
Monday, November 17, 2008
हर फिक्र को धुऍ में उडाता चला गया......

Wednesday, November 5, 2008
रक्षक ही बने भक्षक

रक्षक बने भक्षक : मालेगावं ब्लास्ट के साजीश की परते खुलती गयी , और अचानक से एक धक्का लगा जब ब्लास्ट को अंजाम देनेवालों के नामों में कुछ आर्मी ऑफिसर के नाम सामने आये। देश की रक्षा करनेवाले जब आंतकीयों के साथ शामिल हो जाए तो आम हो या खास सभी की जान खतरें में नजर आ रही है। बदले की आग में मालेगाव ब्लास्ट को अंजाम दिया गया है, तो अंजाम देनेवालों को आतंकी कहा जाए तो कोई गलत बात नही होगी। आर्मी अफसरों का इस कदर ब्लास्ट की साजीश में शामील होना, आतंकीयों को ट्रेनिंग देना देश के साथ गद्दारी है। अपने जमीर को गिरवी रख कर चंद रूपयों के लिए देशकी सुरक्षा के साथ ये खिलवाड कर रहे है। ब्लास्ट में मारे गये लोग हमारे ही समाज का एक हिस्सा है, जिसे हम नकार नही सकते। लेकीन नफरत की आग हो या पैसे की लालच देश को तोडकर बर्बाद करने का काम कर रही है। जीन आर्मी जवानों पर देशवासीयों को गर्व होता है, जीनके किस्से सुनकर सीना गर्व से फुल जाता है, उनके नाम पर कलंक लगाने काम इन गद्दारों ने किया है। जहां बोरवेल में गीरे छोटे से बच्चे को बचाने के लिए दिन रात एक करके जवान अपनी जाबांजी की मिसाल देते है, सीमा पर इन्ही के बुते हम आराम से अपने घरों में चौन की निंद सोते है, वहीं कुछ अफसरों ने अपने टॅलेन्ट की धज्जीयां उडा दी। सालों से बनायी इनकी प्रतिष्ठा अब खाक में मील चुकी है। आर्मी के दामन को इन्होने दागदार कर दिया है। रक्षक ही जब भक्षक बने तो भगवान भरोसे ही अपने आप को रखना होगा। फिरभी उम्मीद है की वक्त रहते ही और लोग भी संभल जाए। कानून अंधा जरूर है लेकीन उसके हाथ लंबे है , देर से ही सही लेकीन दोषी कानून की गिरफ्त से बच नही सकेंगे ।
Sunday, November 2, 2008
क्षेत्रवाद राष्ट्रीय एकता पर हावी

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