Monday, August 15, 2011

ब्रिटिश राज…..

पुणे के मावल में किसानो पर की गयी फायरिंग ब्रिटिश राज की याद दिला गयी। आजादी के लिए लडनेवाले स्वतंत्रता सेनानियों के आन्दोलन को दबाने के लिए जिस तरह फायरींग की जाती थी उसी तरह पुणे के मावल में किसानो को अपने हक की लडाई लडने से मना करने के लिए पुलिसिया जुल्म का कहर ढाया गया। डॅम से पाईपलाईन बिछाए जाने के लिए किसान कई दिनों से विरोध कर रहे थे। इस पाईपलाईन का पानी पिंपरी - चिचंवड इलाके यानी उपमुख्यमंत्री अजित पवार के गढ में जानेवाला था। जिसकी वजह से मावल के किसानो को खेती के लिए पानी नही मिल पाएगा इसलिए किसान कई दिनों से इस पाईपलाईन का विरोध कर रहे थे। डॅम से पाईपलाईन बिछाने के काम का उद्घाटन अजित पवार ने ही किया था और किसानों के विरोध से वे बखुबी अवगत भी है। किसानो ने बात नहीं सुनी जाने पर सडकों पर उतर आए मुंबई पुणे हाइवे को जाम कतर दिया था, रास्ता रोकने का मकसद यही है कि सरकार किसी तरह कम से कम चेते तो सही। अब किसानों के इस आन्दोलन की आग के चपेट में मुंबई से पुणे आने और जानेवाली गाडियां आ गईं, घंटों कतार में खडी रहीं। कुछ गाडियों को तो बीच रास्ते से ही लौटना पडा। पुलिस जबरन आंदोलनकारियों को भगाने लगी, अपनी अक्रामता पुलिस भरपूर दिखाने लगी, बदले में गुस्साई भीड ने पथराव शुरू कर दिया। पुलिस लाठीयां भांजती रही और आंदोलनकारी बेकाबू होने लगे। बेकाबू होती भीड को काबू करने के लिए पुलिस ने अंग्रेजो का चोला पहना और फायरिग करनी शुरू कर दी। अगर हम उस दिन का विडीयो देखे तो साफ पता चलता है कि पुलिस ने बर्बरतापुर्ण व्यवहार किया है। पानी के फव्वारे और आंसू गैस का इस्तेमाल से आमतौर पर भीड को तितर बितर किया जा सकता है, यहां तो प्लास्टिक की गोलीयां भी चलाई गयी थी। मानसून सत्र में इसकी गुंज उठी तो विपक्ष ने भी जमकर हंगामा किया और सरकार से इस्तीफे की मांग की। विरोधियों को जवाब देते हुए उपमुख्यमंत्री ने कहा की पाईपलाईन का काम शुरू करने के लिए शिवसेना नेता ने ही सिफारिश की थी और उसके लिए फंड का प्रावधान करने के लिए कहा गया। सत्ताधारियों का आरोप है की विपक्ष इसे भुनाने की कोशिश में है। उत्तर प्रदेश में भी इसी तरह किसानों को घरों में घुसकर मारा गया था। घरों में सामान की तोड- फोड कर दी गयी थी, खेत खलिहान आग के हवाले कर दिये गये थे। जमीन अधिग्रहण के खिलाफ किसान थे, और अब आखिर में उनकी जीत हो गयी क्योंकि कोर्ट ने जमीन अधिग्रहण पर रोक लगा दी। हमेशा किसानो की उपजाउ जमीन ही प्लांट या फॅक्टरी लगाने के लिए चाहिए होती है। खेतो के लिए जानेवाला पानी धनिकों को दिया जाता है। किसान अब चुप नही रहेंगे ईंट का जवाब पत्थर से देना वो सीख रहे हैं। क्योकि नेता बदल रहे हैं हालात नहीं ।

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