Wednesday, December 1, 2010

चार दिन की चांदनी...

मुंबई की लाइफ लाइन कब मौत की रेख बन गई कहना मुश्किल।लेकिन इसके बारे में किसे दोष दे वो और भी कहना मुश्किल है आखिर वाकया क्या है उसे भी बता दूँ। मुंबई में कुछ सप्ताह पहले मुंबई के विक्रोली स्टेशन पर तीस से चालीस पुलिस सीटी बजा बजाकर रेल यात्रियों को पटरी पार करवा रहे थे। ये आखिर एक रेल फाटक था जहाँ से लोग बराबर एक तरफ से दूसरे तरफ आया जाया करते थे। दूर से नजर आनेवाली ट्रेन दिखते ही लोगो को पटरी पार करने से रोका जाता था। दो दिन बाद पुलिस की संख्या में कमी आ गयी पुलिस के जवान भी उन्हे मिले इस नए काम से उकता गये। धीरे धीरे पुलिस के जवान महज गिनतियों के रह गए। रोज रोज लगता कि कोई शैतान बिल्ली पुलिस के जवानों की संख्या में कमी कर रही है। एक सप्ताह के बाद आज पुलिस नदारद है और लोग बेखौफ पटरी पार कर रहे है। कोई रोकने वाला नही। दूर से आती ट्रेन को देखकर अगर किसी को रुपने का मन किया तो वो रुक गया भले ही दूसरा ट्रेन के साथ ही अपने रेस लगाकर आगे निकले की होड में रहे। इसतरह के वाकये को देख कर मन बरबस कुछ कहना चाहते इस लिहाज बस एक ही पंक्ति मिलती है कि लगा चार दिन कि चांदनी खत्म हो चुकी

पंद्रह दिन पहले मुंबई के विक्रोली स्टेशन पर रेल यात्रीयों और सामाजिक संगठन ने तीन से चार घंटो तक रेल रोक कर आंदोलन किया था। वजह थी कि यहाँ रेलवे ट्रैक पार करने के लिए पुल नही है, लोगों को चलती ट्रेन के साथ दौड लगाकर पटरी पार करके जाना पडता है। चार ट्रेक पर कभी कभी एक साथ ट्रेन आनेसे लोग असमंजस में पड जाते है और हादसे का शिकार होते है। एक ऐसे ही रविवार के दिन पटरी पार करने के चक्कर में ट्रेन का धक्का लगने कि वजह से तीन लोगों की मौत हो गयी और एक घायल हो गया। वैसे पटरी पार करते करते कई हादसे हो चुके है लेकिन एक दिन में हूई तीन मौतों की वजह से लोगों का गुस्सा भी फूट पडा कई सालों से वे पुल की मांग कर रहे थे लेकिन वही ढाक के तीन पात दर असल इसमें

रेल प्रशासन फिलहाल अपना पल्ला झाड रहा है लेकिन कम दोषी वो नहीं है, और लोग तो हैं अपने मन के राजा उन्हें भला ट्रेन की खौफ कहाँ, लोग पटरी पार करके जल्दी जाने की होड में लगे रहते है। उन्हे लगता है की सामने आनेवाली ट्रेन कि रफ्तार से भी जल्द वे निकल जाएंगे। मोबाईल फोन पर गाना सुनते सुनते रोड या फिर पटरी पार करने कि कई लोगों की आदत होती जा रही है हॉर्न का आवाज भी उन्हे सुनायी नही देता। जिसकी वजह से हादसों को न्योता लोग सामने से देते हैं। जिस तरह गलती लोगों की है उससे कहीं ज्यादा रेल प्रशासन की भी है। कई सालों से मांग होती रही फिर भी रेल प्रशासन अपनी जिम्मेदारी कॉरपोरेशन पर डाल रहा है और कॉरपोरेशन रेल प्रशासन पर लेकिन शिकार तो बन रहा है आम आदमी। चार दिन पुलिस बंदोबस्त रखकर लोगों को शांत करने का नाटक किया गया और आनन फानन में जनवरी तक पुल बनाने का आश्वासन भी दिया गया। लेकिन घडी की रफ्तार से चलनेवाले मुंबईकरों के जख्मों पर क्या सिर्फ चार दिन का मरहम ही काफी होगा। कुछ सरकार करे या ना करे लेकिन लोगों को तो इस तरह का छलावा तो ना दे इसके खिलाफ हम सभी को बोलना होगा मानते हैं हम भगवान के हाथों खिलौना हैं लेकिन सरकार तो चार दिन चांदनी का जलवा दिखा कर नौटंकी तो ना करे। आवाज तो उठानी ही होगी...एक स्वर आप अपना भी मिलाएँ....।

1 comment:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

जिस तरह गलती लोगों की है उससे कई ज्यादा रेल प्रशासन की भी है।
एकदम सही कहा.. वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें..