Monday, October 5, 2009
पालनाघरों के शिकार
पुणे में मासूम सी नन्ही बच्ची को कपडे को प्रेस करने वाले इस्त्री से जलाकर दाग दिया गया,कसूर महज इतना था कि नन्ही सी जान धीरे धीरे खाना खा रही थी, और भूख नहीं होने से खाना खाने से इन्कार कर रही थी। मंहगाई के इस दौर में एक आदमी के आमदनी पर घर खर्च चलना मुश्किल ही नही नामुमकिन है। इसलिए पती पत्नी को अपने नन्हे बच्चों को पालना घर में रखना पडता है। पालना घर में बच्चों को रखना खतरे से खाली नही, लेकिन सभी पालनाघर ऐसे नही है। उनका लक्ष्य सिर्फ पैसे कमाना नही है। प्यार के मोहताज ये नही समझ पाते की पालनाघर वाली आंटी उसका ख्याल प्यार से नही बल्कि पैसे के लिए कर रही है। मासूम बच्ची को इस्त्री गर्म करके जलाना हैवानियत से कम नही है। महज खानापूर्ती के लिए बच्चों की देखभाल करके पैसा कमाने का चलन ही निकल पडा है। हर गली मुहल्ले में कुकुरमुत्तों जैसे बने पालनाघरों की विश्वसनीयता जांच लेना बहुत जरूरी है वर्ना अभिभावकों पता भी नही चलेगा की उनके कलेजे के टुकडों के साथ किस तरह का बर्ताव हो रहा है, नही तो बच्चों के जान पर बन आने के बाद ही माता पिता को खबर लग पाएगी। मां- पापा भी यह जान ले की अपने घरवालों को सिवाए बच्चों को प्यार देने का नाटक करने वाले गैरों को लगाव कम ही होगा। साथ ही अवैध तरीकों से महज पैसो के लिए पालनाघर चलानेवालों पर सख्त से सख्त कारवाई होनी चाहिए।अगर ऐसा नही हुआ तो इनका शिकार कोई मासूम जरूर होगा। हमारे समाज में पैसा तो जरुरी है लेकिन किसी के ममता को गला घोंट कर पैसा कमाने वाले क्या चैन से रह पायेंगे... आखिर वो भी किसी के माता पिता ही होगें। कुछ लोग कहते हैं कि पैसा खुदा नहीं है लेकिन पैसा खुदा से भी कम नहीं है....लेकिन बच्चे तो भगवान के रुप होते हैं.. तब उनके साथ क्या ऐसा व्यवहार करना भगवान के साथ अन्याय करना नहीं होगा।
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