Tuesday, February 9, 2010

शेर हैं कि बिल्ली...?

राहुल गांधी को काले झंडे दिखाने का आदेश शिवसेना सुप्रिमों बाल ठाकरे ने दिया और उनके आदेश को सर माथे पर लेकर शिवसैनिक गली कुंचे से निकलकर काले झंडे दिखाने के लिए कुछ हद तक सामने भी आए लेकिन बाईस हजार पुलिस कर्मीयों ने उनके प्लॉन को फेल कर दिया, उनके आंदोलन की हवा ही निकाल डाली। साथ ही कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने रास्ते पर उतर कर उनका सामना करने के लिए कमर कस ली।शायद ये नजारा मुंबई हमले के वक्त देखने मिलता तो आज नजारा ही कुछ और होता ना कि मुंबई पुलिस के जाबांज शहीद होते और ना ही एन.एस.जी के कमांडो जिन्हे मुंबई के लिए निकलने की आज्ञा हमले के दस घंटे बाद दी गयी। राहुल गांधी के मुंबई के सफल दौरे के बाद कार्यकारी अध्यक्ष ने आनन फानन में प्रेस कॉन्फ्रेस लेकर ये साबित कर दिया की राहुल गांधी को उनके वजह से हवाई यात्रा छोडकर रेल का सफर तय करना पडा हालांकि सच्चाई सभी को पता है। शाहरूख खान के बयान पर शिवसेना ने आक्रमक रूख अख्तियार तो कर लिया लेकिन विरोध फिल्म की करे या शाहरूख की इस भ्रम में शिवसेना खुद ही अपने बुने जाल में फँस गयी । हालांकि खेल और कला को इस विवाद में लाना समझदारी नही था। लेकिन मुंबई आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तानी साजिश से सारा देश आहत हुआ है, ऐसें में पाकिस्तान खिलाडियों को आईपीएल में खिलाने का विरोध शिवसेना ने जताया। राज्यसरकार ने शाहरूख को सुरक्षा देने का वादा किया। मुंबई लौटकर शाहरूख ने बालासाहब से मिलने का इच्छा भी जाहीर की और अपने बयान पर कायम रहे। शिवसेना का यह मिशन भी फेल हो गया। ऑस्ट्रेलिया में भारतीयो पर हो रहे नस्लवाद के हमले की वजह से कई भारतीय छात्रों पर जान पर बन आयी है। हमले अभी भी बरकरार है, केंद्र सरकार ऑस्ट्रेलियन सरकार से चर्चा करके भारतीयों पर हो रहे हमले को रोकने की कोशीश में है। आश्चर्य तब और होता है कि जब आस्ट्रेलियाई सरकार ने भारतीय छात्रों को गरीबी दर्शाने की नसीहत दे डाली। स्थानीय ऑस्ट्रेलियन भारतीयों के आने से असुरक्षित तो कम जलन और अपनी काहिलपन को छुपाने के लिए हमले करने लगे हैं। शिवसेना ने इस बात का विरोध जताते हुए ऑस्ट्रेलियन खिलाडियों को मुंबई में आने से विरोध जताया है। लेकिन केंद्रीय कृषीमंत्री श्री शरद पवार बीच बचाव करने आगे आये है। शिवसेना प्रमुख से चर्चा करके इस बात पर हल निकालने की पहल की ही। देश में मंहगाई बढती जा रही है, शक्कर की मिठास मुंह से निकल गयी हा वहीं राष्ट्रवादी के पत्रिका में यह कहा गया है कि शक्कर नही खाने से कोई मर नही जाएगा। इस पर मंत्रालय के साथ सरकार से जुडे लोगों को शर्म आनी चाहिए। डब साबुन का और शक्कर का दाम एक जैसा है, लेकिन उसके बारे में कोई आवाज नही उठाते। राष्ट्रवादी को यह शायद पता होगा की दो वक्त की रोटी का जुगाड करनेवाला इंसान डब साबुन या इत्त्तर का इस्तेमाल नही करता। चाय में शक्कर की मिठास तो जाती रही अब रंग भी फिका हो गया। लेकिन खेल से सभी को प्यार है चाहे वो ऑस्ट्रेलियन खिलाडी हो या पाकिस्तानी सभी को पसंद किया जाता है। पवार जी ने कल महाराष्ट्र के औरंगाबाद में कहा था कि अब बालासाहब की उम्र हो चुकी है, विरोध करके क्या करेंगें बच्चों को खेलने दीजिए, मै उनसे मिलकर उनको समझाउंगा। चर्चा के बाद अब शिवसेना यह तय करेगी की खिलाडियों को विरोध करना है या नही। यह आंदोलन भी खटाई में जाता रहा। क्या शिवसेना का पावर कम हो रहा है, या मराठी –गैर मराठी के विवाद का विभाजन ठाकरे परिवार में हो रहे विभाजन की वजह से मराठी मानुष दुविधा में है कि शिवसेना की राह पर चले या मनसे का हाथ थामे। कौन दिलवाएगा भूमिपुत्रों को न्याय। भूमिपुत्रों को न्याय दिलवाने के लिए साठ साल पहले जो शिवसेना शेर की तरह दहाडा करती थी अब वो मिमियाने लगी है। बॅकफूट पर जाने लगी है। बालासाहब ठाकरे की फिर से एन्ट्री से अगर मुंबई महापालिका चुनाव मे शिवसेना फिर से बाजी मार लेती है तो क्या फिरसे उन्हे सक्रिय राजनिती में उतरकर दहाडना होगा। शिवसेना का वजूद दिखाना होगा।..... लेकिन फिलहाल तो सेना शेर की जगह बिल्ली बनी हुई है।

1 comment:

के सी said...

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