Monday, September 8, 2008

गणपति बाप्पा मोरया...

गणपति बप्पा के आगमन के बाद मुंबई शहर रातभर जाग रहा है साथ ही जगमगा रास्ते भी रहे हैं। हर तरफ रोशनी ही रोशनी। दिन भर अपना कामकाज खत्म करने के बाद मुंबईवासी निकल पडते है, अपने लाडले भगवान के दर्शन के लिए। घंटो घटों तक लाईन लगाकर अपनी मनोकामना पूरी होने के लिए भक्त अपने आराध्य के पास इच्छा जताते नजर आ रहे है। खास बात तो यह है की भक्त सिर्फ अपने परिवार के साथ ही नही बल्कि अपने मित्र- परिवार या मुहल्ले के लोगों के साथ इकठ्ठा निकलते है। मुंबईवासीयों को एक साथ रहने का यही अंदाज अच्छा लगता है। छोटे छोटे बच्चे भी जागकर मुंबई की चकाचौंध को निहारते नजर आते है। हर रास्ता, गली, मुंहल्ला इन दिनो जगमगा रहा है। दिन में बाजारो में चहल पहल रहती है, तो रातों में सडके ठेलों से भरी पडी रहती है। लोकल ट्रेन में आमतौर पर महिलाओं के डिब्बे में महिलायों की संख्या कम रहती है, लेकिन गणेशोत्सव के दरम्यान महिलाओं की संख्या काफी तादाद में रहती है। गणपति में मुंबई को पूरे बारह दिन एक नया उत्साह मिलता है। सुबह भी घर से निकलते वक्त कही न कही गणपति बप्पा के दर्शन हो ही जाते है। और रात में जगमगाती रोशनी में अपने आराध्य के दर्शन के बाद लोगों की सारी थकावट दूर होती है। मुंबई के साथ साथ पूरे महाराष्ट्र में गणपति की धूम होती है ,और सबसे ज्यादा तब सोने पर सुहागा होता है जब घर घर में मिठे पकवान बनते है। साथ ही मिठाईंयां भी भरपूर खाने मिलती है। बाहर से आनेवाले लोगों को यह जरूर महसूस हो सकता है कि मुंबईकर पैसे के पीछे भागते हैं, उनमें भावनाएं नही होती। किसी से कोई लगाव नही जताते खासकर किसी अनजान व्यक्तीयों से। लेकिन गणेशोत्सव के इस पर्व से इन सब बातों को झुठलाया जाता है। कंधे से कंधा लगाकर गणेशभक्त अपने आप को भुलकर समाज के लिए कुछ करने की भावना रखता है। रात भर जागकर गणेशोत्सव की तैयारी करता है। और पूरी श्रध्दा और भक्ति से गणपति बप्पा के इस पावन त्योहार को सफल बनाने के लिए जी- जान से प्रयास करता है। आधुनिकता की इस दौर में समाज सकुंचित होता जा रहा है ऐसी शिकायते है , लेकिन हम सचमुच शुक्रगुजार है उस महान पुरूष बाल गंगाधर तिलक के जिन्होने गणेशोत्सव के माध्यम से लोगों को एक्ठ्ठा करने का सफल प्रयास किया और अंग्रेजो के खिलाफ रणनीति बनायी। अंग्रेज तो चले गये अब उनकी जगह ली है आंतकीयों ने । मुंबई आतंकीयों के निशाने पर है आतंकी बराबर इसको नुकसान पहुँचाने की कोशिश करते रहते हैं। जैसे गणेशोत्सव में ना कोई जाति धर्म,प्रदेश और समाज का बंधन रहता है उसी तरह इन आतंकियों से निपटने के लिए भी एक बार फिर लोगों के साथ जरूर आना पडेगा। राजनैतिक पार्टियाँ एक दूसरे को दूर करने में अपना कोर कसर नहीं छोड़ती लेकिन जरुरत है कि इस मसले को समझा जाए और साथ मिलकर के गणपति बप्पा का जयजयकार किया जाए....और कहा जाए ...गणपति बप्पा मोरया.. पुढच्या वर्षी लवकर या......

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