये भी देन है हमारे मुंबई महानगरपालिका की। मुंबई वाकई में खुबसुरत है लेकीन सरकारी अनास्था ने उसे बेढंग बना दिया है। अवैध निर्माणों की वजह से पानी के प्राकृतीक बहाव पर प्रतिबंध लगता जा रहा है, और अवैध निर्माणों के मसिहा है सत्ता की कुर्सी पर बैठे हमारे राजनितीज्ञ या फिर कॉरपोरेटर.। तपती धुप की तपीश से निजात देने वाले मेघ की राह देखनेवाले मुंबईकरों को बारीश का पानी मुसीबत लगने लगता है। हरसात के दौरान ट्रेन बंद होना, गंदे पानी में से घर तक का सफर तय करना, ट्रॅफिक में से निकलकर सही समय पर ऑफिस पहूंचने की कोशीश अब बरसात में आम सी हो गयी है। इतनी सारी कठिनाइयों और मुसीबतों के बावजूद आम मुंबईकर यही कहेगा, बरसो रे मेघा मेघा बरसो रे मेघा बरसो, जम के बरसो.....

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