Friday, September 12, 2008

सरकार का राज से माफीनामा.....

दो दिनो से चल रहे मनसे के आंदोलन के बाद अभिनेता अमिताभ बच्चन ने मिडीया से रूबरू होकर मनसे नेता से माफी मांगी। अब की बार मनसे ने उत्तर भारतीयों को नही बल्कि सिर्फ बच्चन फैमिली को टार्गेट बनाते हुए उनके पोस्टर को फाडे, प्रोडक्ट का बहिष्कार किया । अमिताभ बच्चन इस बात से बेहद आहत नजर आये की मनसे ने उनके परिवार को निशाना बनाया जबकी वो महाराष्ट्र का काफी सम्मान करते है। मुंबई उनकी कर्मभूमी है। उन्हे मुंबई ने ही शोहरत दी है। उन्होने अपनी माफीनामा में मराठी भाषा के लिए या लोगों को दिये गये दान का फिर जिक्र किया । जब भी मराठी भाषा के प्रति सम्मान जताने की बात आती है, तो मराठी फिल्म श्वास के लिए दिए गए चंदे की बात आती है। श्री अमिताभ बच्चन से मराठी लोग भी उसी तरह प्यार करते है, जिस तरह देश की और अवाम करती है। आगामी फिल्मों के प्रदर्शन पर रोक लगते देख बच्चन जी को आनन फानन में अपना बयान जारी करना पडा। साथ ही साथ उन्होने मनसे नेता को अपना भाई और मित्र भी कह डाला। अमन शांति पसंद करनेवाले बच्चनजी ने अपनी धर्मपत्नी के बयान के लिए माफी मांगी। मराठी बनाम उत्तर भारतीयों का मुद्दा फिर कुरेदकर निकाल अंशाति फैलानेवालों लोगों से अब आम लोगों को सावधान रहना होगा। ये विद्वेष का जहर फैलानेवाले लोग आपस में ही बाँट रहे हैं अपनी राजनीति चमकाने के लिए ये हर स्तर तक जा रहे हैं। जिस प्रदेश ने हमें प्यार, रोजगार सम्मान दिया है, उस प्रदेश के विकास में हाथ बटाना सभी का कर्तव्य है। भारत के कई राज्य किसी एक भाषा या धर्म के लोगो की वजह से जाना जाता होगा । लेकिन सभी जाति, धर्म, और भाषा बोलनेवालों की मुंबई अब विकास की ओर बढने की बजाय प्रातंवाद के लडाई में विनाश की ओर जा रही है। मुंबई में रहनेवाले सभी मुंबईकर है, मुंबईकरों को अपनी दिल की आवाज सुननी होगी, कि प्रातंवाद का बढावा देना है, या फिर प्रांतवाद को बढावा देनेवालों के खिलाफ एकजुट होना है। नेता लोगों के भलाई का सोचे और कलाकार अपने अदाकारी से समाज को सीख दें या फिर लोगों का मनोरंजन करें । तो बेहतर होगा, अपने जन्मस्थल और कर्मस्थल दोनो का ही सम्मान होना जरूरी है। एक ने जन्म दिया है, और दूसरे ने जन्म को सार्थक किया है।

1 comment:

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said...

वैसे तो माफी मांग कर अमिताभ बच्चन ने उदारता और गरिमा का ही परिचय दिया है, लेकिन क्या यह महज़ उनकी उदारता है या वणिक बुद्धि का प्रभाव? अगर उनके पूरे परिवार की फिल्में बैन होतीं, उनके विज्ञापन बाधित होते तो उन्हें कितना नुकसान होता- यह गणित भी उनके मन में रहा हो तो कोई ताज़्ज़ुब नहीं.
एक और बात. कभी-कभी लगता है कि यह नूरा कुश्ती थी. आखिर अमिताभ और अभिषेक की नई फिल्में आ रही हैं. ऐसे में कुछ पब्लिसिटी मिल जाये तो? वैसे, हो सकता है, ये सारी बातें मेरे मन के मैल की ही अभिव्यक्ति