Saturday, October 3, 2009

चुनावी घोषणापत्र- वादो का पुलिंदा

लगभग सभी राजनितीक पार्टीयों ने साझा चुनावी घोषणापत्र जारी किया है। घोषणापत्र क्या चुनावी वादो का पुलिंदा ही समझ लो। शहरी लोगों को तो पता चल गया होगा की हर पार्टी ने उनके लिए कौनसे वादे किये है, लेकिन खेत खलिहानो में काम करनेवाले किसानों को पता ही नही की उनके लिए आनेवाली सरकार क्या करने जा रही है। क्योंकी घोषणापत्र में किए गये वादे उनतक पहूंचने का साधन तो उनके पास होगा लेकीन वो साधन चल ही नही पाता क्योंकी बिजली तो हमेशा ही गूल रहती है। हर पॉलिटीकल पार्टी के लगभग एक ही जैसे वादे है। गरिबी रेखा के नीचले लोगो के लिए 2रूपये किलो अनाज, लोडशेडिंग मुक्त महाराष्ट्र, ग्राम सडक विकास , मुंबई को आनेवाले पाच सालों में अंतरराष्ट्रीय दर्जे का शहर बनाने की योजना, भूमिपुत्रों को नौकरीया और ऐसे कई अनगिनत वादे। सभी पार्टीयों ने पाचं साल पहले किए वादों को फिर एक बार दोहराया गया। बडी ही हास्यास्पद बात लगती है की किसानो ने कभी भी मुक्त बिजली या कर्जे कि मांग नही की, लेकीन महज वोटो के लिए किसानों को लुभाया जा रहा है। 2 रूपये किलो से अनाज मिलना मुश्कील ही नही बल्की नामुमकीन है। दिन ब दिन महंगाई तो मुँह बाए खडी है और कालाबाजारीयों ने अपनी जडे जमा ली है, मंहगाई में आटा गिला । आनेवाली सरकार से आम लोगों की बस यही अपेक्षा होगी की मंहगाई की मार उन्हे झेलनी न पडे। किसानों को राहत और युवाओं को कमाई का साधन मिले । बडी बडी घोषणा करके हर पार्टीयां अपनी अपनी रोटी तो सेक रही है, वहीं चुनावों में करोडो रूपयों का वारे न्यारे हो रहे है। लेकीन लोगों के विकास के लिए किसी भी पार्टीयों की जेब ढिली नही हो रही है। लोगों को आनेवाली सरकार से वादों का अंबार नही, बल्की घोषणापत्र में दिए गये हर एक बात पर अमल होना चाहिए, फिर चाहे सरकार किसी की भी हो। वरना जो लोग सरकार बनाना जानते है वो सरकार गिराना भी जानते है।

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